Friday, September 20"खबर जो असर करे"

हामिद अंसारी करते रहे उपराष्ट्रपति पद की गरिमा तार-तार!

– आर.के. सिन्हा

देश के अगले उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ बनेंगे या मार्गरेट अल्वा? इस सवाल का उत्तर राष्ट्र को आगामी 06 अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति के चुनाव के नतीजे आने के बाद मिल जाएगा। अब तक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. जाकिर हुसैन, वी.वी.गिरी, गोपाल स्वरूप पाठक, बी.डी.जत्ती, एम हिदायतउल्ला, आर.वेंकटरमण, डॉ. शंकरदयाल शर्मा, डॉ. के.आर. नारायणन, कृष्णकांत, भैंरोसिंह शेखावत, हामिद अंसारी और वैंकया नायडू को देश के उपराष्ट्रपति बनने का गौरव मिला। बेशक, यह देश का अति महत्वपूर्ण पद है। पर कहना पड़ेगा कि मोहम्मद हामिद अंसारी ने अपने पद की गरिमा का ख्याल नहीं किया। वे सन 2007 से लेकर सन 2012 तक देश के उपराष्ट्रपति रहे। वे लगातार अपनी ओछी और गैर-जिम्मेदराना बयानबाजी से भारत को शर्मिंदगी में डालते रहे।

उपराष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद भी वे लुटियन दिल्ली के भव्य राजसी सरकारी बंगले का सुख लेते हुए कहते रहते हैं कि भारत के मुसलमान अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उनकी केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ खुंदक समझ से परे है। हालांकि कहने वाले कहते हैं कि उन्हें उम्मीद थी कि मोदी सरकार उन्हें राष्ट्रपति बना देगी, पर यह नहीं हुआ। वे तब से यह सब बोले जा रहे हैं। वे अपनी कुंठा को छिपा नहीं पाते। वे कहते रहते हैं कि भारतीय मुसलमान 2014 के बाद से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उसी साल नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे। अंसारी साहब ने कभी देश के दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के हक में आवाज नहीं उठाई। वे तो अपने को मुसलमानों का प्रवक्ता बनाने पर आमादा हैं। उन्होंने कभी यह नहीं पूछा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में दलितों और पिछड़ों को आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता। ये सारी बातें सिद्ध करती हैं कि बहुत महत्वाकांक्षी और हल्के किस्म के इंसान हैं अंसारी साहब । बहरहाल, देश की चाहत रहेगी कि उसे भविष्य में कभी हामिद साहब जैसा उपराष्ट्रपति न मिले। वे अपने को बहुत बड़ा ज्ञानी बताते हैं। काश, उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों के बारे में जाना होता तो उनका आचरण कुछ सही हो जाता।

भारत के पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने कार्यकाल में राष्ट्र निर्माण में रचनात्मक योगदान दिया। उन्हीं की पहल पर राजधानी को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) मिला। डॉ. राधाकृष्णन ने 1958 देश के तब के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से इच्छा जताई थी कि राजधानी में कोई इस तरह की जगह बन जाए जिधर पढ़ने-लिखने की दुनिया से जुड़े लोग मिल-बैठ करते रहें। उनकी सलाह नेहरू जी को पसंद आ गई। उन्होंने बिना देर किए शहरी विकास मंत्रालय को निर्देश दिए किए वह एक प्लाट अलाट करे। नेहरु जी के निर्देश के बाद देरी होने का सवाल ही नहीं था। तब लोधी गार्डन से सटे 4.76 एकड़ का प्लाट आईआईसी के लिए अलॉट किया गया। इसका प्लाट मिलने के बाद डॉ. राधाकृष्णन ने आईआईसी को खड़ा करने के लिए वित्त मंत्री डॉ. सी.डी.देशमुख, प्रो. एच.एन. कुंजरू, प्रो. हुमायूं कबीर (जॉर्ज फर्नाडीज के ससुर), दिल्ली स्कूल आफ इकानोमिक्स के डायरेक्टर डॉ वीकेआरवी राव वगैरह को जोड़ा। इसका डिजाइन तैयार किया महान आर्किटेक्ट जोसेफ एलेन स्टाइन ने। इसके लाजवाब डिजाइन ने उन्हें खूब ख्याति दिलवाई। स्टाइन साहब ने आईआईसी में जालियों और छज्जों को जगह दी।

