Friday, November 22"खबर जो असर करे"

महाकाल लोक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

– डॉ दिलीप अग्निहोत्री

भारतीय सभ्यता और संस्कृति दुनिया में सर्वाधिक प्राचीन है। सभ्यताओं के प्रादुर्भाव के साथ वह तिरोहित भी हुई। मध्यकाल में आक्रांताओं के आस्था के स्थलों पर बेहिसाब हमलों के बाबजूद यह शाश्वत संस्कृति गरिमा के साथ कायम है। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मंदिर का भव्य निर्माण हुआ। उनके बाद ऐसे सभी विषयों को सांप्रदायिक घोषित कर दिया गया। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रचलित राजनीति में बदलाव हुआ। सांस्कृतिक विषयों को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। तीर्थाटन और पर्यटन अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में समाहित हुए। पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के विश्वस्तरीय विकास का संकल्प लिया गया। यह महत्वपूर्ण है कि विश्व के अन्य हिस्सों में जब मानव सभ्यता का विकास भी नहीं हुआ था तब हमारे यहां राष्ट्र प्रादुर्भाव हो चुका था। ऋग्वेद में राष्ट्र का सुंदर उल्लेख है। राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं के साथ ही सांस्कृतिक व्यापकता को दर्शाने वाले वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में हैं। भारत का भौगोलिक व सांस्कृतिक क्षेत्र बहुत विस्तृत था।

देश के मठ और मंदिर हमारे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं। भारत ने जब तक अपनी इस महान विरासत पर गर्व किया, तब तक यहां के लोग राष्ट्रीय स्वाभिमान से प्रेरित रहे। तब तक भारत समर्थ रहा। वह विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठत रहा। आज उसी राष्ट्रीय स्वाभिमान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तन्मयता से जागृत करने में जुटे हैं। उन्होंने संकल्प से सिद्धि के अनेक ऐतिहासिक कार्य किए हैं। अयोध्या में जन्मभूमि पर पांच शताब्दी पुराना भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण का संकल्प पूरा होने को है। श्री काशी विश्वनाथधाम संकरी गलियों में सिमट गया था। इसको भव्य बनाने की पहले कभी चर्चा नहीं होती थी। प्रधानमंत्री के प्रयासों से यह कार्य भी सिद्ध हुआ। इसी प्रकार श्री विंध्यवासिनी धाम का भव्य निर्माण हो रहा है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की यह यात्रा जारी है। उज्जैन में विश्वप्रसिद्ध श्री महाकाल लोक का लोकार्पण कर प्रधानमंत्री ने इस यात्रा का महान पड़ाव पार कर लिया है। उनके इस संकल्प में योगी आदित्यनाथ और शिवराज सिंह चौहान सहायक बने हैं। यदि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अपने को सेक्युलर कहने वाली तथाकथित सरकारें होतीं तो यह कार्य सहज संभव नहीं हो पाता।

महाकाल लोक में अलग9अलग प्रदेशों की सांस्कृतिक झलक अनेकता में एकता का प्रतिबिम्ब है। उज्जैन में भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद प्रतिध्वनित हुआ है। आस्था और अध्यात्म की पावन नगरी ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनी है। प्रधानमंत्री ने कहा9 भव्य और दिव्य श्री महाकाल लोक को राष्ट्र को समर्पित करने का सौभाग्य मिला। हर-हर महादेव। देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर की अपनी महिमा है। दक्षिणमुखी शिवलिंग का यह एक मात्र धाम है। यह जागृत और स्वयंभू शिवलिंग है। बाबा महाकाल की उत्पति अनादि काल में मानी गई है। आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् । भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥ की स्तुति यहां का कण-कण, जन-जन करता है। महाकाल मंदिर में सामान्यतः चार आरती होती हैं। भस्म आरती केवल पुरुष ही देखते हैं। धाम का निर्माण राणोजी शिन्दे शासनकाल में हुआ था।

प्रथम खंड में महाकालेश्वर, मध्य खण्ड में ओंकारेश्वर और सर्वोच्च खण्ड में नागचन्द्रेश्वर के शिवलिंग विराजमान हैं। शिखर के तीसरे तल पर भगवान शंकर-पार्वती नाग के आसन और उनके फनों की छाया में बैठे हैं। इसके दर्शन वर्ष में एक बार श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी के दिन होते हैं। प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा है कि भारत के सांस्कृतिक वैभव की पुनर्स्थापना का लाभ न केवल भारत अपितु पूरे विश्व एवं समूची मानवता को मिलेगा। उज्जैन में श्री महाकाल लोक की स्थापना इसी की कड़ी है। यह काल के कपाल पर कालातीत अस्तित्व का शिलालेख है। उज्जैन आज भारत की सांस्कृतिक अमरता की घोषणा और नए कालखंड का उद्घोष कर रहा है। हमारे लिए धर्म का अर्थ कर्तव्यों का सामूहिक संकल्प, विश्व का कल्याण एवं मानव मात्र की सेवा है। आजादी के पहले देश ने जो खोया था, उसकी आज पुनर्स्थापना हो रही है।

भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन प्रलय के प्रहार से मुक्त है। उज्जैन काल गणना एवं ज्योतिषिय गणना का केंद्र है। यह भारत की आत्मा का केंद्र भी है। यह पवित्र सात पुरियों में एक है। यहां भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा ग्रहण की। विक्रमादित्य के प्रताप से भारत के स्वर्णकाल की शुरुआत हुई। विक्रम संवत महाकाल की भूमि से ही शुरू हुआ। यहां कालचक्र के चौरासी कल्पों के प्रतीक चौरासी महादेव, चार महावीर, छह विनायक,आठ भैरव,अष्टमातृका,नौ ग्रह, दस विष्णु, ग्यारह रूद्र, बारह आदित्य, चौबीस देवियां एवं 88 तीर्थ हैं। इन सबके केंद्र में कालाधिराज महाराज विराजमान हैं। पूरे ब्रह्माण्ड की ऊर्जा को ऋषियों ने प्रतीक रूप में समाहित किया। कालिदास एवं बाणभट्ट की रचनाओं में यहां की सभ्यता, संस्कृति, शिल्प और वैभव का वर्णन मिलता है। किसी राष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव, उसकी पहचान उसकी सफलता की सबसे बड़ी निशानी है।

यह सच है कि आज भारत के सभी धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्रों का विकास किया जा रहा है। सोमनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि तीर्थों का समुचित विकास सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुनर्जागरण की दिशा में बड़ी पहल है। उत्तराखंड के चारधाम प्रोजेक्ट में शामिल ऑल वेदर रोड लाइफ लाइन साबित होगी। महाकाल लोक अतीत के गौरव के साथ भविष्य के स्वागत के लिए तैयार है। कोणार्क का सूर्य मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, मोढेरा का सूर्य मंदिर, तंजौर का ब्रह्मदेवेश्वर मंदिर, कांचीपुरम का तिरूमल मंदिर, रामेश्वरम मंदिर, मीनाक्षी मंदिर और श्रीनगर का शंकराचार्य मंदिर हमारी निरंतरता और परंपरा के वाहक हैं। भारत आज विश्व के मार्गदर्शन के लिए फिर तैयार है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)