– आर.के. सिन्हा
इंफोसिस के संस्थापक एन.नारायण मूर्ति जब भी बोलते हैं तो उसे सबको सुनना ही पड़ता है। वे अपनी बात बेखौफ अंदाज में रखते हैं। उन्होंने पिछले दिनों इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट अहमदाबाद (आईआईएम-ए) के 58वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में कहा कि कारपोरेट लीडर्स को अपना वेतन लेते हुए संयम बरतना चाहिए। उनका लाइफ स्टाइल भी बहुत खर्चीला नहीं होना चाहिए। उनका कहना था कि जिस देश में अब भी खासी गरीबी है, वहां पर उद्योगपतियों को एक तरह से अपने व्यवहार से उदाहरण पेश करना चाहिए। नारायणमूर्ति जी की बात पर गौर तो किया ही जाना चाहिए।
मुझे याद है कि भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में जब मैं मानव संसाधन और विज्ञान एवं प्राद्योगिकी मंत्रालय में सलाहकार था, नारायणमूर्ति जी आईआईए, अहमदाबाद के अध्यक्ष थे और कई विषयों पर मंत्रालय से अलग विचारों के लिए विवादों में भी आ जाते थे। पर, वे अपनी बात मजबूती से रखते थे और कौन क्या सोच रहा है, इसकी परवाह नहीं करते थे। यह कहना सही होगा कि हमारे यहां के अमीरों का लाइफ स्टाइल किसी राजा-महाराज जैसा रहने लगा है। ये शादी ब्याह के अवसरों पर या फिर अपने घरों को खरीदने में सैकड़ों करोड़ रुपये फूंक देते हैं, जिसकी कोई जरूरत नहीं होती है। माइक्रोसाफ्ट के सांसद चेयरमेन बिल गेट्स से अधिक धनी कौन होगा। पर उनका जीवन सादगी भरा है। वे कमाए हुए धन के बड़े भाग का उपयोग लोक कल्याण के लिए करते हैं। इधर आनंद महिन्द्रा जैसे उद्योगपति भी हैं। महिन्द्रा एंड महिन्द्रा समूह के चेयरमेन आनंद महिन्द्रा अपनी पुत्री का विवाह सादगी के साथ करते हैं। उनके विवाह समारोह में तीन-चार दर्जन लोग रहते हैं। यह ही होना भी चाहिए। नारायणणूर्ति का लाइफ स्टाइल भी बहुत सादगी भरा है। वे अपने अरबों रुपये के घर में नहीं रहते। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्रषि सुनक के ससुर नारायणमूर्ति जी की पत्नी सुधा जी को भी आप कोई बहुत महंगी साड़ी पहने हुए नहीं देखे होंगे। दोनों पति-पत्नी लोक कल्याण के कार्यों में लगे रहते हैं। रतन टाटा भी धन नहीं फूंकते।
यह निश्चित रूप से विचारणीय मसला है कि किसी कंपनी के सीईओ को कितनी सेलरी मिले? सीईओ अपनी कंपनी का कप्तान होता है। तो क्या इस लिए उसे अपनी कंपनी के बाकी कर्मियों की अपेक्षा कई गुना अधिक पगार मिले ? क्या कंपनी के कर्मियों का उसे बुलंदियों में लेकर जाने में कोई रोल नहीं होता? क्या सिर्फ सीईओ ही अपनी कंपनी की सफलता का श्रेय ले ले? सीईओ को भारी-भरकम पगार मिलती रहे, इसके पक्ष में एक तर्क भी दिया जाता है। कहा जाता है कि चूंकि वह अपनी मेहनत से शिखर पर पहुंचता है, इसलिए मोटी पगार पाना उसका हक है ? कुछ साल पहले देश की एक प्रमुख टायर कंपनी के सीईओ की पगार पर बवाल मचा था। उसने अपनी सालाना सेलरी में दस फीसद तक की वृद्धि कर ली हालांकि उसकी कंपनी का मुनाफा विगत वर्षों की तुलना में घट रहा था।
