– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
मेरी समझ में विदेश नीति के मामले में चीन, भारत से कुछ आगे निकल रहा है, इसका ताजा उदाहरण हमारे सामने है। हम चीन को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपना प्रतिद्वंद्वी समझते हैं और अपनी जनता को यह समझाते रहते हैं कि देखो, हम चीन से कितने आगे हैं लेकिन शुक्रवार को ईरान और सऊदी अरब के बीच जो समझौता हुआ है, उसका सारा श्रेय चीन लूट रहा है।
पिछले सात साल से ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध भंग हो चुके थे, क्योंकि सऊदी अरब में एक शिया मौलवी की हत्या कर दी गई थी। ईरान एक शिया राष्ट्र है। तेहरान स्थित सऊदी राजदूतावास पर ईरानी शियाओं ने जबरदस्त हमला बोल दिया था। सऊदी सरकार ने कूटनीतिक रिश्ता तोड़ दिया। इस बीच सऊदी अरब और ईरान पश्चिम एशियाई देशों के आंतरिक मामलों में एक-दूसरे के विरुद्ध हस्तक्षेप भी करते रहे।
यमन, सीरिया, एराक और लेबनान जैसे देशों में एक-दूसरे के समर्थकों को सैन्य सहायता भी देते रहे। सऊदी अरब ने ईरान पर ये आरोप भी लगाए कि यमन के हाउथी बागियों से उसने सऊदी अरब में सीमापार से प्रक्षेपास्त्र और ड्रोन आक्रमण भी करवाए तथा उसके तेल के कुओं को उड़ाने की भी कोशिशें कीं। दोनों इस्लामी देशों के संबंध इतने कटु हो गए थे कि सऊदी अरब के शासक मोहम्मद बिन सलमान ने यहां तक कह दिया कि आयतुल्लाह खामेनई ‘नया हिटलर’ है।
सऊदी अरब लंबे समय से अमेरिका के नजदीक रहा है। इजरायल के साथ उसके संबंधों को सहज बनाने में अमेरिका की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। लेकिन अमेरिका-ईरान संबंधों में पिछले 40-42 साल से गहरा तनाव है। दोनों राष्ट्रों के बीच व्यापार, आवागमन, कूटनीतिक संबंध तथा अन्य क्षेत्रों में दुश्मनों के जैसा व्यवहार रहा है लेकिन इन दोनों मुस्लिम राष्ट्रों से भारत के संबंध सहज और उत्तम रहे हैं। दोनों को हमने पटा रखा है, यह हमारी कूटनीतिक चतुराई है लेकिन क्या यह काफी है? दोनों राष्ट्र हमसे अच्छे संबंध बनाए रखते हैं, क्योंकि दोनों के मतलब सिद्ध हो रहे हैं।
चीन के प्रसिद्ध राजनयिक वांग ई ने दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों में समझौता करवा दिया है। इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे की संप्रभुता के सम्मान की घोषणा भी की है।
(लेखक, भारतीय विदेश परिषद नीति के अध्यक्ष हैं।)