– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग खेत, खेती और सेहत पर भारी पड़ रहा है। देश में रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग को इसी से समझा जा सकता है कि आजादी के समय 1950-51 में देश में 7 लाख टन रासायनिक उर्वरकों का उपयोग होता था। एक मोटे अनुमान के अनुसार आज देश में 335 लाख टन से अधिक रासायनिक उर्वरकों का उपयोग हो रहा है। इसमें 75 लाख टन उर्वरकों का तो आयात करना पड़ रहा है। यूरिया से नाइट्रोजन चक्र प्रभावित होता है और उससे ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन बढ़ने से पर्यावरण प्रभावित होता है।
दरअसल समस्या की जड़ दूसरी ओर है और वह यह कि उर्वरकों के संतुलित उपयोग के स्थान पर अंधाधुंध उपयोग से अधिक हालात खराब हुए हैं। देश में उर्वरकों की खपत का विश्लेषण किया जाए तो केन्द्र शासित प्रदेशों सहित 797 जिलों में से केवल ओर केवल 292 जिलों में ही देश में उर्वरकों की कुल खपत की 83 फीसदी उर्वरकों की खपत हो रही है। यह अपने आप में गंभीर है। ऐसा नहीं है कि सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं है अपितु सरकार ने उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए ही 2004 में यूरिया के अत्यधिक उपयोग से होने वाले दुष्प्रभाव के अध्ययन के लिए सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की स्थापना की। दुनिया की सहकारी क्षेत्र की उर्वरक उत्पादक सहकारी समिति इफको द्वारा नैनो उर्वरक तैयार कर उनकी उपलब्धता व उपयोग बढ़ाने के प्रयास इसी दिशा में बढ़ते प्रयासों में से एक माना जा सकता है। रासायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग के लिए केन्द्र व राज्यों के कृषि मंत्रालयों द्वारा सावचेत किया जाता रहा, पर यह नाकाफी होने के साथ ही सही मायने में प्रभावी तरीके से अवेयरनेस कार्यक्रमों का संचालन नहीं हो पा रहा है।
आज पंच नदियों के प्रदेश में तेजी से जलस्तर कम होता जा रहा हे। पंजाब के लोग ही पंजाब में उत्पादित गेहूं को अन्य प्रदेशों में खपाने और दूसरे प्रदेशों से गेहूं मंगाकर उपयोग में लेने लगे हैं। इसी तरह से देश में कैंसर के सर्वाधिक मामले पंजाब से आ रहे हैं। रासायनिक उर्वरक और जहरीले कीटनाशक इसके प्रमुख कारण किसी से अनजाने नहीं हैं। हो यह रहा है कि उर्वरकों के कारण मिट्टी के सहायक कीट नष्ट हो जाते हैं। वहीं रासायनिक उर्वरक वर्षा आदि में बह कर नदी आदि प्राकृतिक जल स्रोतों को भी प्रदूषित कर देते हैं। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से तैयार फसल के उपयोग से मानव ओर मवेशी दोनों के ही स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग आज खेत, खेती, सेहत और पर्यावरण सब पर भारी पड़ रहा है। यह कोई हमारे यहां की ही समस्या नहीं अपितु रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग का दुष्प्रभाव दुनिया के सभी देश भुगत रहे हैं। रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति प्रभावित हो रही है तो पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। यदि हम केवल और केवल हमारे देश की ही बात करें तो जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वे अत्यधिक चिंताजनक होने के साथ ही गंभीर भी है। रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल के कारण देश की खेती योग्य भूमि में से 30 फीसदी भूमि बंजर होने की कगार पर पहुंचने लगी है। यह आंकड़ा कोई हवा-हवाई नहीं होकर सेंटर फॉर साइंस एण्ड एन्वायरमेंट की रिपोर्ट के अनुसार है। पंजाब, हरियाणा सहित कई प्रदेशों में कृषि उपज की सेचुरेशन वाले हालात हमारे सामने हैं। इसके साथ ही रासायनिक उर्वरकों और जहरीले कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग का परिणाम जानलेवा कैंसर रोग का फैलाव सामने हैं। आज पंजाब और उससे लगते हिस्सों मं कैंसर आम होता जा रहा है।
दरअसल, औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के साथ ही दुनिया के देशों में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग तेजी से बढ़ा है। खाद्यान्न संकट से निपटने और यों कहें कि कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरक बेहतर विकल्प के रुप में सामने आये। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि कृषि उत्पादन बढ़ने के कारण ही आज दुनिया के देश खाद्यान्न संकट से मुकाबला करने की स्थिति में आ सके हैं। हालांकि अब लगभग सभी देशों व विशेषज्ञों द्वारा रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को शनैः शनैः कम करने पर जोर दे रहे हैं। परंपरागत और जैविक खेती पर बल दिया जा रहा है। भारत में भी जैविक खेती पर बल दिया जा रहा है और 20 राज्यों में जैविक नीति लागू करने की पहल की है। खासतौर से उत्तर पूर्वी राज्यों को तो शत-प्रतिशत जैविक खेती वाले प्रदेश बनाया जा रहा है। दुनिया के देशों में जहां भूटान जैविक खेती प्रधान देश है वहीं दुनिया में हमारा सिक्किम जैविक खेती के मामले में अव्वल नंबर पर है। यह भी साफ होता जा रहा है कि जैविक और परंपरागत खेती की और बढ़ना ही होगा पर इसमें कोई दो राय नहीं कि यह सब एक दिन में नहीं हो सकता इसके लिए चरणबद्ध प्रयास करने होंगे।
रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के दुष्परिणामों से बचने के लिए दोहरी और दूरगामी नीति बनाकर आगे बढ़ना होगा। एक और जहां योजनाबद्ध तरीके से रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को आवश्यकता के अनुसार ही प्रयोग के लिए किसानों को प्रेरित करना होगा वहीं ऑर्गेनिक व परंपरागत खेती को प्रोत्साहित करना होगा। इसके लिए आवश्यक हो तो बजट में प्रावधान अधिक करना पड़े तो सरकार को इसे दीर्घावधि निवेश मानकर ही किसी तरह का संकोच नहीं करना होगा। इसके लिए सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं को भी अवेयरनेस प्रोग्राम चलाने होंगे। इसमें दो राय नहीं कि बढ़ती आबादी और देश में खाद्यान्नों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सरकार को पूरी तरह से उर्वरकों के उपयोग को नकारने की गलती नहीं करनी होगी। बांग्लादेश की पिछले दिनों की गलती से भी सबक लेना होगा। कहने का अर्थ है कि एक ओर चरणवद्ध तरीके से रासायनिक उर्वरकों का संतुलित उपयोग बढ़ाना होगा, वहीं वैकल्पिक उपायों पर गंभीरता से काम करना होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)