– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के निघासन में दो सगी हिंदू बहनों को जबरिया उठाकर ले जाना, फिर उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म कर उन्हें पेड़ से लटकाने के बाद गला दबाकर हत्या कर देने की वारदात ने सभ्य समाज को अंदर तक हिला दिया है। संयोग देखिए कि यह ‘दरिंदे’ मुस्लिम हैं । गिरफ्तार किए गए छह आरोपितों के नाम जुनैद, सोहैल, आरिफ, हाफिज, छोटे और करीमुद्दीन हैं। विश्व के किसी भी कोने की अधिकांश आतंकवादी घटनाओं को प्राय: इस्लाम से जोड़ा जाता रहा है और इस राय की तीखी आलोचना भी होती है। परन्तु क्या कोई इस तथ्य को नकार सकता है कि पूरी दुनिया में घट रही अधिकांश आतंकी घटनाओं में इन्हीं इस्लामिक चरमपंथियों का हाथ बार-बार सामने आता है। वर्ष 1947 के बाद विभाजित भारत में पिछले 75 सालों के अध्ययन का निष्कर्ष डरावना है। देश में दंगों का इतिहास हो या तमाम साम्प्रदायिक घटनाएं। 80 प्रतिशत हिन्दू जनसंख्या होने के बाद भी किसकी इस घटनाओं में कितनी पहल, भागीदारी और घटनाओं की संख्या का प्रतिशत है, आप स्वयं आंकड़े उठाकर देख सकते हैं। इसके इतर भारत के दो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और बांग्लादेश हैं। वहां हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। उनकी स्थिति बहुत खराब है।
क्या माना जाए ? यह सिर्फ संयोग है? या इस तरह की देशभर में इन दिनों घट रही सभी घटनाएं किसी खास योजना से की जा रही हैं, जिसमें सिर्फ और सिर्फ हिन्दू समाज को ही लक्षित किया जा रहा है। यह किस हद तक है। वह आप स्वयं देख सकते हैं। ”सिर कलम” करने से लेकर ”लव जिहाद”, ”मतान्तरण”, धोखा और रेप जैसी अपराध अब देश में आम हो गए हैं । यह सोचनीय है कि आखिरकार देश भर में घट रहीं अधिकांश ऐसी सभी बड़ी घटनाओं के आगे-पीछे किसी व्यक्ति या समूह में इस्लाम को मानने वाले मुसलमानों की ही प्रथम दृष्ट्या संलिप्तता क्यों बार-बार सामने आ रही है ।
बिहार में सामने आई इस घटना को अभी बहुत समय नहीं बीता है, जब फुलवारी शरीफ टेरर मॉड्यूल मामले की जांच में खुलासा हुआ कि कैसे भारत को 2047 तक मुस्लिम राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई-मुस्लिमों का एक संगठन) बिहार में अपने नेटवर्क को मजबूत करने में लगा हुआ था। फुलवारी के अहमद पैलेस से पीएफआई की आड़ में आतंकी ट्रेनिंग देने के आरोप में गिरफ्तार अतहर परवेज को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी। वह टैलेंट सर्च प्रोग्राम के जरिए अधिक से अधिक लोगों को पीएफआई से जोड़ रहा था । टैलेंट सर्च प्रोग्राम की आड़ में डिबेट और सेमिनार का आयोजन विभिन्न मदरसों और अन्य जगहों पर होता था, जिसके जरिए वैसे लोगों की तलाश की जाती थी जिनकी सोच में कट्टरपंथ हो, फिर उन लोगों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दी जाती ताकि किसी हालात से निपटने के लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर वे तैयार रहें।
झारखंड के दुमका में शाहरुख नाम के सिरफिरे ने एक नाबालिग लड़की अंकिता को जिंदा जलाकर मौत के घाट उतार दिया। इसकी पूरे देश में निंदा की जा रही थी कि तभी यहां पलामू से खबर आई कि कैसे मुस्लिम समुदाय के लोगों ने तकरीबन 50 महादलित समुदाय के लोगों को मारपीट कर गांव से भगा दिया और उनके मकान भी तोड़ दिए, ताकि वे वापिस आकर पुन: यहां न बस जाएं, जबकि ये परिवार पिछले चार दशक से इसी गांव में रह रहे थे। कहना होगा कि अकेले झारखंड के पलामू से हिन्दुओं का पलायन नहीं कराया गया है, बल्कि देश में कई राज्य ऐसे हैं जहां जिस स्थान पर मुस्लिमों की संख्या अधिक हुई, वहां लगातार हिन्दुओं को पालायन के लिए मजबूर होना पड़ा है। यानी ये हाल संपूर्ण भारत का है।
