Friday, September 20"खबर जो असर करे"

MP के मदरसों में हिन्दू बच्चे ले रहे दीनी तालीम, हिन्दी है तीसरे दर्जे की भाषा, उर्दू के साथ अंग्रेजी को वरीयता

दतिया । मध्य प्रदेश में मदरसा शिक्षा को लेकर एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं। कभी बच्चों की संख्या फर्जी निकलती है, कभी शिक्षा के लिए तय मापदण्ड पूरे नहीं मिलते तो कहीं मदरसों के माध्यम से धर्मांतरण के मामले सामने आते हैं। ऐसे में अब मध्य प्रदेश की प्रथम भाषा हिन्दी को दोयम दर्जे का मानना और एक बड़ी संख्या में हिन्दू बच्चों का मदरसों से दीनी तालीम हासिल करना यानी कि ‘अल्लाह’ के रास्ते पर चलने वाली पढ़ाई करना सामने आया है।

एक ओर राज्य की शिवराज सरकार है जिसने कि हिन्दी के महत्व को इस हद तक समझा है कि विद्यार्थियों की आवश्यकता को देखते हुए उसने मेडिकल एवं तकनीकी पढ़ाई भी हिन्दी में करवाना शुरू कर दिया है। जहां सरकार कह रही है, अपनी भाषा पर गर्व करो। वहीं, राज्य स्कूल शिक्षा विभाग से संचालित मदरसों में मध्य प्रदेश की पहली भाषा ”हिन्दी” उर्दू तो छोड़िए अंग्रेजी के सामने भी बौनी नजर आ रही है। यहां उर्दू पहली मुख्य भाषा है तो अंग्रेजी दूसरी लेकिन हिन्दी को यहां तीसरी भाषा का दर्जा दिया गया है। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग जब दतिया जिले में मदरसे का औचक निरीक्षण करने पहुंचा तो वहां के हालात देखकर दंग रह गया। जो कागज हाथ लगे, उनसे साफ पता चला कि हिन्दी अपने ही मुख्य प्रदेश में यहां सम्मान के लिए तरस रही है। कम से कम मदरसों में अंग्रेजी से ऊपर तो हिन्दी को रखा ही जा सकता था। इस पर जब मदरसा संचालक इस्लाम खान से पूछा गया तो उसका कहना था कि हम ऊपर के निर्देशों का पालन करते हैं। जो है वह हमारी तरफ से नहीं, मदरसा बोर्ड भोपाल की ओर से ही ऐसा किया गया है।

आदर्श शिक्षा प्रसार समिति द्वारा संचालित इस ”अरबिया” नाम के मदरसे में कुल पंजीयन के 38% हिन्दू बच्चों का पढ़ना और यहां पढ़ाई के दौरान उन्हे दीनी तालीम देना पाया गया। दरअसल, मध्य प्रदेश में मदरसा बोर्ड जो इन सभी मदरसों का संचालन कर्ता है उसकी वेबसाइट बखूबी बता देती है कि आखिर उसका उद्देश्य क्या है? इस पर साफ लिखा है कि परंपरागत मदरसों को दीनी तालीम के साथ-साथ उनके छात्रों को आधुनिक शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ना ही उसका उद्देश्य है। लेकिन सवाल यह है कि शासन की तमाम सुविधाओं के बीच जब कोई सुधार करना ही नहीं चाहे तब क्या हो? क्यों कि यहां शिक्षा की सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है।

दतिया नगर के इस ”अरबिया”मदरसे में कुल 68 बच्चों का पंजीयन है। इनमें से हिन्दू बच्चों की संख्या 26 है, जिनमें बेटियां भी शामिल हैं । यह अपने आप में हैरान करनेवाली संख्या है। वह इसलिए कि एक ओर शासन के विद्यालय बच्चों से खाली हैं, तो दूसरी ओर इस मदरसों में हिन्दू बच्चों की संख्या तब दिख रही है, जब सुविधाओं के नाम पर और पढ़ाई को लेकर भी यह शून्य हैं। प्रदेश भर में राज्य बाल संरक्षण आयोग जहां-जहां भी जा रहा है, वहां उन सभी जगह मदरसों की हालत अब तक बहुत खराब ही पाई गई है। यह ”अरबिया” मदरसा भी सिर्फ दो कमरों में कक्षा एक से आठ तक की कक्षाएं संचालित कर रहा है। छात्र-छात्राओं के लिए सिर्फ एक ही टॉयलेट है। तीन शिक्षक पढ़ा रहे हैं, उनमें से सिर्फ एक ही बीएड है ।

राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने जब मदरसा संचालक इस्लाम खान से कहा कि इन अव्यवस्थाओं में कैसे बच्चों को अच्छी ओर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकती है, तो वह अपनी कमियों को लेकर प्रदेश की शिवराज सरकार को कोसते और यह आरोप लगाते नजर आए कि शासन हमें सुविधाएं मुहैया नहीं करा रहा। जब आयोग ने नियमानुसार मदरसा की व्यवस्थाएं रखने को कहा तो उसका यही जवाब था कि फंड नहीं है। जब उससे कहा गया कि अच्छा हो आप इसे स्कूल की मान्यता के अनुसार एक स्कूल की तरह चलाएं तो वह इसके लिए भी राजी नहीं दिखा, उसने कहा-जैसा भी होगा आगे हम मदरसा ही चलाएंगे ।

इसके बाद जब राज्य बाल आयोग ने जब हिन्दू बच्चों की इतनी बड़ी संख्या के होने के बारे में पूछा तो उसने कहा कि मदरसे में कोई भी शिक्षा ले सकता है, शासन की इस पर कोई रोक नहीं, क्या हिन्दू बच्चों को दीनी तालीम देने से उनके मन नहीं बदलेंगे? यह पूछे जाने पर मदरसा संचालक चुप दिखे। वह कोई उत्तर नहीं दे पाए।

इनका कहना है

मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा का कहना है कि ”अरबिया” मदरसे को देखकर शिक्षा की दुरावस्था का पता चलता है। जो बच्चे यहां से शिक्षा ले रहे हैं, उनका कैसा भविष्य होगा, सोचने भर से डर लगता है। यदि बोर्ड के कहे अनुसार मदरसा शिक्षा का उद्देश्य शैक्षिक और विकास में पिछड़े अल्पसंख्यकों को शिक्षा के लोक-व्यापीकरण के तहत केन्द्र प्रवर्तित मदरसा आधुनिकीकरण योजना के प्रभावी क्रियान्यवन का है। जिसके लिए मध्यप्रदेश सरकार, स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 21 सितम्बर 1998 को विधानसभा में अधिनियम पारित कर मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड का गठन किया गया। तब उस स्थिति में यहां सोचने वाली बात है कि इतनी बड़ी संख्या में बहुसंख्यक समाज यानी कि हिन्दू बच्चे क्या कर रहे हैं, जबकि कई शासकीय विद्यालय बच्चों की पर्याप्त संख्या भी नहीं जुटा पा रहे।

उन्होंने कहा कि एक बार को यहां अच्छे संसाधन होते तब भी समझ आता इन बच्चों का होना लेकिन जो परिस्थितियां वर्तमान की हैं, वह देखकर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर रही हैं। औचक निरीक्षण में आयोग को यहां कई खामियां मिली हैं। अभी यहां से मिले सभी दस्तावेजों का बारीकी से अध्ययन किया जाएगा, उसके बाद जो कार्रवाई आवश्यक होगी वह करेंगे।

मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड सचिव देवभूषण प्रसाद का कहना है कि राज्य सरकार मदरसों के आधुनिकरण को लेकर लगातार प्रयास कर रही है। सरकारी आंकड़ों में हमने 1755 मदरसों को सही माना है। हालांकि एक आंकड़ा इनका 2789 होना है। शिक्षा की गुणवत्ता के लिए ही इस बार पांचवीं और आठवीं की परीक्षाएं राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा बोर्ड की कराई जा रही है। आप बताएं, कहां सुधार होना है, वह हम करेंगे।

मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड में सहायक प्रशासनिक प्रभारी शकील अहमद कह रहे हैं, ”यह बिल्कुल भी अनिवार्य नहीं कि शिक्षक बीएड हो, सिर्फ बारहवीं पास भी मदरसों में शिक्षक के रूप में पढ़ा सकते हैं। मदरसा बोर्ड का कार्य दीनी शिक्षा के साथ ही बच्चों को आधुनिक शिक्षा देना है। यदि कहीं कोई शिकायत है तो उसको देखा जाएगा।”

उल्लेखनीय है कि मदरसों का रजिस्ट्रेशन फर्म एवं सोसायटी में रजिस्टर्ड संस्था के नाम पर होता है। इसके बाद संचालक मान्यता के लिए आवेदन करते हैं जिसका जिला शिक्षा कार्यालय से सत्यापन होता है। प्रदेश में मान्यता प्राप्त मदरसों को ही संचालन की अनुमति है। जिला शिक्षा अधिकारी की रिपोर्ट के बाद ये अनुमति इन्हें दी जाती है। वर्तमान में अधिकांश मदरसे रजिस्ट्रर्ड तो हैं लेकिन इन्होंने संचालन की मान्यता नहीं ली है। वर्तमान में मध्य प्रदेश में 7000 से अधिक मदरसा रजिस्टर्ड हैं। इनमें से 1198 को अनुदान दिया जा रहा है । वहीं, प्रदेश में 1755 मदरसों को ही मान्यता प्रदान की गई है। (हि.स.)