– ऋतुपर्ण दवे
मणिपुर में जो हुआ, बेहद शर्मनाक है। उससे भी शर्मनाक पुलिस संरक्षण में जा रही पीड़िता को भीड़ द्वारा छुड़ा लेना…। और उससे भी शर्मनाक अपराधियों की करतूत का विरोध करने का साहस दिखाने वाले निर्वस्त्र पीड़िता के पिता और भाई की भी हत्या…। और सबसे ज्यादा शर्मनाक एफआईआर लिखे जाने में हुई देरी। देश गुस्से में है। होना भी चाहिए। अगर इंसानों का सभ्य समाज जिंदा है तो जिंदा दिखना भी चाहिए। माना कि चार मई की घटना की सच्चाई का 21 सेकेंड का वीडियो इंटरनेट बंदी के चलते मणिपुर की बाहरी दुनिया को जल्द पता नहीं चल पाया। लेकिन स्थानीय पुलिस को 19 जुलाई तक पता नहीं चलना कई लिहाज से दुखद व शर्मनाक है। व्यवस्था को शर्म आनी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को खुद आगे आकर दखल देना पड़ा।
प्रधानमंत्री खुद इसे कहते हैं कि मणिपुर की घटना से उनका हृदय पीड़ा में है। शर्मसार करने वाली घटना है। पापी कौन हैं। कितने हैं। वो अपनी जगह है लेकिन बेइज्जती पूरे देश की हुई है। 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ा है। सवाल महज तीन महिलाओं की आबरू का नहीं है। पीड़िता का बयान बहुत दर्दनाक है। दुखद यह भी है कि आरोपितों में से एक पीड़िता के भाई का दोस्त था। सच में मणिपुर में नफरत की दीवार इंसानियत और रिश्तों को तार-तार करने की हद पार कर चुकी है। इनमें एक पीड़ित महिला के पति भारतीय सेना में सूबेदार होकर रिटायर हुए हैं। वो कारगिल की लड़ाई लड़ चुके हैं। भारी मन से कहते हैं कि उन्होंने बड़ी-बड़ी लड़ाई लड़ीं। अब उन्हें उनका घर भयावह युद्ध के मैदान से ज्यादा खतरनाक लगने लगा है।
मणिपुर में पिछले 83-84 दिनों से हिंसा जारी है। राजधानी इंफाल बीचों बीच बसा प्रदेश का 10 प्रतिशत हिस्सा है। इसमें 57 प्रतिशत आबादी रहती है। बाकी 90 प्रतिशत पहाड़ी इलाके हैं। इनमें 43 प्रतिशत लोग रहते हैं। इंफाल घाटी मैतेई बहुल है। यहां ज्यादातर हिंदू हैं तथा आबादी के लिहाज से 53 प्रतिशत है। मणिपुर के 60 में से 40 विधायक इसी समुदाय के हैं। दूसरी ओर पहाड़ों में 33 मान्य जनजातियां आबाद हैं जो नगा और कुकी हैं। दोनों खासतौर पर ईसाई हैं। 8-8 प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है। संविधान का अनुच्छेद 371-सी पहाड़ी जनजातियों को वो विशेष दर्जा और सुविधाएं देता है, जो मैतेई को नहीं मिलते।
इसी लैंड रिफॉर्म एक्ट के कारण मैतेई पहाड़ों में जमीन नहीं खरीद सकते जबकि जनजातीय के पहाड़ों से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। बस इसी कारण दोनों में मतभेद हुए जो वक्त के साथ बढ़ते चले गए। कुकी और मैतेई के बीच बढ़ती दूरियों की वजह भले ही कुछ भी हो लेकिन यदि इसके समाधान की कोशिश होतीं तो शायद मणिपुर में हिंसा के शोल नहीं भड़कते।मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति से इस मसले का हल संभव है।
यह वही मणिपुर है जहां महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा अधिकार प्राप्त हैं। एशिया का सबसे बड़ा महिला बाजार एमा मार्केट राजधानी इंफाल की शोभा बढ़ाता है। अंग्रेजों के विरोध आंदोलन का खासा इतिहास भी है। शराबबंदी पर मणिपुरी महिलाओं की जागरुकता बड़ी मिशाल है। उग्रवाद के उफान के वक्त भी महिलाओं के साथ ऐसी शर्मनाक घटनाएं नहीं हुईं।
मणिपुर पुलिस का रविवार तड़के आया एक ट्वीट महत्वपूर्ण है। इसमें पहाड़ी और घाटी दोनों जिलों के विभिन्न क्षेत्रों में कुल 126 नाके और जांच चौकियां बनाने और हिंसा के संबंध में 413 लोगों को हिरासत में लेने की बात लिखी है। राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-37 पर जरूरी सामान की आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक वस्तुओं के साथ 749 वाहनों की और एनएच-2 पर 174 वाहनों की आवाजाही सुनिश्चित करने का दावा भी किया गया है। काश, पुलिस पहले चेत जाती?
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)