Friday, November 22"खबर जो असर करे"

जी20 अब महिलाओं, बच्चों व किशोरों के स्वास्थ्य एवं कल्याण की दिशा में करे कार्य

– अमिताभ कांत/ हेलेन क्लार्क

वैश्विक स्तर पर सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की दृष्टि से महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य में निवेश करना बेहद महत्वपूर्ण है। हर वर्ष, सभी जी20 देशों में कुल मिलाकर लगभग दो मिलियन माताओं, नवजात शिशुओं, बच्चों और किशोरों की मौतें होती हैं। इनमें मृत बच्चों का जन्म भी शामिल है। इन सभी मौतों को रोका जा सकता है। हाल के वर्षों में, इन नकारात्मक परिणामों के प्रमुख कारकों में “चार सी” शामिल हैं: कोविड-19, संघर्ष (कनफ्लिक्ट), जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) और जीवन-यापन की बढ़ती लागत का संकट (कॉस्ट ऑफ लिविंग क्राइसिस)।
इन कारकों ने संयुक्त रूप से महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य एवं कल्याण को भारी नुकसान पहुंचाया है। प्रणालीगत भेदभाव और मौसम की चरम घटनाओं, खाद्य असुरक्षा एवं गरीबी में वृद्धि महिलाओं, बच्चों व किशोरों की स्वास्थ्य संबंधी प्रगति में प्रमुख बाधाएं हैं। वर्ष 2000 में, जलवायु संबंधी आपातकाल दुनिया भर में 150,000 से अधिक मौतों और वैश्विक स्तर पर बीमारी के बढ़ते बोझ का जिम्मेदार बना था। इस बोझ का 88 प्रतिशत हिस्सा बच्चों पर पड़ा था। एक अनुमान के अनुसार जलवायु आपातकाल से विस्थापित होने वाले लोगों में से 80 प्रतिशत महिलाएं हैं और इसका मुख्य कारण लैंगिक आधार पर होने वाली आर्थिक एवं सामाजिक असमानताएं हैं।

इस प्रकार की असमानताएं, पर्यावरणीय क्षति और मानव जीवन एवं पूंजी की हानि अत्यंत ही दुखद है। इसके परिणामस्वरूप, महिलाओं के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और इससे “गरीबी का स्त्रीकरण” बढ़ जाता है। दुनिया भर में, शिक्षा के समान स्तर को अगर ध्यान में रखकर अगर देखें तो महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम कमा पाती हैं। जी20 देशों में कुल वैश्विक जनसंख्या का दो तिहाई हिस्सा निवास करता है और उनके द्वारा सामूहिक रूप से उठाए जाने वाले कदम वैश्विक स्तर के होते हैं। जी20 को अब महिलाओं, बच्चों एवं किशोरों के स्वास्थ्य में सुधार लाने और रोकी जा सकने वाली जीवन की हानि से निपटने की दिशा में कार्रवाई करनी चाहिए। वर्तमान में जी20 की अध्यक्षता की जिम्मेदारी भारत के कंधों पर है और वह सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज हासिल करने एवं वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

उदाहरण के लिए, भारत ने 2021 में शुरू की गई डिजिटल रणनीति के हिस्से के रूप में डिजिटल स्वास्थ्य समाधान से संबंधित कई पहल का प्रस्ताव दिया है। इन डिजिटल उपकरणों ने टीकाकरण कवरेज की निगरानी के लिए एक बिलियन लोगों के पंजीकरण और कोविड-19 टीकों की 1.78 बिलियन से अधिक खुराक दिए जाने को संभव बनाया। भारत ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और महामारी संबंधी बेहतर तैयारियों एवं उपायों से जुड़े प्रयासों पर जलवायु संकट के चल रहे प्रभावों को देखते हुए, जलवायु-स्वास्थ्य संबंध से जुड़ी पहल का प्रस्ताव भी दिया है। यह सुनिश्चित करना बेहद महत्वपूर्ण है कि ये सभी पहल लैंगिक और उम्र की दृष्टि से संवेदनशील हों। उदाहरण के लिए, महिला-केन्द्रित डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता देना।

