– राजीव कुमार
भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी के दिन हुई थी, जिसे वर्ष 2011 से राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इसका उद्देश्य नागरिकों को मतदाता के रूप में उनके अधिकारों और दायित्वों से अवगत कराना है। निर्वाचन आयोग की स्थापना प्रथम गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर यानी 25 जनवरी, 1950 को हुई थी। संविधान सभा ने आयोग को अनुच्छेद 324 के अंतर्गत संवैधानिक दर्जा प्रदान किया ताकि यह अपने कामकाज में और निर्णय लेने में स्वतंत्र रूप से काम कर सके। अल्प साक्षरता और निर्वाचक नामावली की गैर-मौजूदगी वाले दौर में वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनावों का संचालन करने के लिए एक स्थायी, केन्द्रीय और स्वायत्त आयोग की स्थापना करना संविधान सभा की दूरदर्शिता को दर्शाता है।
इस संस्था की सक्षमता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता अब तक संचालित 17 लोकसभा चुनावों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के 16 चुनावों, 399 विधानसभा चुनावों से परिलक्षित होती है। 400वें विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। कभी-कभार के अंतरराष्ट्रीय अनुभव के उलट, भारत में निर्वाचन परिणामों को लेकर कभी भी विवाद में नहीं रहा है। चुनाव परिणाम संबंधी याचिकाओं पर संबंधित उच्च न्यायालयों द्वारा चुनाव याचिका दिए जाने पर फैसले देने का प्रावधान है। आयोग ने राजनीतिक दलों और नागरिक दोनों का भरोसा हासिल किया है। इस भरोसे को बढ़ाना और पुख़्ता करना आयोग का संकल्प है।
एक सशक्त लोकतंत्र के निर्माण के लिए पुरजोर और सर्वसमावेशी चुनावी भागीदारी महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय मतदाता दिवस चुनावों को और अधिक समावेशी, सहभागी और मतदाता-हितैषी बनाने के आयोग के प्रयासों को अभिव्यक्त करता है। एक जीवंत लोकतंत्र में चुनावों का स्वतंत्र, निष्पक्ष, नियमित और विश्वसनीय होना ही पर्याप्त नहीं है, उन्हें सर्वप्रिय होने के साथ-साथ सहभागी होना चाहिए ताकि शासन व्यवस्था पर उनका पूर्ण प्रभाव दिखे। वोट करने का अधिकार शक्ति के रूप में केवल तभी परिणत होगा जबकि उसका प्रयोग किया जाए।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहां 94 करोड़ से अधिक पंजीकृत निर्वाचक हैं। फिर भी, पिछले आम चुनावों (2019) में 67.4 प्रतिशत के वास्तविक मतदान आंकड़े बहुत कुछ किए जाने की गुंजाइशरखते हैं। चुनौती यह है कि बूथ तक न पहुंच सकने वाले 30 करोड़ निर्वाचकों को कैसे प्रेरित किया जाए। बूथ से दूर रहने वाले मतदाताओं के कई कारण हैं जैसे कि शहरी उदासीनता, युवा उदासीनता, घरेलू प्रवासन इत्यादि।
आयोग ने अस्सी वर्ष और उससे अधिक आयु के दो करोड़ से अधिक मतदाताओं, 50 लाख पीडब्ल्यूडी मतदाताओं को सुविधा प्रदान करने के लिए, 47500 से अधिक थर्ड जेंडर व्यक्तियों को पंजीकृत करने के लिए पहले से विद्यमान तंत्र को संस्थागत स्वरूप प्रदान कर दिया है। हाल में, दो लाख से अधिक शतायु मतदाताओं को, लोकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को मान्यता देने के लिए व्यक्तिगत पत्र भेजकर उन सबका शुक्रिया अदा किया गया। पांच नवंबर, 2022 को मैंने हिमाचल प्रदेश के कल्पा में दिवंगत श्याम सरन नेगी को श्रद्धांजलि देकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। भारत के पहले आम चुनाव (1951) में प्रथम मतदाता के रूप में पंजीकृत नेगी 106 वर्ष की आयु में इस दुनिया से विदा लेने से पहले, वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने से कभी नहीं चूके। स्वर्गीय श्याम सरन नेगी का उदाहरण हमें कर्तव्यनिष्ठा के साथ मतदान करने के लिए प्रेरित करता है।
