– योगेश कुमार गोयल
कोरोना और मंकीपॉक्स के बाद अब बच्चों को टोमैटो फ्लू गिरफ्त में ले रहा है। इस संक्रमण ने स्वास्थ्य मंत्रालय की चिंता बढ़ा दी है। भारत में पहली बार 6 मई को केरल के कोल्लम जिले में एक बच्चे में टोमैटो फ्लू की पुष्टि हुई थी। ‘लांसेट’ जर्नल की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक तब से जुलाई तक केरल में इसके 82 से अधिक मरीज सामने आ चुके हैं। ओडिशा में 26 से ज्यादा बच्चे इससे बीमार हो चुके हैं। सभी बच्चों की उम्र नौ साल से कम है और यह संक्रमण अब तमिलनाडु और कर्नाटक में भी फैल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि आमतौर पर पांच साल तक के बच्चों को निशाना बनाने वाला यह फ्लू आंतों के वायरस के कारण होता है। यह वायरस से बचाव के लिए पर्याप्त प्रतिरक्षा प्रणाली होने के कारण व्यस्कों में दुर्लभ होता है। प्रारंभिक रिपोर्टों में सामने आया है कि यह एक दुर्लभ प्रकार का वायरल संक्रमण है। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि यह रेयर इंफेक्शन है। यह डेंगू या चिकुनगुनिया के बाद हो सकता है।
टोमैटो फ्लू के नाम से ऐसा लगता है, जैसे यह टमाटर खाने से होने वाली कोई बीमारी है। वास्तव में इसका टमाटर से कोई संबंध नहीं है। इसे टोमैटो फ्लू नाम इसीलिए दिया गया है क्योंकि इसमें शरीर पर टमाटर के आकार जैसे फफोले हो जाते हैं। इसके अधिकांश लक्षण दूसरे वायरल इंफेक्शन जैसे ही होते हैं। टोमैटो फ्लू वास्तव में एक वायरल बीमारी है। इसमें 10 साल से कम उम्र के बच्चों को बिना निदान के बुखार का अनुभव होता है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह बीमारी कैसे फैलती है। विशेषज्ञ इससे बचने के लिए बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाए रखना और हाइजीन का खास ख्याल रखना जरूरी बता रहे हैं। अभी तक के अनुभवों के आधार पर विशेषज्ञों का कहना है कि टोमैटो फ्लू से बच्चों की जान का खतरा ज्यादा नहीं है लेकिन यह बेहद संक्रामक है।
विशेषज्ञों के मुताबिक टोमैटो फ्लू एक तरह की ‘हैंड, फुट एंड माउथ’ वाली बीमारी है। इसमें हाथ, पैर और मुंह पर लक्षण दिखते हैं। बुखार आने के बाद त्वचा पर लाल निशान पड़ना इसका प्रमुख लक्षण है। हाथ, पैर और मुंह पर बड़े दाने होने लगते हैं। इनका रंग प्रायः टमाटर जैसा लाल होता है और चकत्तों का आकार भी धीरे-धीरे बढ़कर टमाटर जैसा हो जाता है। चिकित्सकों ने टोमैटो फ्लू के चकत्तों के दानों की तुलना मंकीपॉक्स से जबकि बुखार के लक्षणों की तुलना डेंगू, चिकनगुनिया और हाथ, पैर तथा मुंह की बीमारी से की है। चिंतित स्वास्थ्य मंत्रालय ने कई राज्यों को अलर्ट पर रखा है। जागरुकता अभियान भी शुरू किया गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि आसपास यदि कोई इस बीमारी से पीड़ित है तो उससे दूरी बनाकर रखें और खासकर बच्चों को ऐसे मरीज के करीब न आने दें। टोमैटो फ्लू की चपेट में आए बच्चे को अलग कमरे में रखते हुए उसके निकट सम्पर्क से बचने का प्रयास करें। ऐसे मरीज को 5-7 दिनों तक आइसोलेशन में रखा जाए। संक्रमित बच्चे के कपड़े, बर्तन तथा अन्य सामान को अलग रखना बेहद जरूरी है।
अब यह साफ हो चुका है कि टोमैटो फ्लू का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। इसलिए इसे केवल लक्षणात्मक रूप से प्रबंधित किया जा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस बीमारी की सबसे बड़ी समस्या रोगी के शरीर में पानी की कमी हो जाना है। शरीर में पानी की कमी को दूर करने के लिए पानी, फलों का जूस, शर्बत इत्यादि पिलाते रहना बहुत जरूरी है। यदि बच्चा तरल पदार्थ नहीं ले रहा है तो ऐसे स्थिति में उसे अस्पताल में भर्ती कराकर ड्रिप लगवाना जरूरी हो जाता है। घरेलू उपाय न अपनाकर बच्चे को फौरन डाक्टर को दिखाना चाहिए। टोमैटो फ्लू एक तरह से चिकनगुनिया, डेंगू और हाथ, पैर तथा मुंह की बीमारी के लक्षणों के समान है। इसलिए इसका इलाज भी इन्हीं के समान माना जा रहा है। टोमैटो फ्लू की अभी तक कोई अलग से दवाई नहीं है। जो दवाई वायरल संक्रमण होने पर दी जाती है, उसी का इस्तेमाल इसके उपचार में किया जाता है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)