– आशीष वशिष्ठ
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 29 जनवरी को भुवनेश्वर में थे। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा- ‘2024 लोकसभा चुनाव लोकतंत्र को बचाने का आखिरी मौका होगा। अगर इस चुनाव में भाजपा जीती तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस देश में दोबारा चुनाव नहीं होने देंगे। वे एक तानाशाह की तरह इस पर रोक लगाएंगे।’ कांग्रेस अध्यक्ष के बयान से देश की सबसे पुरानी और सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी की हताशा, निराशा और पराजय स्पष्ट झलकती है। कांग्रेस अध्यक्ष जब यह कहते हैं कि मोदी दोबारा सत्ता में आए तो कोई चुनाव नहीं होगा। आपके पास मतदान का आखिरी मौका है। ऐसा बयान देते समय शायद खड़गे अपनी ही पार्टी का चरित्र, आचरण, कृत्य और इतिहास भूल जाते हैं। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में लगभग छह दशक कांग्रेस ने देश की सत्ता को संभाला। इस कालावधि में उसने लोकतंत्र को कमजोर और कलंकित करने के एक नहीं कई काम किये। कांग्रेस सरकार की तानाशाही रवैये और व्यवहार के किस्सों की भी कोई कमी नहीं है।
कांग्रेस ने 25 जून, 1975 को देश को इमरजेंसी के दलदल में धकेल दिया। इस दौरान कांग्रेस ने लोकतंत्र का गला घोंटने का काम किया। रातों रात लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए। कांग्रेस ने न सिर्फ विपक्षी दलों के नेताओं बल्कि सच के साथ खड़े पत्रकारों का भी दमन किया। विरोध की आवाज को दबाने के लिए पूरे विपक्ष को जेल में डाल दिया गया। बड़े मीडिया संस्थानों तक के संपादकों को गिरफ्तार किया जा रहा था, उन पर पाबंदियां लगाई जा रही थीं। अलोकतांत्रिक रूप से बाबा साहब के संविधान में संशोधन किया गया। कांग्रेस ने संवैधानिक संस्थाओं को भी कमजोर किया।
खड़गे को याद करना चाहिए कि, मीसा कानून कौन लेकर आया था? मीसा में आपातकाल के दौरान कई संशोधन किए गए और इंदिरा गांधी की निरंकुश सरकार ने इसके जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने का काम किया। इंदिरा सरकार की अमानवीयता का आलम यह था कि दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में नसबंदी से इनकार करने वाले लोगों पर अत्याचार किया गया। पुलिस की गोलीबारी में कई लोग मारे गए। महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने की बातें करने वाली कांग्रेस को उनके विचारों से भी डर लगने लगा था। उस समय इंदिरा गांधी ने किशोर कुमार के गानों को बैन कर दिया था। आपातकाल थोपने वाली कांग्रेस के काले कारनामों के बारे में जानकर हर कोई सन्न रह जाता है। केंद्र में विपक्ष में बैठी कांग्रेस लोकतंत्र की दुहाई देती है। लेकिन उसके शासित राज्यों में जिस तरह विपक्ष और मीडिया का दमन किया जाता है, उससे कहा जाता है कि समय बदल गया है, लेकिन कांग्रेस की आपातकालीन मानसिकता नहीं बदली है, वो आज भी जारी है।
लोकतंत्र की दुहाई देने वाले कांग्रेस के नेता शायद भूल गए कि राजीव गांधी के जमाने में एक अखबार ने कुछ खिलाफ लिखा, तो उनके विरुद्ध ही मामला दर्ज कर दिया गया और संस्थान की बिजली तक काट दी गई थी। टेलीग्राफ एक्ट कौन लेकर आया था…? राजीव गांधी के जमाने में ही टेलीग्राफ एक्ट आया था, जिसके तहत सरकार आम लोगों के पत्र पढ़ सकती थी और कार्रवाई कर सकती थी। पीवी नरसिंहाराव ने पैसे देकर सरकार बनाई, कोर्ट में साबित हो गया था। लोकसभा का कार्यकाल इंदिरा गांधी ने बढ़ाया था। जब कांग्रेस नेता ‘इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इस इंडिया’ का नारा लगाते थे तो क्या उन्हें इस नारे में तानाशाही की बू नहीं आती थी? अनुच्छेद 356 का कांग्रेस ने किस तरीके से उपयोग किया है, ये काफी दिलचस्प है। कांग्रेस ने अपने शासनकाल के दौरान अनुच्छेद 356 का प्रयोग करते हुए 91 बार गैर कांग्रेसी सरकारों को हटाने का काम किया। पिछले दस सालों में मोदी सरकार ने एक बार भी अनुच्छेद 356 का प्रयोग नहीं किया।
बीते पांच छह सालों में कांग्रेस शासित राज्यों में तानाशाही की वारदात और करतूतें देशवासियों को याद हैं। राहुल गांधी की आलोचना करने पर कॉलेज के प्रोफेसर को बर्खास्त किया गया। राजीव गांधी के बारे में लिखने पर युवा भाजपा नेता तेजिंदर सिंह बग्गा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। राहुल गांधी ने न्यायपालिका और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। सोनिया गांधी का बचपन का नाम लेने पर पत्रकार अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तार कर उत्पीड़न किया गया। राहुल गांधी ने वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी का अपमान किया। सोनिया और राहुल गांधी पर विज्ञापन देने वाली कांपनी के दफ्तर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने तोड़फोड़ की। लोकतंत्र की दुहाई देने वाली कांग्रेस अपने इन कर्मों को किस श्रेणी में रखेगी?