युवा मतदाता भारतीय लोकतंत्र के भविष्य हैं। वर्ष 2000 के आसपास और उसके बाद पैदा हुई पीढ़ी ने हमारी निर्वाचक नामावली में शामिल होना शुरू कर दिया है। मतदाताओं के रूप में उनकी भागीदारी लगभग पूरी सदी के दौरान लोकतंत्र के भविष्य को आकार देगी। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि छात्र मतदान करने की आयु तक पहुंचें, उससे पहले विद्यालय स्तर पर ही उनमें लोकतंत्र की जड़ों का बीजारोपण कर दिया जाए। साथ ही साथ, युवा लोगों को विभिन्न माध्यमों के जरिए जोड़ा जा रहा है ताकि उन्हें पोलिंग बूथों तक लाया जा सके। यही हाल शहरी मतदाताओं का भी है जिनमें मतदान के प्रति उदासीनता देखने को मिल रही है।
लोकतंत्र में, मतदाताओं को इस बात का अधिकार है कि वे उन उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि के बारे में जानें, जिन्हें वोट देते हैं। यही कारण है कि उम्मीदवारों के खिलाफ यदि कोई आपराधिक मामला लंबित है तो उसकी सूचना समाचार पत्रों में दी जानी चाहिए। इसी तरह, जहां हर राजनीतिक दल को अपने घोषणापत्र में कल्याणकारी उपायों का वादा करने का अधिकार है, वहीं मतदाताओं को भी उससे राजकोष पर पड़ने वाले वित्तीय प्रभाव को जानने का समान रूप से अधिकार है। हालांकि, बाहुबल पर काफी हद तक अंकुश लगा दिया गया है, फिर भी कुछ ऐसे राज्य हैं जहां चुनावी हिंसा मतदाता के स्वतंत्र विकल्प में बाधा डालती हैं। लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। चुनावों में धनशक्ति पर लगाम लगाना कहीं अधिक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
मतदाताओं को पेश किए जा रहे लालच एवं प्रलोभन की व्यापकता और मात्रा, खासकर कुछ राज्यों में अधिक गंभीरतापूर्वक महसूस की जा रही है। हालांकि, कानून लागू कराने वाली एजेंसियों द्वारा कड़ी निगरानी के परिणामस्वरूप हाल ही में आयोजित हुए चुनावों के दौरान रिकॉर्ड बरामदगी देखने को मिली है, फिर भी लोकतंत्र में निष्ठावान और सतर्क मतदाता ही दुरुपयोग को रोकने में भागीदारी कर सकते हैं।
हर चुनाव से पहले सैकड़ों फर्जी मीडिया वीडियो/सामग्री लोड और प्रसारित की जाती हैं। शेल्फ-लाइफ के अभाव में, वे चुनाव संपन्न हो जाने के बाद भी डिजिटल स्पेस में बने रहते हैं, विशेष रूप से ऐसी सामग्री जिनमें प्रमुख निर्वाचन प्रक्रियाओं पर प्रहार किया गया हो। अभिव्यक्ति की आजादी सहित स्वतंत्र संस्थानों की सुरक्षा का दायित्व हम सबका है। यह स्वीकार करना कि अत्यंत फर्जी समाचारों से चुनाव प्रबंधन निकायों का काम और अधिक मुश्किल हो जाता है, यह सबको समझना चाहिए और आत्मसुधार करना चाहिए।
राष्ट्रीय मतदाता दिवस चुनावों को समावेशी, सहभागी, मतदाता-हितैषी और नीतिपरक बनाने में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने के आयोग के संकल्प को प्रतिबिंबित करता है। 13वें राष्ट्रीय मतदाता दिवस (2023) की थीम “वोट जैसा कुछ नहीं, वोट ज़रूर डालेंगे हम” है। यह थीम मतदाताओं की कल्पना में रच-बस सकती है। जब नागरिक अपने नागरिक दायित्व के रूप में मतदाता होने पर गर्व महसूस करेंगे, तो शासन के स्तर पर इसका प्रभाव निश्चित रूप से महसूस किया जाएगा। मतदाता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
( लेखक भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं)