– योगेश कुमार गोयल
देश में प्रतिवर्ष आश्विन शुक्ल दशमी को ‘विजयादशमी’ को पर्व के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इसे दशहरा भी कहा जाता है। दशहरा दो शब्दों दश तथा हरा से मिलकर बना है। दश का अर्थ है 10 तथा हरा का अर्थ ले जाना। इस प्रकार दशहरे का मूल अर्थ है 10 अवगुणों या बुराइयों को ले जाना। यानी इस अवसर पर अपने भीतर के दस अवगुणों को खत्म करने का संकल्प लेना। दरअसल हर इंसान के भीतर रावण रूपी अनेक बुराइयां मौजूद होती हैं। सभी पर एक बार में विजय पाना संभव भी नहीं है। इसलिए दशहरे पर ऐसी ही कुछ बुराइयों का नाश करने का संकल्प लेकर इस पर्व की सार्थकता सुनिश्चित की जा सकती है।
दशहरा समस्त भारत में भगवान श्रीराम द्वारा लंकापति रावण के वध के रूप में अर्थात बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में तथा आदि शक्ति दुर्गा द्वारा महाबलशाली राक्षसों महिषासुर व चण्ड-मुण्ड का वध किए जाने के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय पाने के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि हिन्दू राजा अक्सर इसी दिन विजय के लिए प्रस्थान किया करते थे। इसी कारण इस पर्व को विजय के लिए प्रस्थान का दिन भी कहा जाता है। इस दिन अपराजिता देवी की पूजा भी होती है। मान्यता है कि सर्वप्रथम श्रीराम ने समुद्र तट पर शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ किया था और तत्पश्चात दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान करते हुए विजय प्राप्त की थी। तभी से दशहरे को असत्य पर सत्य तथा अधर्म पर धर्म की जीत के पर्व के रूप में मनाया जा रहा है।
दशहरे को रावण पर राम की विजय अर्थात आसुरी शक्तियों पर सात्विक शक्तियों की विजय तथा अन्याय पर न्याय, बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य, दानवता पर मानवता, अधर्म पर धर्म, पाप पर पुण्य और घृणा पर प्रेम की जीत के रूप में मनाया जाता है। दशहरे का धार्मिक के साथ सांस्कृतिक महत्व भी है। यह पर्व देश की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं राष्ट्रीय एकता का पर्व है। यह राष्ट्रीय एकता, भाईचारे और सत्यमेव जयते का मंत्र देता है। देशभर में दशहरे के दिन रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है। इसका उद्देश्य एक ही है कि हम अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को आत्मसात कर अपनी सभी दसों इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर जितेन्द्रिय बनने का प्रयास करें। सही अर्थों में यह पर्व अपने भीतर छिपे दुर्गुणों रूपी रावण को मारकर तमाम अवगुणों पर विजय प्राप्त करने का शुभकाल है।
शक्ति की उपासना का नवरात्रि पर्व सनातन काल से लोकजीवन में व्याप्त है। नवमी तक नौ तिथि, नौ नक्षत्र और नौ शक्तियों की नवधा भक्ति की परंपरा है। माना जाता है कि नवरात्रि में देवी की शक्ति से दस दिशाएं प्रभावित होती हैं और देवी दुर्गा की कृपा से ही दस दिशाओं पर विजय प्राप्त होती है। इसलिए भी नवरात्रि के बाद आने वाली दशमी को ‘विजयादशमी’ कहा जाता है। दशहरा को आसुरी शक्तियों पर नारी शक्ति की विजय का त्योहार भी माना जाता है। आदि शक्ति दुर्गा को ‘शक्ति’ का रूप मानकर शारीरिक एवं मानसिक शक्ति प्राप्त करने के लिए नौ दिन तक देवी के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।
माना जाता है कि दुर्गा पूजा से सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, धन-सम्पदा, आरोग्य, संतान सुख एवं आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है। अंतिम नवरात्रि पर कुंवारी कन्याओं को भोजन कराकर नवरात्रि का समापन किया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में हम देवी के नौ रूपों की पूजा करते हैं लेकिन ऐसा करते हुए हमें यह भी समझना चाहिए कि हमारे समाज में सभी नारियां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती या काली का ही रूप हैं। इसलिए इन पर्वों की सार्थकता सही मायनों में तभी सिद्ध हो सकती है, जब हम अपने समाज में देवी स्वरूपा नारी को उचित मान-सम्मान दें, उसे गर्भ में ही मौत की नींद सुलाने से बचाएं, शिक्षित करके उन्हें उनका हक दिलाएं, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएं और सम्मानित जीवन जीने का अधिकार प्रदान करें।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)