अच्छी कार्यप्रणालियों को साझा करने और साझा चुनौतियों से निपटने के लिए विभिन्न देशों के बीच सहयोग बेहद महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रभावी अनुकूलन के लिए प्रणालीगत दृष्टिकोण और विभिन्न देशों को दक्षिण-दक्षिण और उत्तर-दक्षिण सहयोग के माध्यम से वित्तीय संसाधन बढ़ाने और तकनीकी क्षमताओं के निर्माण में एक-दूसरे के प्रयासों का समर्थन करने की आवश्यकता है। जी20 देशों को महिलाओं, बच्चों और किशोरों के सामने आने वाली स्वास्थ्य एवं कल्याण संबंधी चुनौतियों पर काबू पाने के लिए और अधिक ठोस कार्रवाई करनी चाहिए।

सबसे पहले, जी20 देशों को स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने, आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक सुलभ बनाने तथा गरीबी एवं लैंगिक असमानता जैसे स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को दुरुस्त करने के लिए समग्र वित्तपोषण में वृद्धि को प्राथमिकता देनी चाहिए। लैंगिक दृष्टिकोण के माध्यम से भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश से अवैतनिक काम का बोझ कम हो सकता है, बेहतर कल्याण हो सकता है, नौकरियां सृजित हो सकती हैं, श्रमशक्ति की भागीदारी बढ़ सकती है, डिजिटल मोर्चे पर लैंगिक अंतराल में कमी आ सकती है, उत्पादकता बढ़ सकती है और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।

दूसरा, कई देश अपने स्वास्थ्य संबंधी व्यय को महामारी के पहले वाले स्तर पर बनाए रखने के लिए जूझ रहे हैं। इसका असर दुनिया भर में महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। स्वास्थ्य के क्षेत्र के लिए अधिक विकास संबंधी सहायता को आकर्षित करके और ऋण के बोझ को कम करने के लिए स्थायी समाधान ढूंढ़ कर विभिन्न देशों को अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने में मदद करने हेतु वैश्विक स्तर पर प्रयासों की आवश्यकता है। जी20 को इसकी हिमायत करनी चाहिए।
तीसरा, हमें नीतियों और कार्यक्रमों की प्रभावी ढंग से निगरानी एवं कार्यान्वयन के लिए एक मजबूत डेटा सिस्टम की आवश्यकता है। इस तथ्य को देखते हुए कि जी20 देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 85 प्रतिशत की हिस्सेदारी करते हैं, वैश्विक जनसंख्या के दो-तिहाई हिस्से को संभालते हैं और महत्वपूर्ण रूप से राजनैतिक प्रभाव रखते हैं, वे अनुसंधान को आगे बढ़ाने और नई एवं बेहतर स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों व टीकों के विकास को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से बेहतर स्थिति में हैं। इन क्षेत्रों में निवेश करते और निर्णय लेते समय महिलाओं, बच्चों और किशोरों को सार्थक रूप से शामिल करना आवश्यक है।

चौथा, बचपन के शुरुआती वर्षों में निवेश करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनमें परिवार-अनुकूल नीतियां और सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा का पहलू शामिल है। इस तरह के निवेश संज्ञानात्मक पूंजी को बढ़ावा दे सकते हैं ताकि समावेशी आर्थिक विकास संभव हो सके। संज्ञानात्मक पूंजी में बौद्धिक कौशल का पूरा युग्म शामिल होता है, जिसकी नींव मुख्य रूप से जन्मपूर्व एवं बचपन के शुरुआती वर्षों में पड़ती है और जो मानव क्षमताओं को निर्धारित करता है। (10) जी20 देशों में युवाओं में फैली बेरोजगारी से निपटने के लिए, डिजिटल साक्षरता जैसे किशोरों के कौशल विकसित करने और प्रौद्योगिकी-संचालित एवं पर्यावरण के प्रति जागरूक विकास को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

जी20 को अपने एजेंडे में महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य एवं कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए और इन्हें अपने एजेंडे में स्थायी रूप से शामिल करना चाहिए। इसके लिए समर्पित, उन्नत एवं निरंतर वित्तपोषण के साथ-साथ अधिक वैश्विक समन्वय और एकजुटता की आवश्यकता है ताकि कोई भी महिला, बच्चा, किशोर या देश पीछे न छूट पाए। दुनिया भर में सतत आर्थिक विकास के लिए महिलाओं, बच्चों और किशोरों का स्वास्थ्य एवं कल्याण अत्यंत आवश्यक है। इसे जी20 के मजबूत नेतृत्व के बिना संभव नहीं बनाया जा सकता है।

(अमिताभ कांत भारत के जी20 शेरपा और हेलेन क्लार्क पीएमएनसीएच बोर्ड की अध्यक्ष हैं।)