Friday, November 22"खबर जो असर करे"

भारत ने बिलावल को दिखाया आईना

– आर.के. सिन्हा

पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी लंबे समय तक भूलेंगे नहीं अपनी हालिया भारत यात्रा को। वे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भाग लेने के लिए भारत आए थे। उन्हें उम्मीद थी कि भारत की तरफ से किसी राष्ट्राध्यक्ष की तरह का सम्मान मिलेगा। पर बिलावल भुट्टो को भारत साफतौर पर जताना चाहता था कि भारत उनसे नाराज है क्योंकि उन्होंने कुछ समय पहले न्यूयार्क में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में अत्यंत अशोभनीय टिप्पणी की थी। उनकी तब भारत में चौतरफा निंदा भी हुई थी। दरअसल भारत तब ही से उनसे खफा था। बिलावल गोवा में आए। वे चाहते थे कि उनकी भारतीय विदेशमंत्री एस. जयशंकर से अलग से बात हो जाए। पर भारतीय विदेशमंत्री ने उन्हें घास नहीं दी। भारत जानता है कि पाकिस्तान के पैरों के नीचे जमीन नहीं है। वह मुंबई हमलों के गुनहगारों को दंड देने के मामले पर बात नहीं करेगा, उसे अपने देश में आतंकवादियों की फैक्टरी को खत्म करने में कोई दिलचस्पी नहीं है और उसने वहां पर धार्मिक अल्पसंख्यकों की लगातार हो रही हत्याओं पर चर्चा करना भी गवारा नहीं होगा।

एस. जयशंकर ने सम्मेलन में पाकिस्तान को साफ बता दिया कि जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग था, है और रहेगा। देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरह जम्मू-कश्मीर में भी जी-20 की बैठकें हो रही हैं, इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। यानी भारत एससीओ सम्मेलन क बहाने अपने अगले-पिछले बदलने लेने के मूड में था। एस.जयशंकर ने तो बिलावल से हाथ तक नहीं मिलाया। मिलाते भी क्यों उस शख्स से जो भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री पर ओछी टिप्पणी कर रहा था।

चार मई को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के अन्य सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों के लिए भव्य भोज का आयोजन किया। इसके साथ ही समूह के दो दिवसीय सम्मेलन की शुरुआत हुई। बेनौलिम में समुद्र के किनारे ताज एक्सोटिका रिसॉर्ट में आयोजित स्वागत समारोह में चीनी विदेश मंत्री छिन कांग, रूस के सर्गेई लावरोव और बिलावल भुट्टो जरदारी, उज्बेकिस्तान के बख्तियार सैदोव, एससीओ महासचिव झांग मिंग वगैरह ने भी भाग लिया। यहां भी हमारे विदेश मंत्री ने बिलावल भुट्टो को नजरअंदाज ही कर दिया। दरअसल, करीब 12 साल बाद किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री की भारत यात्रा है। उनसे पहले हिना रब्बानी खार ने 2011 में शांति वार्ता के लिए पाकिस्तान की विदेश मंत्री के रूप में भारत की यात्रा की थी।

हालांकि एसएसीओ के मंच से कोई द्विपक्षीय मुद्दे नहीं उठाए जाते, पर भारत की तरफ से कतई कोशिश नहीं हुई कि धूर्त पड़ोसी के साथ द्विपक्षीय मुद्दों को सुलझाने की बाबत कोई पहल हो। कारण बहुत साफ है। पाकिस्तान सुधरने का नाम ही नहीं लेता। वहां का अवाम आजकल महंगाई के कारण दाने-दाने को मोहताज है। पर पाकिस्तान नहीं सुधरेगा। पाकिस्तान के नेताओं को मर्यादित भाषा में अपनी बात रखने की तमीज ही नहीं है। पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार में गृह और रेल मंत्री शेख राशिद और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री फवाद चौधरी जेल भी भारत और हिन्दू धर्म के खिलाफ जहर उगलते थे।

