– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
इस सप्ताह दो महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हो रहे हैं। एक कंपूचिया के नोम पेन्ह और दूसरा इंडोनेशिया के शहर बाली में। पहले सम्मेलन में ‘आसियान’ संगठन के सदस्य-राष्ट्रों का 17 वां शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ। अब बाली में 20 राष्ट्रों के ‘ग्रुप-20’ संगठन का शिखर सम्मेलन हो रहा है। पहले सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया और अब बाली के सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिस्सा ले रहे हैं। विदेश मंत्री जयशंकर ने शिखर वार्ता के लिए जमीनी तैयारी की है।
पहले सम्मेलन में तो अमेरिका से प्रभावित पूर्व एशियाई राष्ट्रों ने चीन की विस्तारवाद की नीति के विरुद्ध अपनी चिंता पर सबसे ज्यादा जोर दिया। यद्यपि सभी राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने आपसी सहयोग के कई आयामों पर विस्तृत चर्चा भी की लेकिन उनकी परेशानी यह थी कि दक्षिण चीनी समुद्र में चीन ने उसके सभी पड़ोसी देशों के जल क्षेत्रों पर अपना कब्जा जमा लिया है। उसने ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम के जल क्षेत्रों में कृत्रिम द्वीप खड़े कर लिए हैं और सैनिक अड्डे बना लिए हैं।
इन देशों के शिखर सम्मेलन में भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का प्रभावशाली भाषण तो हुआ ही, कंपूचिया के साथ चार समझौते भी हुए लेकिन अब जो सम्मेलन बाली में अभी हो रहा है, उसका स्वर न तो चीन विरोधी हो सकता है और न ही रूस-विरोधी, क्योंकि ये दोनों राष्ट्र जी-20 के महत्वपूर्ण सदस्य हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, इंडोनेशिया पहुंच चुके हैं और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी। बाइडन पहले ही कह चुके हैं कि अमेरिका की चीन से कोई दुश्मनी नहीं है। उसके साथ वे सार्थक संवाद जारी रखेंगे। लेकिन यूक्रेन के मसले पर अमेरिका और उसके कई साथी राष्ट्र रूस की भर्त्सना किए बिना नहीं रहेंगे।
शायद इसी डर के मारे रूस के राष्ट्रपति पुतिन बाली नहीं गए हैं। इस शिखर सम्मेलन के संयुक्त वक्तव्य को लेकर कई देशों के कूटनीतिज्ञ अपना दिमाग भिड़ाए हुए हैं। इस मुद्दे पर भारत को अपने कदम फूंक-फूंककर रखने होंगे, क्योंकि इस नए वर्ष में भारत ही इस विशाल संगठन का अध्यक्ष रहने वाला है। उसकी विदेश नीति अभी तक बहुत ही संतुलित और व्यावहारिक रही है। मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग चाहें तो इस मौके पर एक-दूसरे से मिल भी सकते हैं, जैसे कि बाइडन और शी मिल रहे हैं। जी-20 इस वर्ष यदि पर्यावरण शुद्धि, परमाणु निरस्त्रीकरण, आर्थिक पुनरोदय आदि विश्वव्यापी मुद्दों पर कुछ ठोस फैसले कर सके तो भारत की अध्यक्षता ऐतिहासिक सिद्ध हो जाएगी।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)