Friday, November 22"खबर जो असर करे"

मोदी भारत के सांस्कृतिक इतिहास के महानायक

– हृदयनारायण दीक्षित

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अयोध्या सारी दुनिया में चर्चा का विषय हैं। मोदी जी विश्व राजनीति के सम्मानित चेहरे हैं। वे भारत के लोगों के मन के महानायक हैं। प्रधानमंत्री आध्यात्मिक अनुष्ठान पर हैं। सारा देश उनकी ओर टकटकी लगाए देख रहा है। उधर अयोध्या में दिक्काल का अतिक्रमण हो रहा है। मोदी जी चमत्कृत करते हैं। विश्व इतिहास में उनके जैसा लोकप्रिय कोई राजप्रमुख नहीं दिखाई पड़ता। दुनिया के किसी भी राजप्रमुख के नाम की ऐसी चर्चा कभी नहीं हुई जैसी मोदी की हो रही है। अयोध्या में दिव्य और भव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर सारी दुनिया के हिन्दुओं का सपना रहा है। मोदी इस सपने से अयोध्या आन्दोलन के समय से जुड़े हुए हैं। उनके राजनैतिक विरोधी भी हतप्रभ हैं। मोदी भारत के सांस्कृतिक इतिहास के महानायक हैं। नया इतिहास बन रहा है। अयोध्या ने इतिहास के अनेक प्रिय व अप्रिय प्रसंगों को देखा है। सरयू भूमि इसकी साक्षी है। अयोध्या ने वैदिक काल से लेकर अब तक इतिहास बनते देखा है। अयोध्या सभी घटनाओं की दृष्टा है और दृष्टि भी है। यही अयोध्या विश्व आकर्षण हैं। वह तथ्य हैं और कथ्य भी हैं। राम लम्बे समय तक चित्रकूट में रहे। चित्रकूट भी प्रत्यक्ष है और दण्डकारण्य भी। सरयू, मन्दाकिनी और गंगा ने श्रीराम को निकट से देखा है।

अयोध्या का नया इतिहास नृत्य मगन है। सब तरफ अयोध्या ही अयोध्या की चर्चा है। जो अयोध्या से बहुत दूर दक्षिण या उत्तर में बैठे हैं उनके अंतर्मन में भी अयोध्या है। अयोध्या सामने है। यही दाएं है। यही बाएं है। अयोध्या सम्प्रति मनमोहनी हो गई है। भारत के अंतस का छंदस बन गई है। वे वैदिक मंत्रों की ऋचा जैसी हैं। ऋचाएं परम व्योम से धरती पर उतरती हैं। ऋग्वेद के ऋषि ने बताया है कि ऋचाएं परम व्योम में रहती हैं और धरती पर जाग्रत बोध वाले मनुष्यों के हृदय में उतरती हैं। अयोध्या भारत के मन का नया उत्सव और उल्लास बन गई हैं। अयोध्या दिव्य हैं। भव्य हैं। महाकवि तुलसीदास ने 500 वर्ष पहले अयोध्या के गीत गाए थे, ”अवधपुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन वृष्टि झरि लाई।” अयोध्या को निकट से देखने के लिए आकाश और नक्षत्र भी धरती पर उतर आए हैं। आकाश का शब्द गुण अयोध्या में उतर आया है। तुलसीदास श्रीराम के राज्यारोहण की चर्चा करते हैं, ”राम राज्य बैठे त्रैलोका। हर्षित भए मिटे सब शोका।” तुलसी कहते हैं, ”नभ दुंदुभीं बाजहिं बिपुल गंधर्ब किंनर गावहीं। नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं।” सम्प्रति अयोध्या सबको खींच रही है। काव्य, गीत संगीत बन गई है अयोध्या।

अयोध्या हजारों वर्ष प्राचीन वैदिककाल में भी प्रतिष्ठित नगरी रही है। ऋग्वेद में वैदिक काल के राजा इक्ष्वाकु का उल्लेख है। उन्होंने अयोध्या में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार इनकी 19वीं पीढ़ी के बाद मानधाता राजा हुए। उन्होंने अनेक राज्य जीते। मानधाता के बाद उनके पुत्र पुरुकुत्स अयोध्या के राजा हुआ। उसके 2 पीढ़ी बाद त्रसदस्यु राजा हुए। पुरुकुत्स के 11 पीढ़ी बाद राजा हरिश्चन्द्र अयोध्या के राजा बने। इक्ष्वाकु वंश की 31वीं पीढ़ी में राजा सगर और 45वीं में भगीरथ। फिर अम्बरीश। 60वीं पीढ़ी में दिलीप। दिलीप का पौत्र रघु। कालिदास ने रघुवंश में इनकी चर्चा की। फिर रघु के पुत्र अज। अज के पुत्र दशरथ। श्रीराम इक्ष्वाकु वंश की 65वीं पीढ़ी में हुए थे। श्रीराम विश्व प्रतिष्ठ महानायक हुए।

