Friday, November 22"खबर जो असर करे"

सज गया ‘चटकते रिश्तों के एहसास’ का बाजार

– योगेश कुमार सोनी

दुनिया में ‘बहुत कुछ’ बिकता है यह तो सुना था, लेकिन ‘सब कुछ बिकता है ‘यह पहली बार देख भी लिया। दिल्ली ट्रेड फेयर (अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला) में इस बार एक खास और अनोखे स्टार्टअप का स्टॉल चर्चा में रहा। इसके बारे में जानकर हर कोई हैरान है। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने तो इस पर मजे भी लिए। इस अनोखे स्टॉल ने मेले में लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। आपने तरह-तरह की सर्विस के बारे में सुना होगा, लेकिन हमारे देश में पहली बार यहां दर्शक ‘फ्यूनरल एंड डेथ सर्विस’ से अवगत हुए। इसका अर्थ होता है कि मरने के बाद इंसान के अंतिम संस्कार की सारी तैयारियां कंपनी ही करेगी। इसमें कंधा देने के लिए चार लोगों का इंतजाम करना हो या फिर पंडित-नाई की जरूरत हो।

सुनकर बेहद अजीब लगता है, लेकिन यह बात सही और सच है। हालांकि दीगर मुल्कों में ऐसी सर्विस पहले से ही हैं। अब भारत में भी इसका बाजार आकार लेने लगा है। इस बाजारवाद पर गंभीरता से सोंचे तो यह मानव जीवन से जुड़े हर रिश्ते प्रहार है। ऐसा इसलिए कि हिंदुस्तान में रिश्ते,संस्कार और संस्कृति जिंदा है। यह बाजारवाद बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक है। इससे आने वाली पीढ़ी बची-खुची जड़ों से भी कट जाएगी। दरअसल बाजार की नाक में सूंघने की क्षमता बहुत होती है। उसने समझ लिया है कि अब भारतीय रिश्तों को निभाना और जीना भूलने लगे हैं। दरअसल यह बाजार उन लोगों के लिए सजाया गया है जो लोग पढ़ाई-लिखाई करके विदेश में बस चुके हैं। वह अब अपने माता-पिता या अन्य से मिलने दो-चार साल बाद आते हैं और दो-चार-दस दिन रुककर चले जाते हैं। यदि ऐसे लोगों के पीछे से उनके घर में किसी की मृत्यु हो जाती है तो वह समय पर नहीं आ पाते। इसकी वजह से पड़ोसी या अन्य रिश्तेदार उनका अंतिम संस्कार कर देते हैं लेकिन कई जगहों पर यह भी देखा जा रहा है कि अब आसपास का समाज भी उतना प्रेम-भाव नही रखता। ऐसी स्थिति को ही भांप कर ही इस तरह की कंपनियां इस धंधे में उतर रही हैं।

इस स्टार्टअप में अर्थी को कंधा देने से लेकर, साथ में चलने वाले और राम नाम सत्य बोलने वालों के अलावा पंडित और नाई की व्यवस्था कंपनी करेगी। यहां तक की अस्थियों का विसर्जन भी कंपनी कराएगी। इसके लिए ‘फ्यूनरल एंड डेथ सर्विस‘ ने 37,500 रुपये शुल्क रखा। इस कंपनी ने ट्रेड फेयर में पचास लाख रुपये से ज्यादा का व्यापार किया है। उसका लक्ष्य हाल के महीनों में इस आंकड़े को बढ़ाकर 200 करोड़ रुपये करना है। यह बाजार दम तोड़ते रिश्तों की मृत्युकथा के आगे का दुखद मार्ग है। जहां संतानों के मुखाग्नि देने की परंपरा खत्म हो जाएगी।

दरअसल अब लोग इतने प्रैक्टिकल हो चुके हैं कि इमोशंन की जगह ही नहीं बची। दरअसल महानगरों में खासतौर जहां बड़ी-बड़ी आवासीय सोसाइटी हैं वहां यदि बराबर वाले घर में किसी मृत्यु हो गई और उसके बराबर वाले फ्लैट में किसी के घर में जन्मदिन पार्टी हो रही है तो स्थिति यह देखी जाती है कि केक जरूर कटता है। ‘फ्यूनरल एंड डेथ सर्विस‘ जैसी कंपनी का भारत में कुछ दिन में ही 50 लाख रुपये का व्यापार कर लेना ‘परदेशियों’ के लिए सुखद और चिंतामुक्त संदेश हो सकता है पर यह जड़ों से जुड़े समाज के उखड़ने की टीस भी है। मगर पश्चिमी सभ्यता से लबरेज इस बाजार को भारतीय वृद्धाश्रमों की खराब होती स्थिति का भी फायदा आज नहीं तो कल जरूर मिलेगा। एकाकी परिवारों के बढ़ते चलन और युवा पीढ़ी का विवाह का माता-पिता से अलग होने का चलन इस बाजार के पांव फैलाने में मुख्य कारक होगा।

अब तो भाई-भाई का साथ रहना तो बहुत बड़ी बात मानी जाती है। किसी भाई के बच्चे की शादी में सब नजर आते हैं लेकिन उसका सगा भाई व परिवार दिखाई नही देता। इन स्थितियों के तमाम अपने सामाजिक कारण हो सकते हैं पर यह बाजार दरकते-चटकते संबंधों के बीच अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को भुनाने में कामयाब होता दिख रहा है।

कर्मकांड का यह बाजार चेता रहा है कि भारत में रिश्तों को लेकर हालात विस्फोटक हैं। यदि आज भी यह ठंडे पड़ जाएं तो बात बन सकती है। वरना बात निकली है तो दूर तलक जाएगी ही। याद रखिएगा फिर आपकी मौत पर आपका कोई अपना आंसू बहाने तक नहीं आएगा। गया में पिंडदान करने और बरसी पर घरों में पितर मिलाने की परंपरा भी इतिहास का विस्मयकारी अध्याय बन जाएगी।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)