उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सियासी कुनबे में उस वक्त खटास शुरू हुई जब अखिलेश यादव वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बने। धीरे-धीरे उनकी सपा पर भी पकड़ बढ़ती गयी। दूसरी तरफ अखिलेश और शिवपाल में दूरी बढ़ती गयी। परिवार का झगड़ा 2016 में सार्वजनिक हो गया। दूरी इतनी बढ़ी कि शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन किया। तमाम खींचतान के बाद शिवपाल का 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा से किसी प्रकार गठबंधन हुआ। सपा मुखिया अखिलेश यादव को लगता था कि उनकी सरकार बन रही है, लेकिन भाजपा ने दोबारा सत्ता में आकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। इस बीच अक्टूबर में पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया। उनके निधन से रिक्त मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा हुई। इसके अलावा रामपुर और खतौली विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव का ऐलान हुआ।
अखिलेश यादव मौके की नजाकत को समझते हुए चाचा शिवपाल को मनाने उनके घर पहुंच गए। वह साथ आ गए। उपचुनाव में पूरी पार्टी सिद्दत से जुटी। रामपुर और खतौली विधानसभा के साथ ही गुरुवार सुबह मैनपुरी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव की मतगणना शुरू हुई। शुरुआत से मैनपुरी से सपा उम्मीदवार डिम्पल यादव को बढ़त मिलने लगी। इधर चाचा-भतीजे के बीच की दूरियां घटती गयीं। दोपहर में ही सपा मुखिया अखिलेश यादव की मौजूदगी में शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रसपा (लोहिया) का सपा में विलय कर दिया। इस मौके पर शिवपाल ने कहा कि अब उनकी गाड़ी पर सपा का झंडा लगा रहेगा। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश को यह समझ में आ गया कि जनता पर शिवपाल की पकड़ आज भी मजबूत है। उनके साथ आने से पार्टी मजबूत होगी। इसी का परिणाम है कि आज चाचा-भतीजा एक हो गए हैं। (हि.स.)