Friday, September 20"खबर जो असर करे"

जयंती विशेष: बहुत याद आते हैं जेपी

– मृत्युंजय दीक्षित

भारतीय लोकतंत्र के महानायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को बिहार के सारन जिले के सिताबदियारा गांव में हुआ था। यह वह कालखंड है जब देश स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहा था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सारन और पटना जिले में हुई । उन्होंने बिहार विद्यापीठ पटना में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लिया। इस दौरान वह स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगे। 1922 में वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गये। उन्होंने 1929 तक कैलिफोर्निया तथा विसकांसन विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। वहां पर अपने खर्च को पूरा व नियंत्रित करने के लिए खेतों व रेस्टोरेंट में काम किया। वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। उन्होने एमए की उपाधि प्राप्त की । इस बीच उनकी माता जी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और वे अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वदेश वापस आ गये। भारत वापस आने पर उनका विवाह प्रसिद्ध गांधीवादी बृजकिशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ हुआ।

जब वे अमेरिका से वापस लौटे तब भारत में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन चरम पर था। वे भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गए और 1932 में अन्य प्रमुख नेताओं के जेल जाने के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और अंततः उन्हें भी इसी वर्ष जेल में डाल दिया गया। नासिक जेल में उनकी मुलाकात मीनू मसानी,अच्युत पटवर्धन, सी के नारायणस्वामी सरीखे कांग्रेस नेताओं से हुई। जेल में चर्चा के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का जन्म हुआ। यह पार्टी समाजवाद में विश्वास रखती थी। 1939 में उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आंदोलन का नेतृत्व किया। सबसे बड़ी बात यह है कि जयप्रकाश स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में हथियार उठाने के पक्षधर थे। उन्होंने किराया और राजस्व को रोकने का अभियान चलाया। टाटा स्टील कंपनी में हड़ताल करवाकर यह प्रयास किया कि अंग्रेजों को स्टील, इस्पात आदि न पहुंच सके। इस कारण उन्हें फिर हिरासत में लिया गया। उन्हें नौ माह तक जेल की सजा सुनाई गई।

आजादी के बाद जयप्रकाश नारायण ने 19 अप्रैल, 1954 को गया में विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित कर दिया। 1959 में उन्होंने लोकनीति के पक्ष में राजनीति करने का ऐलान किया। 1974 में उन्होंने बिहार में किसान आंदोलन का नेतृत्व किया और तत्कालीन बिहार सरकार से इस्तीफे की मांग की। जयप्रकाश नारायण प्रारम्भ से ही कांग्रेसी शासन विशेषकर इंदिरा गांधी की राजनीतिक शैली के प्रखर विरोधी थे। 1975 में इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को बचाने के लिए आपातकाल लगा दिया। आपातकाल के दौरान देश के विपक्षी दलों के लगभग 600 नेताओं को जेलों में डाल दिया गया ।आपातकाल में अत्याचारों से परेशान जनता कांग्रेस से बदला लेने के लिए उतावली हो रही थी। जनता व नेताओं को अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए जयप्रकाश नारायण ने अथक प्रयासों से विपक्ष को एक किया और 1977 के चुनाव में देश को पहली बार कांग्रेस से मुक्ति मिली। दुर्भाग्यवश उनका यह अथक प्रयास बीच में ही टूट गया और पहली गैर कांग्रेसी सरकार बीच में ही बिखर गई। इससे उनको मानसिक दख पहुंचा।

लोकनायक सम्पूर्ण क्रांति में विश्वास रखते थे। उन्होंने बिहार से ही सम्पूर्ण क्रांति की शुरुआत की थी। वे घर- घर क्रांति का दिया जलाना चाह रहे थे। उनका जीवन बहुत ही संयमित व नियंत्रित रहता था । वे राजनीतिक जीवन में उच्च आदर्शों का पालन करना चाहते थे लेकिन उनके आदर्श विचार देश के कई राजनीतिक दलों को रास नहीं आ रहे थे। आज बिहार के अधिकांश नेता लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान आदि कभी जयप्रकाश आंदोलन के युवा नेता हुआ करते थे। 15 जून 1975 को पटना में ऐतिहासिक रैली में जयप्रकाश ने सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान किया था। आपातकाल के खिलाफ सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान करने वाले लोकनायक जयप्रकाश को 1998 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। लोकनायक को 1995 में मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया। 08 अक्टूबर, 1979 को उनके निधन पर सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)