अंसारी साहब से पहले ड़ॉ. जाकिर हुसैन तथा मोहम्मद हिदायतुल्लाह देश के मुस्लिम समाज से आने वाले उपराष्ट्रपति बने थे। दोनों की शानदार शख्सियत थी। डॉ. जाकिर हुसैन चोटी के शिक्षाविद् और स्वाधीनता सेनानी भी थे। इन दोनों की भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति आस्था निर्विवाद थी। पर अंसारी साहब अपने को पहले मुसलमान साबित करने में लगे रहते हैं। मोहम्मद हिदायतुल्लाह 53 साल की आयु में सुप्रीम कोर्ट के जज बने। उन्हें 28 फरवरी 1968 को देश का चीफ जस्टिस बनाया गया था। वे देश के 1979 से 1984 तक उपराष्ट्रपति रहे। इस दौरान राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जब इलाज के लिए अमेरिका गए तो उन्होंने 06 अक्टूबर 1982 से 31 अक्टूबर 1982 तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में भी काम किया। वे बेहद सुलझे हुए इंसान थे। सारा देश उनकी विद्वता को स्वीकार करता था। यहां पर भैंरो सिंह शेखावत के उपराष्ट्रपति काल का जिक्र करना समीचीन रहेगा। वे जब उपराष्ट्रपति थे तब उपराष्ट्रपति आवास के गेट आम-खास सब के लिए खुले रहते थे। भैरों सिंह शेखावत 19 अगस्त 2002 से 21 जुलाई 2007 तक उपराष्ट्रपति रहे। वे राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे।

भैरोंसिंह शेखावत का जन्म तत्कालीन जयपुर रियासत के गांव खाचरियावास में हुआ था। यह गांव अब राजस्थान के सीकर जिले में है। शेखावत जी को मित्रों के बीच रहना पसंद था। वे किस्सागो इंसान थे। उनके पास मिलने वालों की भीड़ कभी कम नहीं होती थी। वे गर्मागर्म चाय पिलाकर अतिथियों से विस्तार से वार्तालाप करते थे। गंभीर राजनीति हो या तनाव के लम्हे, शेखावत हास्य के क्षण ढूंढ लेते थे। ये उनकी जीवटता की खुराक थी। उनके दोस्त सभी दलों में थे, शायद सभी दिलो में भी। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत राजस्थान की सियासत में ऐसे वटवृक्ष थे जिनकी छांव एक बड़ा दायरा बनाती थी। उनके विरोधी तो थे, मगर शत्रु कोई नहीं। वो खुद भी कहते थे- “मैं दोस्त बनाता हूं। दुश्मन नहीं।”

देश के निवर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी उप राष्ट्रपति पद को गरिमा प्रदान की। उनकी छवि भी एक ‘आंदोलनकारी’ की रही। वे 1972 में ‘जय आंध्र आंदोलन’ के दौरान पहली बार सुर्खियों में आए थे। उन्होंने इस दौरान नेल्लोर के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुये विजयवाड़ा से आंदोलन का नेतृत्व किया। छात्र जीवन में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से प्रभावित होकर आपातकालीन संघर्ष में हिस्सा लिया। वे आपातकाल के विरोध में सड़कों पर उतरे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वे बेहतरीन मेजबान भी हैं। सबसे खूब प्रेम से मिलते-जुलते हैं। उपराष्ट्रपति के रूप में भी उनका कार्यकाल शानदार रहा। वे अपनी बात कहने से कभी पीछे नहीं हटते। वैंकया नायडू उपराष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद अपने संतुलित और सकारात्मक विचारों से निश्चित रूप से देश का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)