आंकड़ों से साफ है कि सबसे ज्यादा जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक समेत कुल यह 17 राज्यों में हिंदुओं को अपनी जन्मभूमि वाले स्थानों को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है या निरंतर इस तरह के प्रयास जारी हैं । झारखंड की राजधानी रांची की हाल में घटी दूसरी घटना भी देख लीजिए। यहां मुसलमान मनचलों ने स्कूल में घुसकर छात्राओं को जबरन दोस्ती करने की धमकी दी। हथियार लहराते हुए कहा कि दोस्ती करो नहीं तो उठा लेंगे। एक स्कूल से जुड़ा यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है। सभी आरोपित मुस्लिम हैं। इनकी हिम्मत तो देखिए, स्कूल के शिक्षकों और कुछ छात्रों ने इसका विरोध किया तो उन्हें भी अंजाम भुगतने की धमकी दी। इस घटना से डरी-सहमी छात्राओं के अनुसार इस तरह की धमकियां पिछले कई दिनों से जनजाति और अन्य हिंदू लड़कियों को लगातार दी जा रही हैं।
राजस्थान के उदयपुर में एक दर्जी कन्हैया लाल की निर्मम हत्या हो या राज्य में टोंक जैसे स्थान, जहां कई परिवारों ने अपने घरों के बाहर पोस्टर लगाकर बताया है कि उन्हें जान का खतरा है। यहां रह रहे बहुसंख्यक समाज के लोगों का कहना है कि अब हिन्दू परिवारों में असुरक्षा का डर बढ़ता जा रहा है। पिछले दिनों राजस्थान में अनेक घटनाएं इस प्रकार की घटी हैं, जिसमें पहल यहां के स्थानीय मुसलमानों ने की और हिन्दू पलायन जारी है। असम में बारपेटा, करीमगंज, मोरीगांव, बोंगईगांव, नागांव, ढुबरी, हैलाकंडी, गोलपारा और डारंग नौ मुस्लिम बहुल आबादी वाले जिले हैं, यहां पर आप जाएंगे तो स्पष्ट दिखाई दे जाएगा कि किस प्रकार का आतंक राज इनका कायम है। यहां बांग्लादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ के चलते राज्य के कई क्षेत्रों में स्थानीय लोगों की आबादी का संतुलन बिगड़ चुका है। इन नौ जिलों में ही नहीं, इसके आसपास के क्षेत्रों में भी कभी बहुसंख्यक रही हिन्दू जनसंख्या अल्पमत में आ चुकी है। यहां लगातार हिन्दुओं का पलायन हो रहा है।
पश्चिम बंगाल में क्या चल रहा है? यह किसी से छिपा नहीं है। 2013 में बंगाल में हुए सुनियोजित दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानें लूटे गए, साथ ही कई मंदिरों को तोड़ दिया गया था। पिछले नौ साल में इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया, बल्कि तब से अब तक रह रहकर योजनाबद्ध तरीके से यहां यह सिलसिला जारी है । पश्चिम बंगाल के कई जिले ऐसे हैं, जहां पर मुस्लिमों ने हिन्दुओं की जनसंख्या को फसाद और दंगे के माध्यम से पलायन के लिए मजबूर किया हुआ है । इसी प्रकार से देश में अन्य राज्यों में घट रहीं अनेक घटनाएं हैं जो इस बात का प्रमाण देती हैं कि कैसे यहां हिन्दुओं को भय और आतंक के साए से दूर अपने जीवन के रक्षार्थ अपनी जमीन एवं अपना घर छोड़कर दूसरे स्थानों पर विवशता में जाना पड़ रहा है।
लखीमपुर खीरी की घटना को इस दृष्टि से भी देखा जा सकता है कि अब भारत के इन मुसलमानों को न किसी कानून का भय है और न ही वे किसी अन्य से ही डरते हैं। उनके लिए मानवता, मानवाधिकार और संवेदना से ऊपर कौम और उसकी बढ़ोतरी है। इनके लिए सर्वोपरि है हर हाल में अपनी संख्या बढ़ाते जाना, फिर इसके लिए कुछ भी क्यो न करना पड़े। देश में घट रही ऐसी घटनाएं तो फिलहाल इसी ओर इशारा कर रही हैं।
(लेखक, फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं)।