Friday, November 22"खबर जो असर करे"

हिजाब मजहबी सवाल है ही नहीं

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हिजाब को लेकर आजकल सुप्रीम कोर्ट में जमकर बहस चल रही है। हिजाब पर जिन दो न्यायमूर्तियों ने अपनी राय जाहिर की है, उन्होंने एक-दूसरे के विपरीत बातें कही हैं। अब इस मामले पर कोई बड़ी जज-मंडली विचार करेगी। एक जज ने हिजाब के पक्ष में फैसला सुनाया है और दूसरे ने विरोध में तर्क दिए हैं। हिजाब के मसले पर भारत के हिंदू और मुसलमान संगठनों ने लाठियां बजानी शुरू कर रखी हैं। दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध बयानबाजी कर रहे हैं।

असल में यह विवाद शुरू हुआ कर्नाटक से। इसी साल फरवरी में कर्नाटक के कुछ स्कूलों ने अपनी छात्राओं को हिजाब पहनकर कक्षा में बैठने पर प्रतिबंध लगा दिया था। सारा मामला वहां के हाई कोर्ट में गया। उसने फैसला दे दिया कि स्कूलों द्वारा बनाई गई पोशाक-संहिता का पालन सभी छात्र-छात्राओं को करना होगा। लेकिन मेरा निवेदन यह है कि हमारे नेतागण और स्कूलों के अधिकारी हिजाब के मसले में बिल्कुल गलत राह पर चल रहे हैं। उन्होंने सारे मामले को मजहबी बना दिया है। यह मामला ईरान या सउदी अरब में तो मजहबी हो सकता है लेकिन भारत में तो यह शुद्ध पहचान का मामला है। हिजाब, उसको पहननेवाली महिला की पहचान को छिपा लेता है। बस, इसीलिए स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। हिजाब और बुर्के की आड़ में आतंकी, तस्कर, डकैत, अपराधी लोग भी अपना धंधा चलाते हैं। यदि मुसलमान औरतों पर हिजाब अनिवार्य है तो मैं पूछता हूं कि मुसलमान मर्दों पर क्यों नहीं है?

यह स्त्री-पुरुष समानता का युग नहीं है क्या? यदि सिर्फ मजहबी होने के कारण हिजाब पर प्रतिबंध होना चाहिए तो हिंदू औरतों के टीके, सिंदूर, चूड़ियों, सिखों के केश और साफे तथा ईसाइयों के क्राॅस पर प्रतिबंध क्यों नहीं होना चाहिए? मुझे तो आश्चर्य यह है कि नेता और अफसर असली मुद्दों पर बहस करने की बजाय नकली मुद्दों पर बहस चला रहे हैं। मेरी राय में अब इस मुद्दे पर बहस को केंद्रित करना चाहिए कि सबको अपनी संस्था की पोशाक-संहिता का पालन तो करना ही होगा लेकिन किसी को भी अपनी पहचान छिपाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

दुनिया के ज्यादातर मुस्लिम देशों में भी हिजाब अनिवार्य नहीं है। ईरान में तो हिजाब के खिलाफ खुली बगावत छिड़ गई है। कुरान शरीफ में कहीं भी हिजाब को अनिवार्य नहीं कहा गया है। हमारी मुसलमान छात्राएं हिजाब के चलते शिक्षा से वंचित क्यों रखी जाएं? क्या मुस्लिम छात्राएं सिर्फ मरदसों में ही पढ़ेंगी? यदि इस मामले को आप सिर्फ मजहबी चश्मे से ही देखेंगे तो देश का बड़ा नुकसान हो जाएगा।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)