– विक्रम उपाध्याय
भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी की वृद्धि दर दुनिया भर के लिए एक अच्छी खबर है, क्योंकि आर्थिक रूप से समृद्ध लगभग सभी देशों के बाजार में एक तरह से मुर्दनी छायी हुई है। चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में भारत के जीडीपी में 13.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो पूरे विश्व में सबसे अधिक है। चीन की पहली तिमाही के जीडीपी में 4.8 प्रतिशत, अमेरिका की पहली तिमाही की वृद्धि दर माइनस 0.6 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 0.8 प्रतिशत, ब्रिटेन की 0.6 प्रतिशत और जर्मनी की जीडीपी वृद्धि दर 0.10 प्रतिशत रही है। यदि आकार के आधार पर आकलन करे तो भारत की पहली तिमाही की जीडीपी 36.85 लाख करोड़ रही, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 32.46 लाख करोड़ थी।
कहने की जरूरत नहीं है कि भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को ना सिर्फ पटरी पर रखा है, बल्कि विकास का एक बड़ा रोडमैप दुनिया के सामने पेश कर रहा है। लेकिन विकास की इस रफ्तार के साथ आने वाले दिनों की काफी आशंकाएं भी है, जिसका जवाब भारत को ढूंढना है। भले ही हमने इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में एक बेहतर विकास दर हासिल किया है, लेकिन पिछले साल की इसी अवधि में हमने 20 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि दर हासिल की थी। 13.5 प्रतिशत की वृद्धि दर से कई विशेषज्ञों की उम्मीदों को भी धक्का लगा है। जैसे रिजर्व बैंक का आकलन था कि चालू वित वर्ष की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 16 प्रतिशत से अधिक होगी।
सरकार द्वारा जारी आकड़ों के अनुसार इस पहली तिमाही में कृषि, बागवानी और मछली पालन उद्योग में 4.5 प्रतिशत की तो बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य सुविधा सेवाओं में 1.7 प्रतिशत, वित, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवाओं में 9.2 प्रतिशत, लोक प्रशासन, रक्षा एवं अन्य सेवाओं में 26.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले काफी बेहतर हैं। लेकिन खनन, विनिर्माण, कंस्ट्रक्शन और होटल उद्योग में पिछले साल की इस अवधि में गिरावट आई है। घरेलू उपभोक्ता उद्योग सुधरा है पर निर्यात कम और आयात बहुत ज्यादा बढ़ा है।
अब अगले तीन महीने की यानी जुलाई से लेकर सितंबर तक के नंबर पर यह निर्भर करेगा कि भारत वर्ष के अंतिम में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि दर हासिल करता है कि नहीं। आगे वाले दिनों के प्रति दुनिया के तमाम अर्थशास्त्री एवं बड़े संस्थान आशंकित हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध और जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे की विभीषिका के चलते आर्थिक मंदी छाने वाली है। निश्चित रूप से भारत भी इससे प्रभावित रहेगा। रिजर्व बैंक ने भी अगले तीन तिमाहियों के लिए जो अनुमान लगाया है, उसके अनुसार दूसरी तिमाही की जीडीपी में वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.1 प्रतिशत और अंतिम तिमाही की जीडीपी वृद्धि दर 4 प्रतिशत की हो सकती है। रिजर्व बैंक ने पूरे साल की जीडीपी वृद्धि दर में 7.2 प्रतिशत का अनुमान व्यक्त किया है। यदि हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं तो भी हम दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यस्था का तमगा हासिल कर सकते हैं।
