– 77.56 डॉलर प्रति बैरल तक लुढ़का डब्ल्यूटीआई क्रूड
नई दिल्ली। वैश्विक मंदी की आशंका के कारण विभिन्न देशों के घरेलू बाजारों की तरह ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल (कच्चे तेल) की कीमत पर भी काफी असर पड़ा है। कच्चे तेल की खपत में कमी आने की आशंका से आज वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड (डब्ल्यूटीआई क्रूड) गिरकर 78 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे के स्तर पर पहुंच गया। न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में डब्ल्यूटीआई क्रूड 21 नवंबर की डिलीवरी के लिए आज गिरकर 77.56 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गया।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में गिरावट का रुख लगातार बना हुआ है। माना जा रहा है कि वैश्विक मंदी की आशंका और डॉलर के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच जाने के कारण कच्चे तेल की कीमत पर दबाव बना हुआ है। जानकारों का कहना है कि अगर वैश्विक मंदी की स्थिति बनी, तो दुनिया भर में कच्चे तेल की खपत पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। खासकर व्यावसायिक गतिविधियों के कम होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के उठाव में कमी आएगी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की खपत में कमी आने की आशंका ने तेल निर्यातक देशों को कीमत घटाने के लिए मजबूर कर दिया है।
मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर इंडेक्स में आई मजबूती के कारण कमोडिटी में कमजोरी का रुख बना है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी किए जाने के कारण डॉलर इंडेक्स फिलहाल 20 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है। ऐसी स्थिति में दुनिया भर के ज्यादातर देशों की मुद्रा डॉलर के मुकाबले काफी कमजोर हुई है। जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार से किसी भी कमोडिटी की खरीदारी काफी महंगी हो गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ज्यादातर लेन देन में डॉलर का इस्तेमाल किया जाता है। डॉलर महंगा होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार से की जाने वाली कोई भी खरीदारी अब पहले की तुलना में महंगी हो गई है।
कच्चे तेल की कीमत में आई इस गिरावट के बाद यह आशंका भी जताई जा रही है कि ओपेक और इसके सहयोगी देश कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती कर सकते हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की उपलब्धता को सीमित करके इसकी कीमत पर नियंत्रण किया जा सके। हालांकि मार्केट एक्सपर्ट मयंक मोहन का मानना है कि मौजूदा वैश्विक अर्थव्यवस्था के दौर में अगर कच्चे तेल की कीमत में गिरावट को रोकने के इरादे से इसके उत्पादन को कम करने का तरीका अपनाया जाता है, तो इससे अधिक लाभ नहीं होगा।
मयंक मोहन के अनुसार डॉलर की कीमत बढ़ने की वजह से फिलहाल ज्यादातर क्रूड ऑयल के आयातक देश कच्चा तेल या पेट्रोल-डीजल की खरीद को सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कि उनका ऑयल बिल नियंत्रण में रहे। ऐसे में अगर उत्पादन कम करके कच्चे तेल की कीमत को बढ़ाने की कोशिश की गई, तो आयातक देश अंतरराष्ट्रीय बाजार से कच्चे तेल की खरीद को और कम करने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसा होने पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल पर तो दबाव बढ़ेगा ही, वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेलने की वजह भी बनेगा। मयंक मोहन के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को देखते हुए ये भी कहा जा सकता है कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ाने के लिए कच्चे तेल का उत्पादन कम करने का तरीका अपनाया गया तो इससे वैश्विक मंदी का जोखिम और भी अधिक बढ़ सकता है। (एजेंसी, हि.स.)