Friday, November 22"खबर जो असर करे"

वृद्धजनों का करें मान-सम्मान

– डॉ. सौरभ मालवीय

जीवन के कई चक्र हैं। जैसे-बाल्यकाल, यौवनकाल, प्रौढ़काल एवं वृद्धकाल। वृद्धावस्था में मनुष्य कमजोर हो जाता है। यहां तक की सुनने एवं देखने की शक्ति के साथ स्मरण शक्ति तक क्षीण हो जाती है। ऐसे समय में वृद्धजनों को अपने परिवार के प्रेम की और विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। परिवार का साथ न मिले तो वे टूट जाते हैं। दुर्भाग्यवश यदि उन्हें परिवार के लोगों के द्वारा प्रताड़ित होना पड़े, तो जीवन नारकीय बन कर रह जाता है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रकाबगंज के रहने वाले 82 वर्षीय रामेश्वर प्रसाद हाथों में यूरिन का बैग लेकर इधर-उधर भटक रहे हैं। उनके दो युवा पुत्र और चार पुत्रियां हैं। किन्तु उनकी कोई भी संतान उनकी देखभाल नहीं करना चाहती है। उनकी दयनीय स्थिति देखकर वन स्टॉप सेंटर ने उन्हें सरोजनी नगर स्थित सार्वजनिक शिक्षोन्नयन संस्थान पहुंचाया है। देश में रामेश्वर प्रसाद जैसे हजारों वृद्ध हैं, जो परिवार के होते हुए भी असहाय हैं। अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर अपने ही नहीं, पराये बुजुर्गों के मान-सम्मान का संकल्प हम सभी को लेना चाहिए।

राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल जनसंख्या में वृद्धजनों की भागीदारी वर्ष 2011 में लगभग 9 प्रतिशत थी। वर्ष 2036 तक यह बढ़कर 18 प्रतिशत होने का अनुमान है। देश की 8.4 प्रतिशत यानी 10.2 करोड़ जनसंख्या की आयु 60 वर्ष से अधिक है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2061 तक भारत में वृद्धजनों की संख्या 42.5 करोड़ हो जाएगी। भारत में वृद्धजनों की संख्या वर्ष 2050 तक लगभग 20 प्रतिशत होने का अनुमान है। वर्तमान में यह दर 8 प्रतिशत है। वर्ष 2050 तक वृद्धजनों की संख्या में 326 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि इनमें 80 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या में 700 प्रतिशत वृद्धि होने का अनुमान है।

वर्तमान में जीवन प्रत्याशा स्वतंत्रता के समय की तुलना में दोगुनी से अधिक हो गई है। वर्ष 1940 के दशक के अंत में जीवन प्रत्याशा लगभग 32 वर्ष थी, जो अब बढ़कर 70 वर्ष हो गई है। दुख का विषय यह है कि वृद्धजनों की बढ़ती संख्या के साथ उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं। यह सभ्य समाज के मस्तक पर कलंक हैं। वृद्ध हत्या, हत्या का प्रयास, गंभीर मारपीट, अपहरण, दुष्कर्म, लूट एवं जबरन वसूली जैसे गंभीर अपराधों का शिकार हो रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार देश में वृद्धजनों पर अत्याचार के मामलों में निरंतर वृद्धि हो रही है। वृद्धजनों के प्रति घटित अपराधों में महाराष्ट्र प्रथम स्थान पर है। इस मामले में मध्य प्रदेश द्वितीय एवं तेलंगाना तृतीय स्थान पर हैं।

दुख एवं लज्जा की बात है कि देश में कोरोना काल में लगाए गए लॉकडाउन में वृद्धजनों के साथ दुर्व्यवहार के मामले में भारी वृद्धि हुई। एजवेल फाउंडेशन के सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 82 प्रतिशत वृद्धों का जीवन प्रभावित हुआ। इनमें से 73 प्रतिशत वृद्धजनों को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा, जबकि 65 प्रतिशत वृद्धजनों को अपने जीवन में उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है। 58 प्रतिशत वृद्धजनों का कहना था कि वे अपने परिवारों एवं समाज में दुर्व्यवहार का शिकार हो रहे हैं। लगभग 35.1 प्रतिशत वृद्धजनों का कहना था कि वृद्धावस्था में लोग घरेलू हिंसा का सामना करते हैं। उन्हें मौखिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है।