यूनान के कवि होमर प्रतिष्ठित कवि गिने जाते हैं। उनकी रचनाएं खूब पढ़ी जाती हैं। वे अपने समय की सभ्यता और संस्कृति के प्रतिनिधि कहे जाते हैं। उन्होंने इलियड और ओडिसी नाम के दो महाकाव्यों की रचना की थी। उनका कार्यकाल ईसा से 1000 वर्ष पूर्व था। यूनानी इतिहास का एक कालखण्ड होमर युग कहा जाता है। जैसे रामायण में श्रीराम के पात्र से हिन्दू प्रेरणा लेते हैं वैसे ही ओडिसी के वीर एकलिस की गाथा से यूनानी प्रसन्न होते हैं। लेकिन श्रीराम ”अखिल लोकदायक विश्रामा” हुए। वे इतिहास के अंक में नहीं समाए। इतिहास का पात्र छोटा पड़ गया और श्रीराम विराट पुरुष।

अयोध्या और श्रीराम इतिहास के साथ संस्कृति और दर्शन के भी प्रतीक हैं। भारत के प्राचीन इतिहास में अनेक प्रतिष्ठित राजा हुए हैं। लेकिन राजा रामचन्द्र की बात ही दूसरी है। वे भारत की मर्यादा हैं। उनका राज्य विश्व इतिहास में उल्लेखनीय है। दुनिया में अनेक राज्य व्यवस्थाओं के मॉडल हैं। लेकिन रामराज्य की बात ही दूसरी है। तुलसी वाल्मीकि के सृजन में रामराज्य शोकरहित है। आकाश में आए मेघ उतना ही पानी बरसाते हैं जितना आवश्यक होता है-मांगे वारिधि देहिं जल रामचन्द्र के राज। रामराज्य में परस्पर शत्रुता नहीं है। समाज में विषमता भी नहीं है। तुलसीदास लिखते हैं, ”बयरु न कर काहू संग कोई। राम प्रताप विषमता खोई।” रामराज्य में सब प्रसन्न हैं। सब सुखी हैं। गांधी जी रामराज्य पर मोहित थे।

कुछ विद्वान राम को कल्पना बताते रहे हैं। अब वे निराश और हताश हैं। राम इतिहास, शास्त्र, पुराण और लोकश्रुति अनुश्रुति के भी महानायक हैं। इंडोनेशिया, बाली, जावा, लाओस, कम्बोडिया, इंग्लैंड और अमेरिका तक रामकथा की धूम रहती है। मार्क्सवादी चिन्तक डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है, ”दण्डक वन और रामायण में राम के साथ लक्ष्मण और सीता का समय इसी वन में बीता है। दण्डक वन की ऐतिहासिक वास्तविकता सही है।” श्रीराम इसी ऐतिहासिक क्षेत्र के इतिहास पुरुष हैं। डॉ. शर्मा ने लिखा है, ”यूरोप या एशिया में किसी महाकाव्य का नायक ऐसा लोकप्रिय नहीं हुआ जैसा रामायण के राम हैं। उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसी विशेषता है, जो केवल भारतीय जनता को नहीं वरन मानव मात्र की भावनाएं व्यक्त करती है। परिवार में वह नई तरह के सम्बंध कायम करते दिखाई पड़ते हैं। सुख दुख में समान रूप से भागीदार। महाभारत की तरह रामायण इतिहास भी है। इसके नायक भी इतिहास के पात्र हैं।” डॉ. शर्मा ने मार्क्सवादी होकर भी श्रीराम को इतिहास का पात्र बताया है।

वामपंथी विद्वान श्रीराम को ऐतिहासिक पात्र नहीं मानते। उनका ज्ञान और इतिहासबोध दयनीय है। श्रीराम के प्रति लोकजीवन की श्रद्धा है और आस्था भी। आस्था की भावना शून्य से नहीं पैदा होती। आस्था का विकास किसी राजाज्ञा से नहीं होता। यह साल-सौ पचास साल में नहीं बनती। आस्था लोक और इतिहास से सामग्री लेती है। जीवन मूल्यों से संगति बैठाती है। वैज्ञानिक विवेक पर कसती है। संस्कृति, दर्शन और लोकमंगल के तत्वों से जांचती है। यूरोपीय इतिहास में राजाओं की विवरणी होती है। भारतीय इतिहास दृष्टि इससे भिन्न है। यहाँ लोकमंगल वरेण्य है। इतिहास की भारतीय दृष्टि में-राम इतिहास ही हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम होने के कारण आस्था का विषय भी हैं।

सम्प्रति एक नई तरह का नवजागरण हो रहा है। राष्ट्रीय स्वाभिमान सातवें आसमान पर है। 22 जनवरी की अधीर प्रतीक्षा है। पूरब के क्षितिज अरुण तरुण हो रहे हैं। ग्रह नक्षत्र सुमंगल योग बना रहे हैं। दिव्य शक्तियां अयोध्या के आकाश पर नृत्य कर रही हैं। दर्शन की प्यास बढ़ रही है। तुलसीदास ने बताया है कि राम राज्यारोहण के अवसर पर चारों वेद मनुष्य रूप में आए थे। 22 जनवरी के महोत्सव के लिए वेद और उपनिषद भी आ गए होंगे। वाल्मीकि, विश्वामित्र व वशिष्ठ तो आएंगे ही। भारत का लोक ऐसे सभी आगंतुकों के स्वागत की प्रतीक्षा में है। ऐसे सभी पूर्वजों अग्रजों को प्रणाम। हम सब ऋग्वेद का मंत्र, ”इदं नमः पूर्वेभ्यः पूर्वजेभ्यः ऋषिभ्यः-पूर्वजों को नमस्कार, ऋषियों को नमस्कार, मार्गदृष्टाओं को नमस्कार।” दोहराते हैं।

(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)