बैतूल। भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले बैतूल जिले के प्रभात पट्टन ब्लॉक के ग्राम तिवरखेड़ निवासी बद्री प्रसाद पांडे का सोमवार निधन हो गया। वे 99 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार दोपहर तिवरखेड़ के मोक्षधाम में राजकीय सम्मान के साथ किया गया। बैतूल से पहुंची एक चार की गार्ड द्वारा उन्हें पुलिस बिगुल के साथ सलामी दी गई। इस दौरान प्रभात पट्टन तहसीलदार मोनिका विश्वकर्मा तथा मासोद चौकी प्रभारी कमलेश सिंह रघुवंशी उपस्थित थे।
तिवरखेड़ निवासी डॉ. विजय देशमुख ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बद्री प्रसाद पांडे के पार्थिव शरीर को उनके छोटे पुत्र लीलाधर पांडे के द्वारा मुखाग्रि दी गई। अंतिम यात्रा में तिवरखेड़ सहित आसपास के गांवों से सैकड़ों ग्रामीण शामिल हुए तथा उन्हे नम आंखों से बिदाई दी। उन्होंने बताया कि प्रभातपट्टन क्षेत्र से गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरित होकर बड़ी संख्या में लोग आजादी की लड़ाई में कूदे थे इसलिए इसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गढ़ भी कहा जाता है।
19 वर्ष की उम्र में आजादी के आंदोलन में कूदे
बद्री प्रसाद पांडे बचपन से ही महात्मा गांधी से विचारों से प्रेरित थे तथा देश भक्ति उनके दिल में कूट कूट के भरी थी। परिजनों ने बताया कि गांधी के भारत छोड़ों आंदोलन का बिगुल बजते ही प्रभात पट्टन क्षेत्र से बद्री प्रसाद पांडे ने भी अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ विरोध जताया। उन्होने बताया कि मात्र 19 वर्ष की उम्र से ही वे आजादी के आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल होने लगे तथा अन्य लोगों को भी आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करने लगे।
2 वर्ष जेल में रहकर सही यातनाएं
आजादी के दीवाने बद्री प्रसाद पांडे पर देशभक्ति की ऐसी दीवानगी छाई की वे घर की परिस्थितियां अनुकुल नही होने के बावजूद आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए। डा.विजय देशमुख ने बताया कि वर्ष 1942-43 में वे दो वर्ष जेल में रहे। इस दौरान अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हे तरह तरह की यातनाएं दी लेकिन वे अपने मंसूबों पर अडिग रहे। परिजनों के अनुसार बद्री प्रसाद पांडे से प्रेरित होकर अनेक लोगों ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया जिससे प्रभात पट्टन की भूमि को आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमि कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ है।
100 वर्ष पूर्ण करने में तीन माह थे शेष
अपने जीवन काल में अंग्रेजों से लोहा लेकर हुकुमत के खिलाफ विद्रोह करने वाले बद्री प्रसाद पांडे पूरे जीवन अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। सादगी पूर्ण जीवन व्यतित करने वाले पांडे को जीवन के 100 वर्ष पूर्ण करने में मात्र तीन माह शेष थे। परिजनों ने बताया कि कठोर नियमों का पालन करने वाले पांडे जी अंतिम समय तक देश की चिंता करते रहे। उनके द्वारा अंग्रेजी हुकुमत के द्वारा किए गए जुल्म के किस्से भी लोग सुनते थे।