Friday, November 22"खबर जो असर करे"

कश्मीर रहा है सनातन हिंदू संस्कृति का गढ़

– प्रहलाद सबनानी

अतिप्राचीन भारत में कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। इस इलाके में ही दक्ष राजा का साम्राज्य था। ऐसा माना जाता है कि कश्यप ऋषि कश्मीर के पहले राजा हैं । कश्मीर को उन्होंने अपने सपनों का राज्य बनाया। संभवतः कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का प्राचीन नाम पड़ा। शोधकर्ताओं के अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। कश्यप की एक पत्नी कद्रू के गर्भ से नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। इन्हीं से नागवंश की स्थापना हुई।

आज भी कश्मीर में इन नागों के नाम पर ही कई स्थानों के नाम हैं। कश्मीर का अनंतनाग नागवंशियों की राजधानी हुआ करता था। हाल में अखनूर से प्राप्त हड़प्पाकालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन इतिहास का पता चलता है। 1184 ईसा पूर्व के राजा गोनंद से लेकर राजा विजय सिम्हा (1129 ईसवी) तक के कश्मीर के प्राचीन राजवंशों और राजाओं के प्रमाणिक दस्तावेज उपलब्ध हैं। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र पहले हिन्दू शासकों और फिर बाद में मुस्लिम सुल्तानों के अधीन रहा। बाद में यह क्षेत्र अकबर के शासन में मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। वर्ष 1756 से अफगान शासन के बाद वर्ष 1819 में यह क्षेत्र पंजाब के सिख साम्राज्य के अधीन हो गया था। जब भारत को अंग्रेजों से राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई तब धर्म के नाम पर भारत के एक बड़े भू-भाग को अलग कर पाकिस्तान बना दिया गया था। उस समय भी जम्मू, कश्मीर और लद्दाख ये तीनों अलग अलग क्षेत्र थे और यह तीनों क्षेत्र एक ही राजा के अधीन थे तथा 26 अक्टूबर, 1947 को इस क्षेत्र के शासक महाराज हरि सिंह ने अपने क्षेत्र के भारतीय संघ में विलय समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे।

विभाजन की इस त्रासदी के समय भी पाकिस्तान की सेना ने कबाइलियों के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर क्षेत्र पर आक्रमण कर इसके बहुत बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया था। इस आक्रमण का भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए कब्जा मुक्ति का अभियान बहुत सफलतापूर्वक चला रही थी। मगर बीच में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी जिसके कारण लगभग आधा जम्मू-कश्मीर आज भी पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है। यह तत्कालीन नेहरू सरकार की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल मानी जाती है, जिसके चलते यह क्षेत्र पिछले लगभग 70 वर्षों तक अशांत क्षेत्र बना रहा है। हालांकि कश्मीर सनातन हिंदू संस्कृति का गढ़ रहा है परंतु कश्मीर का इतिहास और भूगोल दोनों ही बदल दिए गए हैं। हमें ऐसा आभास कराया जाता है कि कश्मीर क्षेत्र इस्लाम के कब्जे के क्षेत्र रहा है।

तत्कालीन नेहरू सरकार की जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित दूसरी सबसे बड़ी गलती थी अनुच्छेद 370 लागू करवाना। इस धारा के अंतर्गत केंद्र सरकार को रक्षा, विदेश एवं संचार जैसे कुछ क्षेत्रों को छोड़कर शेष समस्त क्षेत्रों के लिए भारत सरकार के कानून जम्मू-कश्मीर में लागू करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेना आवश्यक होता था। अतः भारत सरकार के कानून जम्मू -श्मीर में लागू नहीं होते थे। इसका परिणाम यह निकलता था कि भारत के अन्य राज्यों से कोई भी भारतीय नागरिक जम्मू-कश्मीर की सीमा के अंदर जमीन या सम्पत्ति नहीं खरीद सकता था।

जम्मू-कश्मीर के लिए भारतीय तिरंगा के अलावा एक अलग राष्ट्रीय ध्वज भी होता था, इसलिए वहां के नागरिकों द्वारा भारतीय तिरंगा के सम्मान नहीं करने पर उन पर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं हो सकता था। यहां तक कि जम्मू और कश्मीर के सम्बंध में भारत की सुप्रीम कोर्ट द्वारा यदि कोई आदेश दिया जाता है, तो वहां के लिए यह जरूरी नहीं है कि वे इसका पालन करें। जम्मू और कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के किसी व्यक्ति से शादी कर लेती है, तो उस महिला से उसके कश्मीरी होने का अधिकार छिन जाता था।

इसके विपरीत यदि कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान में रहने वाले किसी व्यक्ति से निकाह करती है, तो उसकी कश्मीरी नागरिकता पर कोई असर नहीं होता था। साथ ही, कोई पाकिस्तानी नागरिक यदि कश्मीरी लड़की से शादी करता था और फिर कश्मीर में आकर रहने लगता था तो उस व्यक्ति को भारतीय नागरिकता भी प्राप्त हो जाती थी। यह किस प्रकार के नियम बनाए गए थे जिनके अनुसार एक भारतीय नागरिक जम्मू कश्मीर में नहीं बस सकता था परंतु एक पाकिस्तानी नागरिक यहां बस सकता था और आतंकवाद फैला सकता था।

कुल मिलाकर अनुच्छेद 370 के चलते, नागरिकों के हितार्थ पूरे देश में भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही कई योजनाओं का लाभ जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के नागरिकों को नहीं मिल पा रहा था एवं इन क्षेत्रों का विकास भी नहीं हो पा रहा था क्योंकि अत्यधिक आतंकवाद के चलते कोई भी उद्योगपति अपना निवेश इस क्षेत्र में करने को तैयार ही नहीं होता था। इस क्षेत्र के नागरिकों को लाभ पहुंचाने, इस क्षेत्र के आर्थिक विकास को गति देने एवं आतंकवाद को समूल नष्ट करने के उद्देश्य से 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर को खास दर्जा देने वाली इसे कानूनी रूप से खत्म कर दिया था।

इसके बाद से वहां कई बदलाव दृष्टिगोचर हैं। अब केंद्र के समस्त कानूनों एवं अन्य कई आर्थिक योजनाओं को वहां लागू कर दिया गया है। इससे आम नागरिकों को लाभ हुआ है। आतंकी घटनाओं में भारी कमी आई है। आतंकवादियों की कमर तोड़ दी गई है। हजारों की संख्या में स्थानीय नागरिकों को सरकारी नौकरियां प्रदान की गई हैं।

जम्मू-कश्मीर में जिस तरह इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हो रहा है, कनेक्टिविटी बढ़ रही है, उससे राज्य में पर्यटन गतिविधियों का विस्तार हुआ है और कैलेंडर वर्ष 2022 में रिकार्ड वृद्धि के साथ 26 लाख से अधिक पर्यटक वहां पहुंचे हैं। भारत की आजादी के बाद से वर्ष 2019 तक जम्मू-कश्मीर में तकरीबन 14,700 करोड़ रुपये का निवेश हो पाया था, जबकि पिछले केवल तीन वर्षों में यह चार गुना बढ़कर 56,000 करोड़ रुपये से अधिक का हो गया है। स्वास्थ्य से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर का भी तेजी से विकास हो रहा है। दो नए एम्स, सात नए मेडिकल कॉलेज, दो स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट और 15 नर्सिंग कॉलेज खुलने जा रहे हैं। इस सबसे स्थानीय नागरिकों के लिए रोजगार के नए अवसरों में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।

(लेखक, वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक एवं स्तम्भकार हैं।)