Friday, November 22"खबर जो असर करे"

ब्यूरोक्रेसी को मोटिवेट करता नरेन्द्र मोदी का संदेश

– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जयपुर में देशभर के डीजी-आईजी कॉन्फ्रेंस के दौरान तीन दिन की जयपुर यात्रा के पहले दिन राजस्थान भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यालय में विधायकों-संगठन पदाधिकारियों के बीच जिस तरह से डबल इंजन की सरकार का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने पर जोर दिया, वहीं ब्यूरोक्रेसी और तबादलों को लेकर जो संदेश दिया है वह ना केवल समसामयिक है अपितु देश की ब्यूरोक्रेसी के लिए भी उत्साहवर्द्धक है। दरअसल सरकार बदलते ही पूर्व सरकार से जुड़े ब्यूरोक्रेसी में बदलाव का दौर आरंभ हो जाता है और ब्यूरोक्रेसी के अधिकारियों की निष्ठा और प्रतिबद्धता पर प्रश्न उठाये जाने लगते हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर साफ संदेश दिया है कि ब्यूरोक्रेसी कभी भी किसी पार्टी की नहीं होती। ब्यूरोक्रेसी हमेशा सरकार की मंशा और मेंडेट के अनुसार काम करती है। जो सरकार होती है और उसकी जो रीति-नीति होती है उसको धरातल पर अमलीजामा पहुंचाने की जिम्मेदारी ब्यूरोक्रेसी की होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में बड़ी बात कही कि ब्यूरोक्रेसी जिस पार्टी की सरकार होगी, उसके अनुरूप ही काम करती है। इस संदेश में सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री ने एक तरह से देश और प्रदेशों की ब्यूरोक्रेसी पर विश्वास जताने के साथ ही उत्साहवर्द्धन भी किया है।

दरअसल ब्यूरोक्रेसी सरकार की रीति-नीति और योजनाओं-कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने का काम करती है। ब्यूरोक्रेसी में कुछ अधिकारी प्रोएक्टिव होते हैं तो कुछ अधिकारी अपनी गति से चलते हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि अपवाद स्वरूप एकाध अधिकारी हो सकते हैं जो पार्टी विशेष की धारा के अनुसार चलते हैं या चलने का प्रयास करते हैं पर सरकार की निगाह में ऐसे अधिकारी आ ही जाते हैं और सरकार स्वयं उन्हें किनारे करने में देरी नहीं करती। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कुछ ब्यूरोक्रेट्स रिजल्ट ओरियंटेड होते हैं तो कुछ अधिकारी क्राइसिस मैनेजमेंट में एक्सपर्ट होते हैं। अब होता यह है कि प्रोएक्टिव, क्राइसिस मैनेंजमेंट में आगे रहने वाले या रिजल्ट ओरियंटेड अधिकारी निगाह में भी जल्दी आ जाते हैं और कुछ लोगों को उनका इस तरह से आगे आना या आगे रहना सुहाता नहीं है। बदलाव के समय इन्हें कुछ समय के लिए खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। इसीलिए आज के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संदेश खास अहमियत रखता है।

वैसे भी जब सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री विश्वासनीय और रिजल्ट ओरियंटेड अधिकारी को लेकर अपनी टीम बनाते हैं। सरकार बदलने पर कुछ समय के लिए यह अधिकारी अवश्य नजरों में रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां तबादला डिजायरों से भी दूर रहने की सलाह दी है और इसके लिए भैरो सिंह जी के समय का उदाहरण भी दिया है। मुझे अच्छी तरह ध्यान है कि उस समय जब अत्यधिक दबाव पड़ने लगा तो तत्कालीन सहकारिता मंत्री सुजान सिंह यादव का साफ कहना था कि यदि अधिकारी की शिकायत है तो वे जनप्रतिनिधि की शिकायत पर उस पद से हटाने में कोई देरी नहीं करेंगे पर जहां तक उस पद पर किसी को लगाने की बात है तो उन्होंने साफ कहा कि सरकार वहां अपनी सोच और समझ के अनुसार अधिकारी लगाएगी। यानी डिजायर आप अधिकारी को हटाने की तो कर सकते हैं पर अपनी पसंद के अधिकारी को लगाने की नहीं। इस तरह के अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। दरअसल गंभीरता से देखा जाए तो यह तबादला उद्योग और डिजायर सिस्टम सरकार की बदनामी का भी बड़ा कारण बनता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ संदेश देने का प्रयास किया है। फिर ब्यूरोक्रेसी से काम लेने की कला तो सरकार में होनी ही चाहिए, यह अपेक्षा की जाती रही है।