यदि 7 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर हासिल होती है तो इसमें सबसे बड़ी भूमिका रिजर्व बैंक की ही रहने वाली है, क्योंकि ब्याज दर बढ़ा कर बाजार में सहज पूंजी की व्यवस्था नहीं हो सकती। दुनिया के अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों की तरह रिजर्व बैंक भी लगातार ब्याज दर बढ़ाता जा रहा है। मई से लेकर अभी तक ब्याज दरों में 1.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है और अंदाज लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में आरबीआई ब्याज दर और बढ़ा सकता है। ब्याज दर बढ़ाने का सीधा असर लोगों की खर्च करने की क्षमता पर पड़ता है और हमारे यहां 55 प्रतिशत आर्थिक गतिविधियां उपभोक्ता खर्च की होती हैं। आरबीआई का मानना है कि महंगाई दर पर काबू करने के लिए ब्याज दर बढ़ाना एक बेहतर विकल्प है और इसका असर भी दिखाई दिया है। जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति की दर मई और जून के मुकाबले कम हुई है। जुलाई में महंगाई दर 6.71 प्रतिशत पर आकर ठहरी, जबकि मई और जून में महंगाई वृद्धि दर 7 फीसदी से अधिक रही।
उच्च विकास दर के बावजूद अर्थव्यवस्था के लिए कुछ खतरे भी दिखाई दे रहे हैं। जैसे इस बार पिछले साल के मुकाबले खरीफ की बुवाई कम हुई है, क्योंकि मॉनसून ने कहीं बहुत ज्यादा तो कहीं बहुत कम वर्षा का अनुदान दिया है। कृषि उपज की वृद्धि दर में आने वाली कोई भी गिरावट सीधे जीडीपी के नंबर को प्रभावित करेगी। कृषि उपकरण खासकर ट्रैक्टर की बिक्री में जो गिरावट मई और जून के महीने में देखी गई है, उससे तो यही लगता है कि कृषि आय लोगों की कम हुई है। लेकिन ट्रांसपोर्ट बिजनेस में अच्छी खासी बढ़ोतरी देखने को मिली है। रेलवे की माल ढुलाई, बंदगाहों पर जहाजों का आना जाना, ई वे बिल्स और टोल की कमाई बढ़ी है और साथ में कमर्शियल वाहनों की बिक्री में भी बढ़ोतरी हुई है।
एक और निराशाजनक बात यह रही है कि उत्पादन क्षेत्र में लगातार गिरावट देखी जा रही है। पिछले चार महीने से लगातार मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में मंदी देखी जा रही है। रिजर्व बैंक का कहना है कि अब धीरे-धीरे उत्पादन की इकाइयां अपनी पुरानी उत्पादन क्षमता की ओर बढ़ रही हैं, अब जरूरत है कि इस क्षेत्र में कुछ ताजा निवेश किया जाए। लेकिन रिजर्व बैंक को यह जवाब देना पड़ेगा कि बढ़ते ब्याज दर के साथ ताजा निवेश किस तरह बढ़ेगा।
आने वाले दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने कई चुनौतियां हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन- ताइवान की तनातनी से पेट्रोलियम समेत कई पदार्थों के महंगे आयात पर मजबूर होना पड़ेगा, जिसके कारण इंडस्ट्री का इनपुट कॉस्ट बढ़ेगा ही। एक और बड़ी चुनौती पेश कर रहा अमेरिका का सेंट्रल बैंक, जो लगातार ब्याज की दरें बढ़ा रहा है। इसका सीधा असर हमारे शेयर बाजार, विदेशी पूंजी निवेश और रुपये की कीमत पर पड़ेगा। पिछले महीने अमेरिका 75 प्वायंट बेसिस पर ब्याज दर बढ़ा चुका है। यानी पौन प्रतिशत। मजबूरन रिजर्व बैंक को भी अपनी ब्याज दर बढ़ानी पड़ेगी। रुपये का अवमूल्यन काफी तेजी से पहले ही हो रहा है। रुपया प्रति डॉलर 80 से अधिक जा चुका है। यह देश में महंगाई का भी कारण बनेगा। खासकर आयात इनपुट कॉस्ट बढ़ जाएगा।
अमेरिका में ही ऊंची ब्याज दर होने पर वहां के निवेशक भारत में निवेश करने के बजाय यहां से पूंजी निकाल कर अपने देश ले जाएंगे, जिससे शेयर बाजार पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। लेकिन गनीमत यह है कि दुनिया के अन्य बाजारों के मुकाबले भारत का बाजार अभी भी विदेशी निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प है। भारत को दुनिया के सामने खड़े होने के लिए 7 फीसदी की विकास दर हासिल करना ही होगा। यह चुनौती तो है, लेकिन एक अवसर भी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)