– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
माइक्रो लैब द्वारा डॉक्टरों को एक हजार करोड़ रुपये के उपहार देने, नहीं देने पर लाख सफाई दी जा सकती हैं पर इस सत्यता से तो इनकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना महामारी के दौरान अधिकांश डाक्टरों की कलम से कोई दवा लिखी जा रही थी या सुझाई जा रही थी तो वह डोलो 650 अवश्य होती थी। जहां एक ओर लोग कोरोना महामारी से जूझते हुए जीवन-मरण के संघर्ष से जूझ रहे थे तो दूसरी और कुछ लोग संपूर्ण मानवता को धता बताकर अवसर को मुनाफे में बदलने में जुटे थे। मानवता को कलुषित करने का इससे बड़ा दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता।
पिछले दिनों न्यायालय में दाखिल जनहित याचिका के पहले तक तो यही माना जा रहा था कि कोरोनाकाल में मानवता के कुछ दुश्मन इंजेक्शन की कालाबाजारी, नकली इंजेक्शन बेचने, अस्पतालों में भरे हुए बेड बताकर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने या फिर बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर व अन्य बहानों से अनाप-शनाप पैसा लूटने में ही लगे थे। पर बुखार की एक छोटी सी गोली के माध्यम से देश में इतना बड़ा खेल होना बेहद दुखद, निराशाजनक और माफिय के गठबंधन को उजागर करने वाला है। देश के सर्वाेच्च न्याय के मंदिर में जनहित याचिका की सुनवाई कर रही दो सदस्यीय पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड की यह टिप्पणी की कोरोना महामारी के दौरान उन्हें भी डाक्टरों ने डोलो 650 लेने को कहा था, इसकी गंभीरता को समझा जा सकता है।
किसी जमाने में डोलोपार के नाम से आने वाली दवा में कुछ बदलाव कर डोलो 650 के नाम से बाजार में उतारा गया। बुखार के लिए पैरासिटामोल जेनेरिक दवा है। इसके साल्ट में ही अन्य साल्ट का इजाफा कर बाजार में ब्रांडेड दवाइयां आती हैं। कालपोल, क्रोसिन और इसी तरह की अन्य दवाएं बाजार में जानी-मानी रही हैं पर कोरोना काल में अचानक डोलो 650 चिकित्सकों की पसंदीदा दवा बन गई। जहां देखो वहीं बुखार की दवा के रूप में डोलो 650 का नाम ही सुनाई देने लगा। हालांकि दबी जुबान में खासतौर से सरकारी संस्थानों के डॉक्टर पैरासिटामोल को ही सबसे अधिक कारगर दवा बताते रहे पर गंभीरता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोनाकाल में एक मोटे अनुमान के अनुसार प्रतिदिन 55 लाख डोलो 650 गोलियां बिकने लगीं। जानकारों की माने तो इससे प्रतिदिन 86 लाख रुपये कमाए जाने लगे। हो सकता है यह आंकड़े अतिशयोक्तिपूर्ण हो। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मार्च, 2020 से दिसबंर, 2021 की अवधि में 567 करोड़ रुपये की डोलो 650 दवा की बिक्री हुई। इस 22 माह में बिकी डोलो 650 की गोलियों को एक के ऊपर एक रखा जाए तो यह माउंट एवरेस्ट और बुर्ज खलीफा की ऊंचाई से हजारों गुणा अधिक ऊंची हो जाती है।
लगभग डेढ़ दशक पूर्व राजस्थान के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डॉ. समित शर्मा ने जेनेरिक दवाओं के उपयोग को लेकर अभियान चलाया था। उन्होंने यह समझाने का प्रयास किया कि जेनेरिक दवाएं एक ओर जहां सस्ती व आम आदमी की पहुंच में हैं वहीं यह उतनी ही कारगर भी है। हालांकि इसके बाद आज हालात बदले हैं। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों द्वारा अब अधिकतर जेनेरिक दवाएं लिखी जाने लगी हैं। राजस्थान में सरकारी अस्पतालों में अब दवाएं और अन्य सेवाएं निःशुल्क मिलने लगी हैं। केन्द्र सरकार द्वारा भी जनऔषधि केन्द्रों के माध्यम से जेनेरिक दवाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है। मगर लोगों में अभी पूरी तरह जेनेरिक दवाओं के प्रति विश्वास बन नहीं पाया है । इसके कई कारण हैं जो अलग से विवेचना का विषय हो सकते हैं।
दूसरी और भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सकों के लिए फार्मा और स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आचार संहिता जारी कर रखी है। इसमें डॉक्टरों द्वारा उपहार लेने से लेकर अन्य प्रलोभन शामिल हैं। पर इनकी पालना को लेकर अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। वहीं दवा निर्माताओं को बाधित करने वाली कोई आचार संहिता नहीं है। यही कारण है कि दवा कंपनियां ऐन-केन प्रकारेण लाभ प्राप्त कर लेती हैं। डोलो 650 तो बुखार में दी जाने वाली एक सामान्य दवा है जिसका खेल भी फेडरेशन ऑफ मेडिकल ऐंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका के कारण उजागर हो गया अन्यथा दवा क्षेत्र के इस खेल का पता भी नहीं लगता। हालांकि दवाओं में मार्जिन और जेनेरिक, ब्रांडेड और प्रोपेगंडा दवाओं के बारे में आम आदमी अब अनजान नहीं है।
दुनिया के देशों की बात करें तो अमेरिका सहित अनेक देशों में दवा क्षेत्र पर भी कानूनी अंकुश लगाया गया है। इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, इटली, रूस, चीन, वेनेजुएला, अर्जेंटिना, हांगकांग, मलेशिया, ताइबान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों में सख्त कानून है और दवा बनाने वाली कंपनियों पर अनैतिक तरीके अपनाने पर कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है। हमारे यहा अखबारों के माध्यम से यह जानकारी मिलती है कि अमुक दवा में साल्ट की मात्रा कम ज्यादा होने के कारण उसके प्रयोग पर रोक लगा दी गई है। पर जब तक यह जानकारी आम होती है तब तक उस बैच की अधिकांश दवा बिक चुकी होती है। ऐसे में अमानक दवा होने की स्थिति में सख्त सजा का प्रावधान भी होना चाहिए। एक बात और। दवा सीधे आमआदमी के स्वास्थ्य से जुड़ी है। गरीब आदमी इससे अधिक प्रभावित होता है। माने या ना माने गरीब आदमी इलाज कराते-कराते सड़क पर आ जाता है। ऐसे में इस तरह की लूट की खुली छूट नहीं होनी चाहिए। चिकित्सकों को भी किसी कंपनी का टूल नहीं बनना चाहिए। ऐसा इसलिए कि दवा कंपनियों की लूट किसी से छुपी नहीं है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)