Friday, November 22"खबर जो असर करे"

देश में क्या खूंखार डॉग्स को पालने में लगेगी रोक?

– योगेश कुमार सोनी

दिल्ली हाई कोर्ट डॉग बाइट और अटैक (कुत्तों के काटने और हमले) की घटनाओं पर सख्त हुआ है। वह अक्टूबर में खतरनाक कुत्तों को रखने के मुद्दे पर अहम आदेश दे चुका है। हाई कोर्ट ने पिटबुल, टेरियर, अमेरिकन बुलडॉग और रॉटविलर जैसे खतरनाक नस्ल के कुत्तों को रखने के लाइसेंस पर प्रतिबंध लगाने और रद्द करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार को तीन माह के अंदर निर्णय लेने के लिए कहा। अदालत ने याचिकाकर्ता बैरिस्टर लॉ फर्म के प्रतिवेदन पर जल्द से जल्द विचार करने को कहा है। दरअसल देश में कुत्तों के काटने और हमला करने से कई लोगों की जान जा चुकी है। चिंता की बात यह है कि कुछ लोग तो बिना लाइसेंस के ही खतरनाक नस्ल के कुत्तों को पाल लेते हैं हैं। याचिका में कहा गया था कि ऐसे नस्ल के कुत्तों ने अपने मालिकों सहित अन्य लोगों पर भी हमला किया है।

इस लॉ फर्म ने अदालत का ध्यान दिलाया कि ब्रिटेन के खतरनाक कुत्ते अधिनियम (1991) में पिटबुल और टेरियर को लड़ाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। टाइम मैगजीन के अनुसार अमेरिका में पिटबुल और टेरियर्स की संख्या कुत्तों की आबादी का केवल छह प्रतिशत है लेकिन वर्ष 1982 से कुत्तों के 68 प्रतिशत हमलों और 52 प्रतिशत मौतों के लिए इसी नस्ल के डॉग जिम्मेदार हैं। याचिका के अनुसार आमतौर पर पिट बुल ऐंड टेरियर्स अन्य कुत्तों से ज्यादा आक्रामक होते हैं। ऐसे कुत्तों को प्रतिबंधित करना और उनके पालन-पोषण के लाइसेंस को रद्द करना समय की मांग है। याचिका में दावा किया गया कि यह केंद्र और राज्य सरकार का कर्तव्य है कि लोगों के हित में काम करे और ऐसे खतरनाक नस्लों के कुत्तों के काटने की किसी भी बड़ी घटना के जोखिम से नागरिकों के जीवन को बचाने के लिए प्रभावी कार्रवाई करें।

दरअसल ऐसे डॉग्स से मानव जीवन पर प्रहार हो रहा है। जो लोग खतरनाक नस्ल के कुत्ते पालते हैं, उनसे दूसरो को तो खतरा होता ही है, उनकी अपनी जान का भी खतना बना रहता है। स्ट्रीट डॉग से भी बाहरी लोगों का लगातार खतरा रहता है। कुत्तों की संख्या में लगातार वृद्धि होने से मानव जीवन पर संकट आ गया है। बिना वजह लोगों का मरना चिंता विषय है। सुप्रीम कोर्ट भी इस पर संज्ञान ले चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सरकार को एक्शन लेने आदेश दिया था। कुत्तों के काटने के कारण हुई मौतों में करीब 36 फीसदी लोगों की मौत रेबीज की वजह से होती है। बड़ा तथ्य यह है कि अधिकांश मामले तो रिपोर्ट ही नहीं होते।

भारत में सबसे ज्यादा लावारिस कुत्ते हैं। हमारे यहां ऐसा कानून है ऐसे डॉग्स को मारा नहीं जा सकता। इसकी वजह से इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे मानव जीवन पर संकट बना हुआ है। इसके अलावा लावारिस पशुओं की वजह से हर रोज कई लोगों की जान जा रही है। इसके बचाव लिए सरकारों के पास कोई भी प्लान नही हैं। दुखद यह है कि वाघ बकरी के मालिक पराग देसाई भी डॉग अटैक का शिकार होकर चल बसे। इस हाई प्रोफाइल व्यक्ति की मौत पर कई दिनों तक चर्चा हुई। हालांकि देश में हर रोज ऐसी सैकड़ों मौतें होती हैं। कुछ समय पहले दिल्ली में एक प्रोफेसर को कुत्तों ने नोच-नोच कर मार डाला था। दरअसल ऐसी मौतों को हत्या नहीं माना जा सकता, लेकिन यदि इसकी गंभीरता को समझा जाए तो यह सवालों के घेरे में संबंधित विभाग आता है, क्योंकि लावारिस कुत्तों को नियंत्रित करने के लिए अच्छा खासा बजट होता है। कई बार तो ऐसी खबरें सामने आई हैं जब छोटे बच्चों को भी कुत्तों ने नोच कर खा लिया। बीते दिनों एक खाना देने वाले डिलीवरी ब्वॉय को पीछे कुत्ते पड़ गए। वह जान बचाकर भागा। मोटरसाइकिल की गति तेज कर दी। इससे बैलेंस नहीं बन पाया और एक खंभे से टकरा कर बेमौत मारा गया।

एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा लावारिस कुत्तों के हमले भारत में होते हैं। इस मामले में याचिकाकर्ता बैरिस्टर लॉ फर्म ने आरोप लगाया था कि खतरनाक नस्लों के कुत्ते भारत सहित 12 से अधिक देशों में प्रतिबंधित हैं, लेकिन दिल्ली नगर निगम अभी भी इनका पंजीकरण पालतू जानवर के रूप में कर रहा है। ऐसे कुत्तों की खरोद-फरोख्त करने वालों को भी यह समझना होगा कि वह इन नस्लों को आगे न बढ़ाएं और पालें। दरअसल देशभर के तमाम लोग खतरनाक कुत्तों को प्रजनन करके उनको बेचने का व्यापार करते हैं। यदि सरकार इनको रखने के लिए लाइसेंस नहीं भी देगी तो वह चोरी से इनको रखेंगे। इसलिए सरकार को इसके लिए विशेष अतिरिक्त विभाग बनाकर बड़ा काम करना होगा। यह काम जितना आसान लग रहा है, उतना है नहीं। सबसे पहले तो इसके प्रजनन पर प्रतिबंध लगाना होगा। जब ही नस्ल आगे नहीं बढ़ेगी, तो यह खत्म हो जाएगी। दूसरा खरीद-फरोख्त पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना भी बड़ा उपाय हो सकता है। कानून-कायदों का उल्लंघन करने पर कड़ी सजा का प्रावधान भी कारगर हो सकता है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)