Friday, November 22"खबर जो असर करे"

रुपया कमजोर नहीं, मजबूत

– योगिता पाठक

भारतीय राजनीति में जब भी अर्थव्यवस्था की बात की जाती है, तो रुपये की कीमत की भी जोर-शोर के साथ चर्चा होती है। मौजूदा समय में राहुल गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक और तेजस्वी यादव से लेकर ममता बनर्जी तक हर विपक्षी नेता एक सुर में रुपये के रिकॉर्ड स्तर तक कमजोर हो जाने की बात करते हुए इसे भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी विफलता के रूप में बताने में लगे हुए हैं। राजनीतिक लाभ के लिए विपक्षी नेता अगर सरकार को रुपये की कीमत पर घेरने की कोशिश कर रहे हैं, तो उनकी सियासी रणनीति के तहत ये स्वाभाविक भी है। इसमें कोई शक नहीं है कि डॉलर की तुलना में भारतीय मुद्रा रिकॉर्ड स्तर तक नीचे गिर गई है। लेकिन इसके साथ ही एक बड़ा सच ये भी है कि पिछले कुछ सालों के दौरान रुपये की कीमत में रिकॉर्ड मजबूती भी आई है।

सुनने में यह बात विरोधाभासी जरूर लगती है, लेकिन सच्चाई यही है। मुद्रा बाजार में रुपया डॉलर की तुलना में रुपया 83 के स्तर से भी नीचे गिरने का रिकॉर्ड बना चुका है। लेकिन इसके साथ ही एक बड़ा सच ये भी है कि डॉलर के अलावा दुनिया की तमाम प्रमुख मुद्राओं की तुलना में रुपये में जबरदस्त मजबूती आई है। इसके साथ ही एक सच ये भी है कि डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत में जितनी गिरावट आई है, उससे काफी अधिक गिरावट दुनिया की दूसरी मुद्राओं में आई है। यानी दूसरी प्रमुख मुद्राओं की तुलना में रुपये में डॉलर के मुकाबले कम गिरावट आई है।

पिछले एक साल के आंकड़ों को देखें तो डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत में 9.64 प्रतिशत की गिरावट आई है। लेकिन अगर दूसरी मुद्राओं की बात करें तो डॉलर की तुलना में चीन की मुद्रा रेम्निबी पिछले एक साल के दौरान 12.49 प्रतिशत गिर चुकी है। इसी तरह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ऑस्ट्रेलियन डॉलर 15.78 प्रतिशत, यूरो 16.27 प्रतिशत, ब्रिटिश पाउंड 17.80 प्रतिशत, दक्षिण कोरियाई वोन 20.94 प्रतिशत, न्यूजीलैंड डॉलर 22.85 प्रतिशत, पाकिस्तानी रुपया 25.46 प्रतिशत और जापानी येन 28.39 प्रतिशत तक लुढ़क चुका है।

दरअसल अमेरिका में रिकॉर्ड तोड़ महंगाई, बॉन्ड यील्ड के स्तर में बढ़ोतरी और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी किए जाने की वजह से डॉलर इंडेक्स पिछले एक साल की अवधि में रिकॉर्ड मजबूती हासिल कर चुका है। इसकी वजह से पूरी दुनिया के ज्यादातर देशों की मुद्राएं डॉलर की तुलना में औंधे मुंह गिर पड़ी है। गिरावट की आंधी में भारतीय मुद्रा रुपये के साथ ही बाकी अन्य मुद्राएं भी काफी कमजोर हुई हैं। लेकिन आंकड़ों से जाहिर है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश चीन की मुद्रा रेम्निबी समेत दुनिया की दूसरी प्रमुख मुद्राएं भारतीय मुद्रा की तुलना में कहीं अधिक गिरावट का शिकार हुई हैं। गिरावट की आंधी में भी रुपया सिर्फ 9.64 प्रतिशत की कमजोरी के साथ ही टिका हुआ है।

कुछ दिन पहले ही भारतीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी रुपये की कीमत में गिरावट आने के विपक्ष के आरोप पर अपने एक बयान में साफ किया था कि डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत में आई गिरावट की वजह रुपये की कमजोरी नहीं है, बल्कि डॉलर की कीमत में आई अप्रत्याशित तेजी है। उन्होंने अपने बयान में ये दावा भी किया था कि रुपया पिछले एक साल की अवधि में लगातार मजबूत हुआ है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती का संकेत देता है।

अगर आंकड़ों को देखें तो एक साल पहले ब्रिटिश पाउंड की कीमत 102.57 रुपये थी, जो अब घटकर 95.02 रुपये हो गई है। यानी एक साल में भारतीय मुद्रा ब्रिटिश पाउंड की तुलना में 7.55 रुपये यानी 7.36 प्रतिशत मजबूत हुई है। इसी तरह जापानी येन की कीमत एक साल पहले 67 पैसे थी, जो अब घटकर 56 पैसे रह गई है। यानी 1 साल की अवधि में येन भारतीय मुद्रा की तुलना में 11 पैसे सस्ता हुआ है। इस तरह रुपये की कीमत येन की तुलना में 16.42 प्रतिशत बढ़ी है। अगर ऑस्ट्रेलियन डॉलर की बात करें तो एक साल पहले ऑस्ट्रेलियन डॉलर की कीमत 56.31 रुपये थी, जो अब घटकर 52.89 रुपये रह गई है। यानी एक साल में रुपया ऑस्ट्रेलियन डॉलर की तुलना में 3.42 रुपये (6.07 प्रतिशत) मजबूत हुआ है। इसी तरह चीन की मुद्रा रेम्निबी की कीमत एक साल पहले 11.69 रुपये थी, जो अब घटकर 11.37 रुपये रह गई है। इस तरह से रुपया रेम्निबी की तुलना में 32 पैसे यानी 2.74 प्रतिशत मजबूत हुआ है।

यूरोपियन यूनियन की मुद्रा यूरो की कीमत एक साल पहले 87.37 रुपये थी, जो एक साल की अवधि में घटकर 82.08 रुपये हो गई। इस तरह एक साल में भारतीय मुद्रा यूरो की तुलना में 5.29 रुपये यानी 6.05 प्रतिशत मजबूत हो गई। इसी तरह एक साल पहले न्यूजीलैंड डॉलर की कीमत 53.83 रुपये थी, जो घटकर अब 47.81 रुपये रह गई है। इस तरह एक साल में भारतीय मुद्रा न्यूजीलैंड डॉलर की तुलना में 6.02 रुपये यानी 11.18 प्रतिशत मजबूत हुई है। इसके अलावा दक्षिण कोरियाई वोन की कीमत एक साल पहले 0.067 रुपये थी, जो अब घटकर 0.058 रुपये रह गई है। इससे साफ है कि एक साल में वोन की तुलना में रुपया 13.43 प्रतिशत मजबूत हुआ है।

इन आंकड़ों से साफ है कि डॉलर की कीमत में भले ही रुपया कमजोर होता नजर आए, लेकिन दुनिया की दूसरी प्रमुख मुद्राओं की तुलना में रुपये की कीमत लगातार बढ़ी है। इसलिए अगर रुपये की कीमत को भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती या कमजोरी का सूचक माना जाए, तो निश्चित रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले एक साल के दौरान कमजोर होने की जगह ज्यादा मजबूत हुई है। इस तरह विपक्ष द्वारा रुपये की कीमत में गिरावट का जो प्रचार किया जा रहा है, वो सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा एक अर्धसत्य है।

(लेखिका, आर्थिक मामलों की जानकार और हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)