देखा जाए तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में ब्यूरोक्रेसी की खास भूमिका होती है। भारतीय चिंतकों से लेकर देश-दुनिया के जाने माने चिंतकों ने ब्यूरोक्रेसी के महत्व को स्वीकारने के साथ ही ब्यूरोक्रेसी की भूमिका भी अपने अपने तरीके से तय की है। कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में ब्यूरोक्रेसी यानी नौकरशाही के बारे में विस्तार से बताया गया है, लेकिन आज हम जिस रूप में ब्यूरोक्रेसी को देखते हैं उसको किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। प्राचीन मिस्र और रोम में भी नौकरशाही की मौजूदगी के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन प्राचीन नौकरशाही प्रमुखतः राजशाही पर आधारित थी, शासक के निजी विचार व भावनाओं पर शासन चलता था। किंतु आज की ब्यूरोक्रेसी कानून-कायदों से चलने वाली व्यवस्था है। पूंजीवाद और प्रजातंत्र के विस्तार ने आधुनिक नौकरशाही को सरकार का अनिवार्य अंग बना दिया है।

1745 में फ्रांसीसी अर्थशास्त्री विन्सेट डी गोर्नी ने ब्यूरोक्रेसी शब्द का प्रयोग किया। नौकरशाही को अंग्रेजी में ‘ब्यूरोक्रेसी’ कहते हैं, जो लेटिन भाषा के ‘ब्यूरो’ जिसका अर्थ है ‘मेज’ और ग्रीक भाषा के ‘क्रेसी’ जिसका अर्थ है ‘शासन’ से मिलकर बना है। इस प्रकार ‘ब्यूरोक्रेसी’ का तात्पर्य ‘मेज का शासन’ से है। जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार नौकरशाही का अर्थ समाज में सरकार के व्यावसायिक रूप से दक्ष प्रशासकों से है। जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर पहले ऐसे विद्वान हैं जिन्होंने नौकरशाही के नकारात्मक पहलुओं के बजाय सकारात्मक पहलुओं पर ज्यादा बल दिया और नौकरशाही के आदर्श मॉडल का प्रतिपादन किया। वेबर ने नौकरशाही के बारे में बताया कि नियुक्त किये गए अधिकारियों का समूह ब्यूरोक्रेट कहलाता है। साल 1920 में वेबर की किताब ‘’विर्टशॉफ्ट एंड गेसलशॉफ्ट’’ प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने सत्ता के सिद्धांत के बारे में बताया है। वेबर के अनुसार सत्ता के तीन रूप हैं- ट्रेडिशनल पॉवर, मिराकूलस पॉवर एवं लीगल पॉवर। यह भी साफ हो जाना चाहिए कि शासन में ब्यूरोक्रेसी की भूमिका लगभग तय होती है, जहां चुनी हुई सरकार कानून कायदे, योजनाओं, कार्यक्रमों या यों कहें कि अपना एजेंडा प्रस्तुत करते हैं वहीं धरातल पर अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी व अहम भूमिका ब्यूरोक्रेसी की होती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रजातंत्र में चुनी हुई सरकार की ईच्छा शक्ति और वीजन का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ संकेत दे दिया है कि ब्यूरोक्रेसी पर विश्वास कायम होना चाहिए और डिजायर सिस्टम से दूर रहना चाहिए। होना यह भी चाहिए कि एक सीमित सीमा तक ही डिजायर सिस्टम को महत्व दिया जाए क्योंकि इसे पूरी तरह से व्यवस्था से अलग करना थोड़ा मुश्किल भरा काम रहेगा। वहीं सरकार को अपना एजेंडा व मेंडेट स्पष्ट रूप से ब्यूरोक्रेसी को सौंपते हुए उसे धरातल पर लाने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। संभवतः यही मंशा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह सोच और संदेश देश की ब्यूरोक्रेसी में नए उत्साह का संचार करेगी।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)