शेख राशिद बेहद हल्के इंसान हैं। उनकी हरेक प्रेस कॉन्फ्रेंस को देखकर उनके गटर छाप इंसान होने का अंदाजा लग जाता है। वे या तो नवाज शरीफ या शहबाज को कोस रहे होते हैं या वे जरदारी और उनके पुत्र बिलावल भुट्टो को पाकिस्तान के ताजा खराब हालात के लिए दोष दे रहे होते हैं। यहां तो तो ठीक है कि वे अपने राजनीतिक विरोधियों पर अनावश्यक वार करते हैं। उन्हें अपने देश के कठमुल्लों के बीच इसलिए सम्मान मिलता रहा है, क्योंकि वे भारत को परमाणु युद्ध की धमकी देते रहते हैं। अपने को दिलीप कुमार तथा रेखा का फैन बताने वाले शेख राशिद यहां तक कह चुके हैं कि उनके देश के पास रखे परमाणु हथियार भारत के खिलाफ इस्तेमाल हो सकते हैं। इस्तेमाल इस तरह से होंगे ताकि भारत में रहने वाले मुसलमान बच जाएं।

शेख राशिद कहते थे कि हमारे पास 250-250 ग्राम के न्यूक्लियर हथियार हैं, हम जहां चाहे गिरा सकते हैं। पाकिस्तान को डरने की क्या जरूरत है। इसके साथ ही वो कहा करते थे कि भारत को ऐसा सबक सिखाएंगे कि भारत के सारे मंदिरों की घंटियां बंद हो जाएंगी। घोर अवसरवादी राशिद एक जमाने में जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर नवाज शरीफ के करीबी रहे भी हैं। फवाद चौधरी भी शेख राशिद की तरह ही भारत विरोधी हैं। वे भी भारत की तरक्की से जलते-भुनते रहे हैं। जब राफेल लड़ाकू विमान को सौंपे जाने से पहले पूजा हुई तो फवाद चौधरी ने पूजा का मजाक उड़ाया।

दरअसल पाकिस्तान के डीएनए में भारत और हिन्दुओं का विरोध करना है। इसलिए भारत के कई कूटनीति के जानकारों को हैरानी नहीं हुई थी जब बिलावल भुट्टो ने बकवास की थी। पर 2014 के बाद भारत की विदेश नीति बदल चुकी है। अब उसके तेवर और फ्लेवर रक्षात्मक नहीं रहे। अब दोस्ती का जवाब गले मिलकर दिया जाता है और कटुता का जवाब उसी कटु जुबान में दिया जाता है। जाहिर है, उसी नीति पर चलते हुए भारत ने बिलावल भुट्टो को घास नहीं डाली।

इस बीच, यह भी सच है कि एससीओ सदस्यों के बीच आपसी विवाद भी हैं। उदाहरण के रूप में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लंबे समय से चल ही रहा है। पर साथ ही आपसी कारोबार भी जारी है। दोनों मुल्कों का आपसी व्यापार 100 अरब रुपये तक होने को है। आतंकवाद को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद है। भारत बार-बार पाकिस्तान से कहता रहा है कि वह आतंकवाद को खत्म करे। पर पकिस्तान नहीं सुनता। इसलिए वह तेजी से बर्बाद भी हो रहा है। सीमा विवाद किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच भी है। एससीओ के आठ सदस्य देश दुनिया की आबादी का लगभग 42 फीसदी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 25 फीसदी प्रतिनिधित्व करते हैं।

इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं जिसे एससीओ देशों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर बढ़ावा दिया जा सकता है। भारत चाहेगा कि वह पाकिस्तान को छोड़कर एससीओ के शेष सदस्यों के साथ मिलकर पर्यटन और बाकी क्षेत्रों में काम करे। पाकिस्तान के साथ तालमेल करने का सवाल ही नहीं है। भारत अपने पड़ोसी को कई बार आजमा चुका है। वहां से कोई सकारात्मक बदलाव की संभावना नहीं है। पाकिस्तान के नेतृत्व और अवाम को अपन खुद के बुरे-भले का पता ही नहीं है। इसलिए उससे अब मित्रता की बात करना व्यर्थ ही होगा।

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)