अब एक सवाल? क्या कोई कर्मी खराब प्रदर्शन करने के बाद भी अपनी वेतन में मोटी वृद्धि की उम्मीद कर सकता है? नहीं। ये ही सवाल उस टायर कंपनी के सीईओ से क्यों नहीं पूछा जाता? जब देश में करीब पौन अरब आबादी एक लाख रुपये सालाना रुपये से कम पर गुजर -बसर करती हो तब ऐसी बर्बर पगार-विषमता को कैसे न्यायपूर्ण ठहराया जा सकता है? सरकार किसी भी दल या गठबंधन की रहे, क्या इतनी वीभत्स पूंजीवादी व्यवस्था को झेलना चाहिए? आर्थिक उदारीकरण के पश्चात सेलरी में गुणात्मक सुधार हुआ है। सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों में काम करने वालों की सेलरी अब सम्मानजनक हो चुकी है। पर सेलरी में अंतर काफी बढ़ा है। इस स्थिति के कारण कर्मियों में तनाव और आपस में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास और वैमनस्थ का भाव भी बढ़ा है।
यह तो तस्वीर का एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि हमारे यहां सफल उद्यमियों को लेकर समाज के एक वर्ग की बड़ी नेगेटिव राय रहती है। देख लीजिए कि आजकल देश के दो महत्वपूर्ण औद्योगिक घरानों के पीछे अकारण सोशल मीडिया पड़ा है। यहां पर बात रिलायंस और अडाणी समूहों की हो रही है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) में ऊर्जा, पेट्रोकेमिकल, कपड़ा, प्राकृतिक संसाधन, खुदरा व्यापार और दूरसंचार के क्षेत्र में देश व्यापी बड़ा कारोबार करती है I रिलायंस भारत की सबसे अधिक लाभ कमाने वाली कंपनियों में से एक है। इसका अर्थ यह हुआ कि रिलायंस के लाखों शेयर होल्डर भी उस लाभ के भागीदार हैंI इसमें लाखों पेशेवर काम भी करते हैं। लगभग सभी की तनख्वाह इतनी अधिक होती है कि सभी टैक्स देते हैं। अब बात कर लें अडाणी समूह की भी। कुछ समय पहले, हिंडनबर्ग ने अडाणी समूह पर एक रिपोर्ट जारी की जिसमें आरोप लगाया गया कि समूह स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी में शामिल है। इस रिपोर्ट के आने के बाद हमारा सोशल मीडिया अडाणी के पीछे इस तरह से पड़ गया मानो उसने कोई अपराध किया हो। अभी तो उस पर कोई अपराध साबित नहीं हुआ है। पर इससे किसी को कोई मतलब भी नहीं है।
फिलहाल अडाणी समूह की कंपनियों के शेयर धूल में मिल गए हैं। गौतम अदाणी पहली पीढ़ी के उद्यमी हैं। उन्हे जबरदस्ती खलनायक बना दिया गया है। ये नकारात्मकता बढ़ती ही जा रही है। थोड़ा पीछे चलते हैं। यूपीए सरकार के दौर में कुमार मंगलम बिड़ला समूह के अध्यक्ष आदित्य बिड़ला पर कोलगेट में एफआईआर दर्ज हो गई थी। बिड़ला का भारत के कारपोरेट जगत में टाटा ग्रुप के पुराण पुरुष रतन टाटा, महिन्द्रा एंड महिन्द्रा के प्रमुख आनंद महिन्द्रा, एचडीएफसी बैक के चेयरमेन दीपक पारेख के जैसा ही स्थान है। इससे पहले कभी कुमार मंगलम बिड़ला का नाम किसी विवाद में नहीं आया था। इसलिए उनके खिलाफ सीबीआई की तरफ से चार्जशीट दायर करने से हड़कंप मच गया था। अगर हम अपने देश के उजली छवि वाले कारपोरेट जगत के दिग्गजों पर मिथ्या आरोप लगाएंगे या फिर उन पर एफआईआर दर्ज करवाएंगे तो समझ लें कि दुनियाभर में भारतीय कारोबारियों की गलत छवि ही जाएगी।
खैर, अब कुमार मंगलम बिड़ला को हाल ही में पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। वे इस सम्मान के हकदार हैं। कुल मिलाकर बात ये है कि एक तरफ तो एन. नारायणमूर्ति की सलाह पर देश के बड़े कारोबारियों और धनी लोगों को अमल करना होगा। दूसरा, देश को अपने उद्योग जगत की सफल हस्तियों का सम्मान करना भी सीखना होगा।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)