– मुकुंद
केंद्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने मानसून सत्र के दौरान सोमवार (26 जुलाई, 2022) को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में जानकारी दी है कि भारत में पिछले तीन साल में शिकार, प्राकृतिक और अप्राकृतिक कारणों से 329 बाघों की मौत हुई है। इस जानकारी में साफ किया गया है कि 2019 में 96, 2020 में 106 और 2021 में 127 बाघ मारे गये। इनमें 68 बाघ प्राकृतिक कारणों, पांच अप्राकृतिक कारणों और 29 बाघ शिकारियों के हमलों में मारे गए।
सरकार ने इन आंकड़ों में यह सफाई दी है कि शिकार की घटनाओं में कमी आई है। 2019 में 17 बाघों की शिकारियों ने जान ली। 2021 में यह संख्या घटकर चार रह गई। इस अवधि में देशभर में बाघों के हमलों में 125 लोग मारे गए। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मुताबिक भारत में 2021 में कुल बाघों की मौत की संख्या एक दशक में सबसे ज्यादा है। इस साल 29 दिसंबर तक प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक मरने वाले बाघों में से 60 संरक्षित क्षेत्रों के बाहर शिकारियों, दुर्घटनाओं और मानव-पशु संघर्ष के शिकार हुए।
बेशक तीन साल में शिकार की घटनाओं में कमी आई है पर बाघों के शिकार और अप्राकृतिक कारणों से मौत चिंताजनक है। ऐसा इसलिए कि भारत में बाघ संरक्षण में देश में अकूत धन खर्च हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि भारत बाघों के संरक्षण पर प्रति वर्ष चंद्रयान-2 की लॉचिंग से ज्यादा रुपये खर्च करता है। इतना ही नहीं बाघों के संरक्षण से देश को होने वाला लाभ भी किसी अंतरिक्ष मिशन की तुलना में कहीं ज्यादा है। साल 2018 तक देश में बाघों की कुल आबादी 2967 थी।
काबिलेगौर है कि वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा हुई थी। सम्मेलन में शामिल भारत समेत कई अन्य देशों ने वर्ष 2022 तक बाघों की आबादी दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। तब भारत में बाघों की कुल आबादी 1706 थी। बावजूद इसके भारत में बाघों की मौजूदा स्थिति को बेहतर कहा जा सकता है। बाघों के लिए भारत इस समय दुनिया भर में सबसे पसंदीदा और सुरक्षित ठिकाना है।
देश में बाघ परियोजना की शुरुआत 1973 में सिर्फ नौ बाघ अभयारण्य के साथ की गई थी। आज भारत में 72,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले 50 बाघ अभयारण्य हैं। इन सभी बाघ अभयारण्यों का स्वतंत्र प्रबंधन किया जाता है। दो साल पहले तत्कालीन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि भारत में बाघों की एक बड़ी संख्या वास्तव में समृद्ध जैव-विविधता और बाघों के वैज्ञानिक संरक्षण का प्रमाण है। भारत प्रकृति प्रेमी राष्ट्र है। यहां बाघों का दुनिया भर में सबसे बड़ा प्राकृतिक निवास है। आज दुनिया भर के बाघों की आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा भारत में ही है। यह देश के लिए बाघ संरक्षण की दिशा में बहुत बड़ी सफलता है। बाघों की यह संख्या हमारी सांस्कृतिक समृद्धि की अगुआई करने के साथ ही भारत में सबसे अच्छी जैव विविधता होने का प्रतीक भी है।
आखिर तमाम उपायों के बावजूद बाघों के शिकार पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? इसका जवाब पड़ोसी चीन में बाघ के शरीर के विभिन्न हिस्सों की लगातार बढ़ती मांग को माना जा रहा है। भारत में शिकार किए गए बाघ के अंगों को तिब्बत व नेपाल के रास्ते चीन तक पहुंचाया जाता है। यह बात कई बार गिरफ्तार किए गए शिकारी कुबूल कर चुके हैं। चीन इसके लिए शिकारियों को मोटी रकम देता है। इस प्रवृत्ति की वजह से बाघों के सिर पर मौत मंडराती रहती है। बाघ संरक्षण पर काम करने वालों का मानना है कि चीन में इससे पारंपरिक दवाएं बनाई जाती हैं। जब तक चीन में इस मांग पर अंकुश नहीं लगता तब तक बाघों के शिकार पर रोक लग पाना मुश्किल है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)