– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
इस बार राज्यसभा में ऐसे दो निजी विधेयक पेश किए गए हैं, जो पता नहीं कानून बन पाएंगे या नहीं, लेकिन उन पर यदि खुलकर बहस हो गई तो वह भी देश के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगी। पहला विधेयक, सबके लिए समान निजी कानून बनाने के बारे में है और दूसरा है- इलाज में लूट-पाट रोकने के लिए। निजी कानून यानी शादी-ब्याह, तलाक, दहेज, उत्तराधिकार संबंधी कानून। इस बारे में मेरी विनम्र राय है कि सारे भारतीय लोगों को एक ही तरह का निजी कानून मानने में ज्यादा फायदा है।
हजारों वर्ष पुराने हिंदू कानून, ईसाई और यहूदी कानून और इस्लामी कानूनों से चिपके रहने की बजाय नई परिस्थितियों के मुताबिक आधुनिक कानून मानने के कारण बहुत सी परेशानियों से भारत के लोगों को मुक्त होने का मौका सहज ही मिल जाएगा। इसी तरह से अपने देश में लोगों को समुचित इलाज और इंसाफ पाने में बहुत दिक्कत होती है। अस्पताल और अदालत लोगों को लूट डालते हैं। इसीलिए अस्पतालों, डाॅक्टरों की फीस, दवाइयों और जांच की कीमतों पर नियंत्रण लगाना बहुत जरूरी हो गया है। मेरी राय में तो चिकित्सा और शिक्षा या यूं कहें कि इलाज और इंसाफ, हर नागरिक को मुफ्त मिलना चाहिए।
इसीलिए राज्यसभा के वर्तमान सत्र में यह जो विधेयक इलाज की कीमतों पर नियंत्रण के लिए लाया गया है, इसे सर्वानुमति से पारित करके लोकसभा को भेजा जाना चाहिए। इस विधेयक में शायद यह मांग नहीं की गई है कि गैरसरकारी अस्पतालों में शल्य चिकित्सा और कमरों की फीस में मच रही लूट-पाट को रोका जाए। या तो निजी अस्पताल एकदम खत्म ही कर दिए जाएं और यदि उनको रहने दिया जाए तो उन्हें पांच नहीं, सात सितारा होटल बनने से रोका जाए।
आजकल स्वास्थ्य बीमा मध्यम और उच्च वर्ग के रोगियों को कुछ राहत जरूर पहुंचाता है लेकिन वह निजी अस्पतालों की लूट-पाट का नया हथियार बन गया है। निजी अस्पतालों की मोटी फीस और सरकारी अस्पतालों की लापरवाही उनमें भर्ती हुए कई मरीजों को पहले से भी ज्यादा बीमार कर देती है। जिस दवा का लागत मूल्य 2 रुपये है, वह 100 रुपये में बिकती है और जो परीक्षण 50 रुपये में हो सकता है, उसके लिए 500 रुपये ठग लिए जाते हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 2021 में इलाज की महंगाई 14 प्रतिशत बढ़ गई थी। उसके कारण देश के साढ़े पांच करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए थे। भारत में इलाज पर हमारे नागरिकों को अपने जेब खर्च का 63 प्रतिशत पैसा खर्च करना होता है। भारतीय नागरिकों का स्वास्थ्य बढ़िया रखने के लिए कई अन्य कदम भी जरूरी हैं लेकिन उनके इलाज को सस्ता करने में संसद को कोई झिझक क्यों होनी चाहिए?
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)