Friday, September 20"खबर जो असर करे"

स्मृति शेषः एक सुरुचिपूर्ण सपाटबयान पत्रकार का अवसान

– डॉ. प्रभात ओझा

डॉ. वेद प्रताप वैदिक के बारे में निजी अनुभव इस लेखक जैसे अनेक लोगों के हो सकते हैं। मीडिया के किसी संस्थान में वैदिक जी का लेख छापने अथवा जारी करने से पहले उससे होकर गुजरना सुखकर के साथ नित नई जानकारी हासिल करना था। कम शब्दों में गंभीर से गंभीर विषय पर सारगर्भित लेखन डॉ. वैदिक की विशेषता रही है। मंगलवार सुबह जब उनका निधन हुआ, उसके ठीक पहले सुबह ही अखबारों में उनका अंतिम लेख पढ़ने को मिला।

लेख में वे हमारे पड़ोसी चीन की चाल सहज समझा गये। अपने लेख में वे बताते हैं कि ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने का श्रेय लेकर चीन इन दोनों देशों से भारत के अच्छे संबंधों पर असर डालना चाहेगा। सऊदी अरब और ईरान भारत के अच्छे मित्र हैं, परन्तु उन दोनों के आपसी संबंध करीब सात साल से बहुत ही खराब चल रहे थे। उनमें मेल कराने के बाद चीन दोनों को अहसास करना चाह रहा है कि वह उन दोनों के लिए भारत से बेहतर मित्र है।

वैदिक जी का उक्त लेख बहुत छोटा-सा है। अधिकतम 350-400 शब्दों में अपनी बात कहने के वे अभ्यस्त रहे। कारण समझने के लिए हमें वैदिक जी की समझ से गुजरना होगा। उन्हें सुनते और पढ़ते समय लेखक में अत्यधिक अहम होने तक का अहसास हो सकता है। फिर जब हम जानेंगे कि यह अपनी बात सीधे सपाट शब्दों में कहने के कारण पैदा होता है। एक तो वे भारतीय भाषाओं के प्रबल पक्षधर रहे। अपने शोधपत्र को हिन्दी भाषा में रखने के लिए उनके संघर्ष से पाठक वर्ग परिचित हैं। हिन्दी में लेखन के दौरान लगता है कि उन्होंने खुशवंत सिंह की शैली अपनाई। उन्हीं की तरह यह बताना कि अमुक विषय में मैंने क्या किया। इस मसले को इस तरह से देखा जाय तो हम ऐसे पत्रकारों को समझ सकेंगे, जो अपने अनुभव के बल पर लिखा करते थे।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अफगान अंतरराष्ट्रीय मामलों में अध्ययन के साथ वैदिक जी ने मॉस्को में इंस्टीट्यूट ऑफ पीपल ऑफ एशिया और लंदन के स्कूल ऑफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज से भी पढ़ाई की थी। उन्होंने 50 से अधिक देशों की यात्रा ही नहीं की, उन देशों के समाज और राजनीति पर उनका गहरा अध्ययन था। यही कारण है कि उनकी कई रिपोर्ट उत्कृष्टता के चलते शोध की श्रेणी में मानी गईं और विभिन्न पुरस्कारों से नवाजी गयी। ये सम्मान उनकी पत्रकारिता और पत्रकारिता की भाषा, दोनों ही के लिए थे।

यहां याद करना होगा कि हिन्दी में फीचर सेवा के मामले में उनकी शुरुआत आज तक अतुलनीय मानी जाती है। हाफिज सईद जैसे भारत विरोधी कट्टरवादी से उनका इंटरव्यू विवादों का विषय बना और इसपर वैदिक जी को भी गिरफ्तार कर मुकदमा चलाने की मांग उठी। यह डॉक्टर वैदिक का साहस था कि उन्होंने ऐसी मांग करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं पर ‘थूकने’ तक की बात कह डाली। वैदिक जी में यह साहस पत्रकारिता के प्रति समर्पण, उसके सिद्धांत और मर्म की समझ के कारण उत्पन्न हुआ थी। पत्रकारिता में ऐसे साहस की जरूरत हमेशा बनी रहेगी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)