Friday, November 22"खबर जो असर करे"

मध्‍यप्रदेश के 70% शासकीय विद्यालय हैं संसाधन विहीन, तब कैसे पढ़े और बढ़ें बच्‍चे ?

भोपाल । मध्य प्रदेश सरकार ने कहने को पिछले साल ही अपने यहां ”राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020” को लागू कर दिया और इसके साथ ही वह ऐसा करनेवाला देश में पहला राज्य भी बन गया। राज्य सरकार ने ऊपर से नीचे की ओर यानी कि उच्चतम कक्षाओं से प्राथमिक स्तर की कक्षाओं तक शनै-शनै चलकर आगे इसे लागू करने की बात भी कही, लेकिन बड़ा प्रश्न है कि जब प्रदेश के शासकीय विद्यालयों में बच्चों को मिलने वाली मूलभूत सुविधाएं ही नहीं, तब सरकार कैसे अपने संकल्प को साकार करेगी? कहने को देश में सबसे पहले ”चाइल्ड बजट” यहीं पेश किया गया है। 57 हजार 803 करोड़ रुपये के भारी भरकम बजट के बावजूद बच्चों तक आज वह मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं, जिनके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार प्रयास कर रहे हैं।

प्रदेश की 70% पाठशालाएं हैं संसाधन विहीन
मध्य प्रदेश विधानसभा के पांच दिवसीय शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में जिस तरह से दो सदस्यों ने राज्य की स्कूली शिक्षा को लेकर आंकड़े रखे, उसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इन आंकड़ों को सही मानें तो इसके आधार पर प्रदेश की लगभग 70 प्रतिशत पाठशालाएं ”फर्नीचर” विहीन हैं। इस संबंध में विशेष बातचीत में ग्वालियर दक्षिण से कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने कहा कि विधानसभा में मेरे द्वारा पूछा भी गया कि कब मेरे क्षेत्र के विद्यालयों में फर्नीचर उपलब्ध हो पाएगा?

उन्होंने बताया कि जिस क्षेत्र से वे विधायक चुने गए उसमें 20 प्राथमिक विद्यालय हैं, जिसमें से 17 में फर्नीचर नहीं हैं। 20 माध्यमिक विद्यालय हैं, जिनमें से एक में भी यानी 20 के 20 में फर्नीचर नहीं हैं। पांच हाई स्कूल हैं, उन सभी में फर्नीचर की कमी है। इसी तरह से आठ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं, जिसमें से छह विद्यालयों में फर्नीचर न के बराबर है। पाठक कहते हैं कि मध्य प्रदेश के 52 जिलों में 230 विधानसभा क्षेत्र हैं। अकेले मेरे विधानसभा क्षेत्र में 14,362 विद्यार्थियों में से 5,742 विद्यार्थियों के पास बैठने के लिये फर्नीचर नहीं है। अब आप अन्य 229 विधानसभा क्षेत्रों का आंकड़ा इस आधार पर स्वयं ही निकाल सकते हैं।

साढ़े सत्रह हजार स्कूली विद्यार्थियों के बीच 170 कम्प्यूटर
पाठक बताते हैं कि उनके द्वारा स्कूली शिक्षा मंत्री और उनके विभाग के आला अधिकारियों को अब तक अनेकों पत्र लिखे जा चुके हैं। हर बार यह विषय उठाया है। किंतु विद्यालयों में फर्नीचर की उपलब्धता नहीं, नये भवनों का निर्माण नहीं, विद्यार्थियों के लिये पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं। जर्जर भवनों में संचालित ये शासकीय विद्यालय आज प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था की बड़ी चुनौती हैं। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत विद्यार्थियों को कम्प्यूटर की शिक्षा दिए जाने की जो बात है, वह भी पूरी नहीं हो रही। विधानसभा क्षेत्र ग्वालियर दक्षिण में साढ़े सत्रह हजार स्कूली विद्यार्थियों के बीच 170 कम्प्यूटर हैं, जिसमें कि 155 कम्प्यूटर तो इसी वर्ष खरीदे गए। इसी से आप शिक्षा के प्रति सरकार की संवेदनशीलता का पता लगा सकते हैं।

नींव कमजोर तो कैसे बने स्वर्णिम मध्य प्रदेश ?
प्रवीण पाठक अपनी बातचीत में यह भी जोड़ते हैं कि आज 18 वर्ष भाजपा को यहां अपनी सरकार चलाते हुए हो गए। फिर भी बच्चों को आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं हो पाए! यह शिवराज जी पर भी प्रश्नचिन्ह जैसा है। यह सिर्फ बच्चों के साथ छलावा नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, क्योंकि यही नींव आगे जाकर मध्य प्रदेश को स्वर्णिम बनाएगी।

”जीईआर” के लिए शिवराज सरकार को उठाने चाहिए विशेष कदम
उन्होंने बताया कि वे अपने क्षेत्र में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) फंड का अधिकतम उपयोग कर रहे हैं। विधायक स्टेशनरी बैंक भी चल रही है। ऐसे अनेक नवाचार प्रदेश की भाजपा सरकार को भी करने चाहिए। हमारी नेशनल एजुकेशन पॉलिसी का मुख्य उद्देश्य ही यही है कि ज्ञान के प्रकाश से आबद्ध होकर भारत संपूर्ण विश्व में गुरु के रूप में उभरे। लेकिन प्रदेश की वर्तमान व्यवस्था में शिक्षा की गुणवत्ता एवं जरूरी संसाधनों के अभाव में ऐसा होता हुआ दिखता नहीं। इसलिए जिस ग्रॉस एनरॉलमेंट रेशियो (जीईआर) को अगले 14 सालों में मौजूदा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक पहुंचाने का लक्ष्य केंद्र सरकार ने ”नई शिक्षा नीति 2020” के माध्यम से रखा है, उसके लिए जरूरी है कि प्रदेश की सरकार सभी स्कूलों में जरूरी संसाधनों एवं शिक्षकों की पूर्ति बिना समय गंवाए करे।

उल्लेखनीय है कि ग्रॉस एनरॉलमेंट रेशियो शिक्षा के क्षेत्र में मापी जाने वाली वह इकाई है, जिसके अनुसार अलग-अलग कक्षाओं में देशभर में कितने छात्र-छात्राओं ने विद्यालयों में प्रवेश लिया है, यह मापा जाता है। इनपुट : न्‍यूज एजेंसी हिन्‍दुस्‍थान समाचार।