– डॉ. रमेश ठाकुर
हाथरस के सत्संग स्थल को किसने श्मशान घाट में तब्दील किया? ये सवाल घटना घट जाने के बाद हादसा स्थल के चारों ओर गूंज रहा है। जवाब कौन देगा और कौन है हादसे का जिम्मेदार? ये सवाल भी वहां मुंह खोले खड़ा हुआ है। भगदड़ में मरने वालों की तितर-बितर फैली लाशें, कराहते घायल श्रद्धालुओं की चीखें देखकर परिजनों की हिम्मत जवाब देती दिखी। राहत-बचाव में जुटे कर्मियों के कलेजे भी कंपकपा रहे थे। हाथरस में भोले बाबा के सत्संग में संभावित या आपातकाल की घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासनिक इंतजाम अगर थोड़े से भी होते तो इतनी दर्दनाक घटना नहीं घटती। हैरानी की बात ये है कि हजारों सत्संगियों की रक्षा में मात्र 73 पुलिसकर्मी तैनात थे, जिनमें दो दर्जन तो होमगार्ड ही थे। घटना का शोर जब तेजी से मचने लगा तो सबसे सुरक्षाकर्मी ही भाग खड़े हुए। दूसरों को बचाने से बेहतर खुद की जान जान बचानी जरूरी समझी।
प्रशासन और आयोजक दोनों गहरी नींद में सोए हुए थे। सत्संग स्थल पर एक भी एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं थी। न ही कोई फायरब्रिगेड की गाड़ी वहां तैनात थी और न ही कोई विशेष अन्य व्यवस्थाएं की गईं थीं। इसलिए हाथरस भगदड़ को स्थानीय प्रशासन की घोर लापरवाही का नतीजा इसलिए कहा जाएगा, क्योंकि जिस सत्संग स्थल पर बाबा भोले के प्रवचन का आयोजन था उसमें मात्र पांच हजार लोगों की बैठने-उठने की व्यवस्था थी। लेकिन लापरवाही देखिए 50 हजार से अधिक लोग सत्संग में पहुंचे हुए थे। इसलिए सत्संग स्थल कैसे बना श्मशान घाट? उसकी असल सच्चाई सबके सामने है। सत्संग स्थलों पर यह न पहला हादसा है और न ही अंतिम? इससे पूर्व भी कई दर्दनाक हादसे हुए। लेकिन घटना हो जाने पर शासन से लेकर प्रशासन तक खलबली मच जाती है। पर, जैसे ही मामले की तपिश कुछ शांत होती है, प्रशासन दूसरे हादसे का इंतजार करने लगता है।
हाथरस का लोकल प्रशासन अगर वास्तव में थोड़ा सा भी अलर्ट होता। इतने श्रद्धालुओं को सत्संग में पहुंचने की इजाजत नहीं देता, तो सैकड़ों लोग बेमौत मरने से बच सकते थे। उन्हें अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती। हादसे होते ही प्रवचन सुनाने वाला बाबा पतली गली देखकर फरार हो गया। बाबा की हकीकत जानें तो वह कोई जन्मजात साधु, पंडा या प्रवचनकर्ता नहीं है और न ही लंबे समय से इस क्षेत्र में है। आधी उम्र बीतने के बाद उसे प्रवचन सुनाने का शौक चढ़ा। करीब 26 वर्ष तक इंटेलिजेंट ब्यूरो में सामान्य कर्मचारी के तौर पर नौकरी की, नौकरी छोड़ने के बाद उसके अपना नाम बदला और ‘विश्व हरि भोले’ रख लिया। फिर कूद पड़ा धर्म क्षेत्र में, बीते कुछ वर्षों में उन्होंने हिंदी पट्टी के राज्यों में लाखों की संख्या में अपने अनुयायी बनाए। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा व बिहार में उनके भक्तों की संख्या बहुतायत है।
यह बाबा भी पूर्व के बाबाओं की तरह दुख-दर्द, हारी-बीमारी दूर करने का वादा करता है। ग्रामीण महिलाएं इनकी भक्त ज्यादा है। जाहिर सी बात महिलाएं जब कहीं जाती हैं तो अपने साथ छोटे बच्चों को जरूर ले जाती हैं। मंगलवार को भी कमोबेश कुछ ऐसा ही हुआ। सत्संग में भारी संख्या में महिला पहुंचीं। बच्चे भी थे उनके साथ। इसलिए हादसे में मरने वालों में नौनिहालों की भी संख्या काफी बताई जाती है। हादसे की जितनी निंदा की जाए कम है। सवाल उठता है सरकार-प्रशासन इस हादसे से कुछ सबक लेगा या फिर मुआवजा और सहानुभूति देकर मात्र मामला शांत करेगा। मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और पक्ष-विपक्ष के नेता भी दुख प्रकट कर रहे हैं। करना भी चाहिए, घटना ही ऐसी, जो सुन रहा है उसके रोंगेटे खड़े हो रहे हैं। घटना का दोषी समूचा स्थानीय प्रशासन है, उसकी लापरवाही से ही ये घटना घटी। संत्सग में अधिक भीड़ इसलिए पहुंची , क्योंकि मंगलवार को सत्संग का समापन दिन था जिसमें अनुमानित पांच हजार से भी अधिक श्रद्धालु पहुंचे हुए थे।
घटना कैसे घटी ये जानना जरूरी है। प्रवचन सुनाने वाले बाबा की जब एंट्री हुई तो उसे करीब से देखने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उनके काफिले पर टूट पड़ी। अगर वहां दो-चार दर्जन सुरक्षाकर्मी तैनात होते तो ऐसी घटना शायद न घटती। वो भीड़ को नियंत्रित कर सकते थे। पर, यहां सवाल एक ये भी उठता है कि आयोजकों ने पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए? भीड़ अगर ज्यादा थी तो प्रशासन से अपील करनी चाहिए थी। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के हताहत होने की खबर घटना के कुछ घंटों बाद ही सामने आ गई। सैकड़ों घायल श्रद्धालु विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। ईश्वर उनकी रक्षा करे, उन्हें जल्द स्वस्थ करे। लेकिन सत्संग स्थल कैसे समाधि स्थल बना इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। हादसे की खबर से समूचे देश की आंखें नम हैं। घटना हाथरस जिले के कस्बा रतिभानपुर इलाके की है। प्रदेश सरकार ने पीड़ितों के लिए आर्थिक सहायता देने का ऐलान कर दिया है। केंद्र सरकार ने भी आर्थिक सहायता राशि देने की घोषणा की है। लेकिन यह मुआवजा वह जख्म कभी नहीं भर सकता, जो इस हादसे ने दिया है। दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, दोषी चाहे फिर आयोजक हों या प्रशासनिक अधिकारी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)