– डॉ. अनिल कुमार निगम
साइबर सुरक्षा आज वैश्विक मुद्दा है। जितनी तीव्र गति से भारत समेत विभिन्न देशों में डिजिटलाइजेशन बढ़ रहा है, उतनी ही गति से साइबर हमलों का खतरा मंडरा रहा है। भारत के बुनियादी ढांचे पर साइबर हमले का खतरा बना हुआ है। अमेरिका, भारत और ब्राजील साइबर हमलावरों के सीधे निशाने पर हैं। स्वास्थ्य और वित्त क्षेत्र के साथ-साथ विमानन उद्योग, तेल, गैस और ऊर्जा सेक्टर और तकनीकी कंपनियों जैसे मूलभूत ढांचे के महत्वपूर्ण अंगों को साइबर हमलों का निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि भारत अपनी साइबर सुरक्षा पर काफी ध्यान दे रहा है, परंतु नवंबर 2022 में जिस तरीके से भारत के सबसे शीर्ष चिकित्सा संस्थान- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली को निशाना बनाया गया, वह अत्यंत चिंताजनक है। सवाल यह है कि अगर साइबर हमलावर भारत के मूलभूत ढांचे मसलन ऊर्जा आपूर्ति, रेलवे सिगनलिंग, पीएनजी गैस आपूर्ति, बैंकिंग सिस्टम को हैक कर लेते हैं तो क्या भारत इससे निपटने में सक्षम है? क्या भारत में सूचना तंत्र की सुरक्षा के उपाय पर्याप्त हैं?
वर्ष 2022 में भारत के सरकारी संस्थानों पर 82 साइबर हमले हुए। यह आंकड़ा पिछले वर्ष 2021 की तुलना में आठ गुना अधिक है। साइबर हमलों का अध्ययन करने वाली कंपनी क्लाउडसेक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सरकारी संस्थाओं को टार्गेट करने वाले साइबर हमलों में तीव्र वृद्धि हुई है। 2021 में देश के सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं में सिर्फ 11 हमले दर्ज किए गए थे। भारत की कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (CERT-IN) ने 2022 की अपनी इंडिया रैनसमवेयर रिपोर्ट में कहा था कि भारत में महत्वपूर्ण मूलभूत ढांचे समेत तमाम क्षेत्रों पर रैनसमवेयर के हमलों की संख्या में 51 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
यह विदित है कि साइबर हमले से एम्स की गतिविधियों पर अत्यंत प्रतिकूल असर पड़ा था। अस्पताल के मुख्य और बैकअप सर्वर में सभी फाइलें करप्ट हो गई थीं। साइबर हमलावर लगभग चार करोड़ मरीजों का आंकड़ा चुराने में सफल रहे। इसमें बेहद संवेदनशील आंकड़े भी शामिल हैं। यह भी ज्ञात है कि वर्ष 2021 में अमेरिका की औपनिवेशिक पाइप लाइन में रूसी हमलावरों ने रैंससमवेयर से हमला किया था। उसके बाद वहां अफरा-तफरी मच गई थी। यह पाइप लाइन छह दिन के लिए ठप हो गई थी। अमेरिका के 17 राज्यों में गैस की जबरदस्त किल्लत हो गई थी। वास्तव में रैंसमवेयर एक तरह का मैलवेयर है जो कंप्यूटर फाइलों, सिस्टम अथवा नेटवर्क को एक्सेस करने से रोकता है। हमलावर इसके माध्यम से पीड़ित पक्ष से अपनी मांग पूरी करवाता है।
क्लाउडसेक का मानना है कि विश्वभर में स्वास्थ्य क्षेत्र पर जो साइबर हमले हो रहे हैं, उनमें भारत का स्थान दूसरा है। वर्ष 2021 में दुनिया में स्वास्थ्य क्षेत्र पर जो साइबर हमले हुए, उनमें से 7.7 प्रतिशत भारत पर हुए थे। हालांकि साइबर हमलों के मामले में सबसे ज्यादा निशाने पर अमेरिका ही है। 2021 में पूरी दुनिया में स्वास्थ्य क्षेत्र पर हुए साइबर हमलों में से अकेले अमेरिका पर 28 प्रतिशत हमले हुए थे। ये दुनिया के तेजी से बढ़ते डिजिटलीकरण का नतीजा है, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के कारण ऐसा हो रहा है। एक अन्य सॉफ्टवेयर सुरक्षा कंपनी इंडसफेस ने कहा कि उसके ग्राहकों पर दस लाख से ज्यादा साइबर हमले हुए, इनमें से 2,78,000 हमले भारत में हुए।
जी-20 देशों का मानना है कि आगामी समय में विभिन्न देशों में जीवन के अनेक पहलुओं की कंप्यूटर, स्मार्ट फोन और इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ेगी। इससे देशों को लाभ भी होगा लेकिन इससे साइबर हमलों का खतरा भी बढ़ेगा। देशों के पास स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए अब दस साल से भी कम समय बचा है, लेकिन साइबर हमलों से दुनिया को होने वाला नुकसान वर्ष 2025 तक 10 खरब डॉलर तक पहुंचने की आशंका है। भारत के अनेक प्रयासों के बावजूद हैकर्स भारत के साइबर सुरक्षा तंत्र को भेदने में कई बार कामयाब रहे हैं। इससे भारत सरकार चौकन्ना हुई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने साइबर सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए सभी राज्यों को विशेष तैयारी करने एवं कर्मचारियों को विशेष प्रशिक्षण देने के निर्देश दिए हैं। बावजूद इसके भारत को हमलावरों की रणनीति, तकनीक और प्रक्रिया का गंभीर अध्ययन करना होगा, जिससे हैकर्स के चक्रव्यूह से बुनियादी ढांचे को सुरक्षित रखा जा सके।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)