Friday, September 20"खबर जो असर करे"

गुड फ्राइडे: यीशु के बलिदान और शिक्षाओं को याद करने का दिन

– योगेश कुमार गोयल

‘‘हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करें, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।’’ यह प्रार्थना थी यीशु (ईसा मसीह) की उन हत्यारों के लिए, जिन्होंने भयावह अमानवीय यातनाएं देते हुए उनके प्राण ले लिए। यीशु के सिर पर कांटों का ताज रखा गया, उन्हें सूली को कंधों पर उठाकर ले जाने को विवश किया गया और गोल गोथा नामक स्थान पर ले जाकर दो अन्य अपराधियों के साथ बेरहमी से कीलों से ठोकते हुए क्रॉस पर लटका दिया गया। यीशु ने उत्पीड़न और यातनाएं सहते हुए मानवता के लिए अपने प्राण त्याग दिए और दया-क्षमा का अपना संदेश अमर कर दिया। पृथ्वी पर बढ़ रहे पापों के लिए बलिदान देकर ईसा ने निःस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। सूली पर प्राण त्यागने से पहले यीशु ने कहा था, ‘‘हे ईश्वर! मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों में सौंपता हूं।’’

यीशु ने मानवता की भलाई के लिए बलिदान दिया। उनके बलिदान, उनकी शिक्षाओं को याद करने का दिन है ‘गुड फ्राइडे’। ईसाई मान्यता के अनुसार दुनिया को प्रेम, दया, करुणा, परोपकार, अहिंसा, सद्व्यवहार और पवित्र आचरण का संदेश देने वाले यीशु को इसी दिन उस जमाने के धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा क्रॉस पर चढ़ाया गया था। जिस दिन ईसा मसीह ने प्राण त्यागे थे, उस दिन शुक्रवार था और इसी याद में ‘गुड फ्राइडे’ मनाया जाता है। ईस्टर के रविवार से पहले पड़ने वाले शुक्रवार को मनाया जाता है और इस वर्ष गुड फ्राइडे 7 अप्रैल को मनाया जा रहा है। ईसाई समुदाय द्वारा इस त्यौहार को शोक के रूप में मनाया जाता है। गुड फ्राइडे को यीशु द्वारा मानवता की भलाई के लिए दिए बलिदान के रूप में देखा जाता है। गुड फ्राइडे के दिन गिरजाघरों में घंटा नहीं बजाया जाता बल्कि लकड़ी के खटखटे बजाए जाते हैं और लोग चर्च में क्रॉस को चूमकर यीशु का स्मरण करते हैं। कुछ स्थानों पर लोग काले कपड़े पहनकर प्रभु यीशु के बलिदान दिवस पर शोक भी व्यक्त करते हैं और यीशु से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। ईसा मसीह के सूली पर चढ़ाए जाने की याद में इस दिन उनके अनुयायी समस्त लौकिक सुविधाओं का त्याग कर देते हैं। इस दिन चर्च और घरों से सजावटी वस्तुएं हटा दी जाती हैं या उन्हें कपड़े से ढ़क दिया जाता है।

कैथोलिकों द्वारा शुरू की गई प्रथा के अनुसार गुड फ्राइडे के ठीक 40 दिन पहले आने वाले बुधवार से ईसाई समुदाय में प्रार्थना और उपवास प्रारंभ हो जाते हैं। इस बुधवार को ‘राख का बुधवार’ कहा जाता है। उपवास के दौरान लोग केवल शाकाहारी और सात्विक भोजन करते हैं। माना जाता है कि यीशु ने मानव सेवा प्रारंभ करने से पहले चालीस दिन तक व्रत किया था और संभवतः इसीलिए उपवास की यह परम्परा शुरू हुई। इस दिन दुनियाभर के ईसाई सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देने के लिए चर्च में चंदा या दान देते हैं। ईसाई धर्म में ईसा मसीह को परमेश्वर का पुत्र माना जाता है। उन्होंने लोगों को क्षमा, शांति, दया, करूणा, परोपकार, अहिंसा, सद्व्यवहार और पवित्र आचरण का उपदेश दिया और उनके इन्हीं सद्गुणों के कारण लोग उन्हें शांति दूत, क्षमा मूर्ति और महात्मा कहकर पुकारने लगे थे। कहा जाता है कि वे यरूशलम के गैलिली प्रांत में लोगों को मानवता, सत्य, एकता, प्रेम, अहिंसा और शांति का उपदेश दिया करते थे। उनके संदेश दूर-दूर तक फैलने लगे और उनके विचारों को लोग अपने जीवन में अपनाने लगे। वहां के लोग उन्हें परमपिता परमेश्वर का दर्जा देने लगे थे। समाज में धार्मिक अंधविश्वास और झूठ फैलाने वाले धर्मगुरूओं को इसी कारण ईसा मसीह से काफी जलन होने लगी थी क्योंकि लोग अपनी समस्याओं को लेकर अब उनके पास नहीं आ रहे थे। करीब दो हजार वर्ष पूर्व उन्हें मृत्युदंड इसीलिए दिया गया क्योंकि वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और घोर विलासिता तथा अज्ञानता के अंधकार को दूर करने के लिए लोगों को शिक्षित और जागरूक कर रहे थे।

ईसा मसीह परिवर्तन के पक्षधर थे और उन्होंने मानव प्रेम की सीमा नहीं बांधी बल्कि अपने बलिदान से उसे आत्मकेन्द्रित एवं स्वार्थ से परे बताया। पृथ्वी पर बढ़ रहे पापों के लिए बलिदान देकर ईसा ने निःस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। ईसाई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार क्रॉस पर लटकाए जाने के करीब तीन दिन बाद रविवार को ईसा मसीह पुनः जीवित हो गए थे, इसीलिए गुड फ्राइडे के बाद आने वाले रविवार को ‘ईस्टर संडे’ के नाम से जाना जाता है। पुनः जीवित हो उठने के बाद ईसा ने अपने शिष्यों के साथ 40 दिनों तक रहकर हजारों लोगों को दर्शन दिए। ईसा मसीह के जी उठने की याद में ही दुनियाभर में ईसाई धर्म के अनुयायी ‘ईस्टर संडे’ मनाते हैं। ईस्टर की आराधना उषाकाल में ईसाई महिलाओं द्वारा की जाती है, क्योंकि माना जाता है कि यीशु का पुनरुत्थान इसी वक्त हुआ था और उन्हें सबसे पहले मरियम मदीलिनी नामक महिला ने देखा था तथा अन्य महिलाओं को इस बारे में बताया था।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)