इंडी गठबंधन जिसमें कांग्रेस प्रमुख घटक दल है, ने 2023 में एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए उन 14 टीवी एंकरों की एक सूची जारी की है, जिनके प्रोग्राम में उनका प्रतिनिधि नहीं जाएगा। ये जगजाहिर है कि टीवी एंकरों का बहिष्कार करने के पीछे पूरी रणनीति कांग्रेस की थी। गैर भाजपाशासित राज्यों में विपक्ष के राजनीतिक दलों के नेताओं-कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और आम जनता के साथ सरकारी तंत्र जिस तानाशाही रवैये से पेश आ रहा है, वो किसी से छिपा नहीं है।
कांग्रेस के अलावा कई अन्य दल भी मोदी सरकार पर तानाशाही के आरोप जड़ते हैं। लेकिन उनके पास एक भी ऐसा उदाहरण नहीं जिससे वो साबित कर सकें कि मोदी सरकार ने कौन सा ऐसा काम किया है, जो तानाशाही की श्रेणी में आता है। या जिससे लोकतंत्र का गला घुटा हो। मोदी सरकार के हर निर्णय पर विपक्ष को ऐसा लगता है कि लोकतंत्र की हत्या हो गई है, लोकतंत्र का गला घोटा जा रहा है, या फिर लोकतंत्र खतरे में है। वास्तव में उन्हें विरोध के लिए विरोध करना है। उनके हाथ में न कोई मुद्दा है और न ही जनसमर्थन और जनविश्वास उनके साथ है।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि सामान्य आंतरिक आलोचना विरोध भले ही हो, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, जापान जैसे सम्पन्न शक्तिशाली देश भारत के लोकतंत्र और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की सराहना कर अंतरराष्ट्रीय शांति तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका मान रहे हैं। चीन तक ने भारत की आर्थिक शक्ति को स्वीकारा है। इसका एक बड़ा कारण भारत में सरकार का स्थायित्व और बढ़ती जागरुकता, सामाजिक, आर्थिक, सामरिक ताकत है। राजनीतिक विरोध का स्तर इतना गिर चुका है कि संविधान की शपथ लिए हुए कुछ नेता सड़क पर धरना-आंदोलन और संसद द्वारा पारित कानून के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के जरिये जनमत संग्रह तक की शर्मनाक मांग करने लगे हैं? दुनिया के किस देश में राज्यों में बैठे सत्ताधारी क्या इस हद तक अपनी ही राष्ट्रीय सरकार और नीतियों का विरोध करते हैं? कभी अपनी सेना को पेंशन के लिए भड़काते हैं, तो कभी सीमा पर उनकी क्षमता पर संदेह कर चीन के भारतीय सीमा में घुसी होने के आरोप लगाते हैं।
भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं। आम भारतीय की लोकतंत्र के प्रति गहरी आस्था और विश्वास है। ऐसे में किसी नेता या राजनीतिक दल का यह सोचना कि लोकतंत्र की हत्या हो रही है,विशुद्ध तौर पर राजनीतिक बयान लगता है। अगर भ्रष्ट नेताओं पर कार्रवाई करना तानाशाही है; अगर, देश को संविधान के मुताबिक चलाना तानाशाही है; अगर संवैधानिक संस्थाओं और संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की मान मर्यादा कायम रखना तानाशाही है; अगर देश को सुधार के रास्ते पर लेकर जाना तानाशाही है; अगर भ्रष्टाचार पर नकेल कसना तानाशाही है; अगर देश की उन्नति के बारे में सोचना तानाशाही है; अगर देश के प्रति वफादारी निभाना और राष्ट्र प्रेम का प्रदर्शन तानाशाही है; अगर गरीबों, वंचितों और शोषितों का कल्याण तानाशाही है; अगर तुष्टिकरण की बजाय सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास तानाशाही है तो मुझे ही नहीं हर सच्चे देशवासी को ये तानाशाही स्वीकार है। कांग्रेस और विपक्ष के नेताओं को यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए उन्माद नहीं सही मुद्दों और समाज को जागरूक एवं शिक्षित करने की जरुरत होती है। वर्तमान में विपक्ष के नेता गलत जानकारी और भय का वातावरण बनाकर जनता को भ्रमित करते दिखाई देते हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)