देश में वृद्धजनों के स्वास्थ्य की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1995 में ग्रामीण क्षेत्रों वृद्धजनों की मृत्यु के तीन सबसे बड़े कारण श्वास संबंधी रोग, ह्रदयघात एवं लकवा रहे हैं। इनमें श्वास संबंधी रोगों के कारण 25.8 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हुई, जबकि ह्रदयघात से 3.2 प्रतिशत तथा लकवा के कारण 8.5 प्रतिशत मृत्यु हुई। परिवार के लोगों द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने के कारण वृद्धजन मानसिक तनाव की चपेट में आ जाते हैं। देशभर में 10 प्रतिशत से अधिक वृद्ध अवसाद ग्रस्त हैं। स्थिति यह है कि लगभग 50 प्रतिशत वृद्धजनों को मनोचिकित्सीय या मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता अनुभव होती है।

अब से लगभग दो दशक पहले की बात करें, तो तब भी वृद्धजनों की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। 52वें नेशनल सैम्पल सर्वे-1995- 96 की रिपोर्ट के अनुसार वृद्धजनों में दीर्घकालिक रोग पाए गए। ग्रामीण क्षेत्रों 25 प्रतिशत वृद्धजनों दीर्घकालिक रोगों ने पीड़ित थे, जबकि शहरों क्षेत्रों में यह दर 55 प्रतिशत थी। वृद्धजन जोड़ों की समस्या से सबसे अधिक पीड़ित थे। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 38 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 43 प्रतिशत वृद्धजनों को जोड़ों से संबंधित कोई न कोई समस्या थी। ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को जोड़ों की समस्या अधिक थी। शहरी क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में जोड़ों की समस्या, उच्च व कम रक्तचाप तथा कैंसर आदि रोग अधिक पाए गए। इसके पश्चात खांसी से वृद्धजन पीड़ित पाए गए। ग्रामीण क्षेत्रों में 40 प्रतिशत एवं शहरी क्षेत्रों में 35 प्रतिशत वृद्धजन किसी न किसी प्रकार की शारीरिक अक्षमता से ग्रस्त पाए गए।

देश के अधिकतर वृद्धजनों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। ‘हेल्पएज इंडिया’ नामक स्वयंसेवी संस्था द्वारा किए गये एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 47 प्रतिशत वृद्धजन आय के लिए अपने परिवार के लोगों पर निर्भर हैं, जबकि और 34 प्रतिशत पेंशन एवं सरकारी नकद हस्तांतरण पर निर्भर हैं। सर्वेक्षण में सम्मिलित 40 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि वह जब तक संभव हो सकेगा वह कार्य करने के इच्छुक हैं, ताकि उन्हें पैसों के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।

ऐसे वृद्ध नागरिकों के लिए खुशी की बात यह है कि उत्तर प्रदेश पेंशन योजना प्रारम्भ की गई है। इस योजना के अंतर्गत राज्य के वृद्ध नागरिकों को 500 रुपये प्रति माह प्रदान किए जाते हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार के 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के वृद्धजनों को सरकार द्वारा पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। जिन वृद्धजनों की आयु 60 से 79 वर्ष के मध्य है उन्हें सरकार द्वारा प्रतिमाह 500 रुपये की धनराशि प्रदान की जाती है तथा जिनकी आयु 80 वर्ष से अधिक है उन्हें प्रतिमाह 800 रुपये प्रदान किए जाते हैं।

सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए एकीकृत कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत वृद्धाश्रम, शिशु सदन केंद्रों, वृद्धजनों और विधवाओं के लिए संचालित चिकित्सा इकाइयों आदि चलाने एवं उनके रखरखाव आदि के लिए अनुदान प्रदान किया जाता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य वृद्धजनों की जीवन शैली में सुधार करना, उन्हें मूलभूत सुविधाएं जैसे आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन आदि के अवसर प्रदान करना है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय वृद्धजनों के देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम चला रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत उपलब्ध कराई जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं या तो नि:शुल्क या अत्यधिक अनुदान वाली हैं।

इसमें दो मत नहीं कि हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति की गौरवशाली संस्कृति है। हमारी संस्कृति में परिवार के लोगों विशेषकर वृद्धजनों को बहुत आदर एवं सम्मान किया जाता है। परन्तु आज क्या हो रहा है? लोग धन के पीछे भाग रहे हैं। जिन माता-पिता ने अपने बच्चों का पालन-पोषण किया, वही अब उन्हें बोझ समझने लगे हैं। वे अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्ध आश्रम में डाल रहे हैं। अस्वस्थ होने पर उपचार तक नहीं करवाया जाता। वेद-पुराणों में माता-पिता को ईश्वर तुल्य माना गया है। आज इसी ईश्वर तुल्य माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। इसलिए सबको चाहिए कि वे अपने माता-पिता एवं सभी वृद्धजनों का मान-सम्मान करें तथा अपने बच्चों को भी इसकी शिक्षा दें। इस प्रकार हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर पाएंगे।

(लेखक, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में सहायक प्राध्यापक हैं। )