Friday, September 20"खबर जो असर करे"

सांसों पर मंडराता संकट

– योगेश कुमार गोयल

इस बार दीपावली के तुरंत बाद भले ही दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर नहीं पहुंचा था लेकिन अब यह क्षेत्र हर साल की भांति प्रदूषण से कराहता नजर आने लगा है। सरकार के मुताबिक पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की निरन्तर बढ़ रही घटनाओं के कारण दिल्ली-एनसीआर तथा पड़ोसी राज्यों में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है, जिससे स्मॉग (कोहरे और धुएं का ऐसा मिश्रण, जिसमें बहुत खतरनाक जहरीले कण मिश्रित होते हैं) की परत छाने के साथ-साथ लोगों को आंखों में जलन तथा सांस लेने में परेशानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। हाल के दिनों में दिल्ली-एनसीआर को देश के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र के रूप में दर्ज किया जा रहा है। इसी कारण चिकित्सक अब सांस के मरीजों को विशेष तौर पर सतर्क रहने की हिदायत देते हुए सुबह के समय बुजुर्गों व बच्चों को बाहर न जाने की सलाह भी देने लगे हैं।

एनसीआर के कई इलाकों में तो प्रदूषण का स्तर 450 के पार दर्ज हो रहा है। एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए केन्द्र सरकार के वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा ग्रेप का तीसरा चरण लागू किया जा चुका है, जिसके तहत सभी निर्माण कार्य, तोड़फोड़, ईंट-भट्ठे व हॉट मिक्स प्लांट इत्यादि के संचालन पर प्रतिबंध लगाया गया है और लोगों को सलाह दी जा रही है कि वे निजी वाहनों के बजाय सार्वजनिक परिवहन और साइकिल का इस्तेमाल करें। सरकारी सूत्रों के मुताबिक दिल्ली में अभी अगले कुछ दिनों तक एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) 400 से भी ज्यादा रह सकता है। हालांकि शून्य से 50 के बीच एक्यूआई को अच्छा, 51 से 100 के बीच संतोषजनक, 101 से 200 के बीच मध्यम, 201 से 300 के बीच खराब, 301 से 400 के बीच बहुत खराब और 401 से 500 के बीच गंभीर माना जाता है।

इस सीजन में हर साल खेतों में बड़े स्तर पर पराली जलने के कारण प्रदूषण का यही आलम देखने को मिलता है लेकिन किसानों से पराली नहीं जलाने की अपील करने के अलावा सरकारों द्वारा बीते वर्षों में अब तक पराली प्रबंधन के लिए ऐसे कोई संतोषजनक उपाय नहीं किए गए हैं, जिससे किसानों को पराली जलानी ही न पड़े और बगैर पराली को जलाये उनकी पराली का उपयोग विविध प्रकार से किया जा सके। चिंताजनक स्थिति है कि हम खेतों में जलती पराली, विकास के नाम पर अनियोजित तथा अनियंत्रित निर्माण कार्यों के चलते बिगड़ते हालात, वाहनों और औद्योगिक इकाइयों के कारण बेहद प्रदूषित हो रहे वातावरण के भयावह खतरों को इसी प्रकार झेलने को विवश हैं। हालांकि पर्यावरण तथा प्रदूषण नियंत्रण के मामले में देश में पहले से ही कई कानून लागू हैं लेकिन उनकी पालना कराने के मामले में पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण विभाग में सदैव उदासीनता का माहौल देखा जाता रहा है।

देश की राजधानी दिल्ली तो वक्त-बेवक्त ‘स्मॉग’ से लोगों का हाल बेहाल करती रही है। तय मानकों के अनुसार हवा में पीएम की निर्धारित मात्रा अधिकतम 60-100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए किन्तु यह वर्षभर अधिकांश समय 300-400 के पार रहने लगी है। दिल्ली सहित देश के विभिन्न इलाकों की आबोहवा जब भी हवा में पीएम की निर्धारित मात्रा को पार कर खतरनाक स्तर पर पहुंचती है तो सरकारें चेतावनी जारी करनी लगती हैं कि यदि जरूरत नहीं हो तो घर से बाहर न निकलें और प्रदूषण के कहर से बचने के लिए घर में भी सभी खिड़की-दरवाजे बंद रखें। कई बार तो देश के कुछ इलाकों में प्रदूषण का स्तर इतने खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है कि ऐसा लगने लगता है, मानो किसी संक्रामक बीमारी ने हमला बोल दिया हो।

वैसे मौजूदा समय में दिल्ली-एनसीआर में गहराये प्रदूषण के संकट को नजरअंदाज भी कर दें तो अब न केवल दिल्ली-एनसीआर में बल्कि देशभर में वायु, जल तथा ध्वनि प्रदूषण का खतरा निरन्तर मंडरा रहा है। वायु, जल तथा अन्य प्रदूषण के कारण अब हर साल देशभर में लाखों लोग अपनी जान गंवाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक मानव निर्मित वायु प्रदूषण के ही कारण प्रतिवर्ष करीब पांच लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। वायु प्रदूषण की गंभीर होती समस्या का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि देश में हर 10वां व्यक्ति अस्थमा का शिकार है, गर्भ में पल रहे बच्चों तक पर इसका खतरा मंडरा रहा है और कैंसर के मामले देशभर में तेजी से बढ़ रहे हैं। देश का शायद ही कोई ऐसा शहर हो, जहां लोग धूल, धुएं, कचरे और शोर के चलते बीमार न हो रहे हों। देश के अधिकांश शहरों की हवा में जहर घुल चुका है।

पर्यावरण तथा मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड आर. बॉयड का कहना है कि विश्वभर में इस समय छह अरब से भी ज्यादा लोग इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसने उनके जीवन, स्वास्थ्य और बेहतरी को खतरे में डाल दिया है और सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि इसमें करीब एक-तिहाई संख्या बच्चों की है। एक अध्ययन में यह खुलासा भी हो चुका है कि वायु प्रदूषण के चलते दुनियाभर में प्रतिवर्ष करीब 70 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, जिनमें करीब छह लाख बच्चे भी शामिल होते हैं।

वर्ष 1990 तक जहां 60 फीसदी बीमारियों की हिस्सेदारी संक्रामक रोग, मातृ तथा नवजात रोग या पोषण की कमी से होने वाले रोगों की होती थी, वहीं अब हृदय तथा सांस की गंभीर बीमारियों के अलावा भी बहुत सी बीमारियां वायु प्रदूषण के कारण ही पनपती हैं। वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव शरीर पर इतना घातक होता है कि सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखून तक इसकी जद में होते हैं। विभिन्न रिपोर्टों में यह तथ्य भी सामने आया है कि भारत में लोगों पर पीएम 2.5 का औसत प्रकोप 90 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। पिछले दो दशकों में देशभर में वायु में प्रदूषक कणों की मात्रा में करीब 70 फीसदी की वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का साफतौर पर कहना है कि वायु की गुणवत्ता में सुधार करके इस स्थिति को और बिगड़ने से बचाया जा सकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)