Friday, November 22"खबर जो असर करे"

हमीरपुर के एक गांव में दशहरे के दिन हुआ था भीषण संघर्ष

सुमेरपुर विकास खण्ड के ग्राम विदोखर में एक दिन रावण पर राम की विजय के कारण तो उसके अगले दिन दशहरे के दिन क्षत्रियों के बीच हुए भीषण संघर्ष के कारण विजय दशमी दशहरा पर्व मनाने की परम्परा चली आई है, जिसे चौबीसी का दशहरा नाम से जाना जाता रहा है, किन्तु पांच सौ वर्ष पुरानी परम्परा टूट जाने से चौबीसी का दशहरा इतिहास बनकर रह गया है।

बिदोखर पुरई के पूर्व प्रधान रणविजय सिंह ने बताया कि क़रीब पांच सौ वर्ष पूर्व उन्नाव जनपद के डोडिया खेर गांव से व्यापार के लिए वैश्य क्षत्रियो का एक बड़ा जत्था बैल गाड़ी व घोड़े पर सवार होकर व्यापार के लिए बिदोखर सहित आसपास के गावों में अक्सर आया करता था, एक बार यह जत्था विदोखर से होते हुए आगे की ओर जा रहा था, तभी गांव के दक्षिण दिशा में रंगी कुआं देख जत्था विश्राम के लिए रुक गया था।

कुएं का पानी गंदा हो जाने पर बगरी जाति के युवा क्षत्रियों ने जत्थे के लोगों को बेरहमी से मारा पीटा था। वैश्य क्षत्रिय अपमान का घूंट पीकर वापस उन्नाव लौट गए थे, इसके बाद दशहरे के दिन विदोखर आकर यहां के क्षत्रियों पर हमला बोल दिया था। इस कत्लेआम में सैकड़ों बगरी क्षत्रिय मारे गए थे, जबकि उन्नाव के क्षत्रियों का नेतृत्व कर रहे राहिल देव सिंह की भी मृत्यु हो गई थी।

समाजसेवी अमर सिंह के अनुसार गांव में भीषण संघर्ष के बाद वैश्य क्षत्रियों ने बगरी क्षत्रिय बाहुल्य 24 गांवों में कब्जा कर लिया गया था। विजय की खुशी में दशहरे के अगले दिन दशहरा मनाने की परम्परा वहीं से शुरु हुई जो अभी तक चली आई है, गांव में चौबीसी दशहरा का गवाह राहिल देव का मन्दिर है।

जो घमासान युद्ध के बाद बनवाया गया था। दो दशक पूर्व तक सुमेरपुर क्षेत्र के 24 गांवों के क्षत्रिय विदोखर गांव आकर अनोखे ढंग से दशहरा मनाते थे, प्रारम्भ में यहां सवामन सोना लुटाया जाता था, नटो का तमाशा होता था, रात में नौटंकी होती थी, दशहरा पर्व देखने के लिए आसपास के गावों से बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ भी उमड़ती थी। मेला भी लगता था, आपसी लड़ाई झगड़े निपटाए जाते थे, गांव के ब्राह्मणों को भोजन सामग्री प्रदान की जाती थी, अब केवल राहिल देव की याद में बने मन्दिर में दशहरे के दिन औपचारिकता निभाने के सिवा अन्य परंपराएं अब नहीं नजर आतीं।