– डॉ. रमेश ठाकुर
बिना नर्स के समूचा चिकित्सा तंत्र अधूरा है क्योंकि वह अस्पतालों की रीढ़ होती हैं। वे अपने कर्तव्य, समर्पण और प्रतिबद्धता से चिकित्सीय पेशे का संचालन करती हैं। सालाना 6 मई को ‘राष्ट्रीय नर्स दिवस’ मनाया जाता है। पिछले वर्ष यानी 2023 को इस दिवस की थीम थी ‘हमारी नर्से, हमारा भविष्य’।
राष्ट्रीय नर्स दिवस की स्थापना किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं की गई थी, बल्कि 1982 में संयुक्त राज्य कांग्रेस द्वारा की गई। ये दिवस नर्सिंग की संस्थापिका फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राष्ट्रीय नर्स दिवस ऐसा दिन है, जो नर्सों के योगदान और उनकी कड़ी मेहनत का सम्मान और जश्न मनाने के लिए होता है। वैसे इस दिवस को पूरे एक सप्ताह के लिए मनाया जाता है। यानी 6 से 12 मई तक।
गौरतलब है कि ये पेशा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, बीमारियों को रोकने और विभिन्न प्रकार की चिकित्सीय स्थितियों वाले रोगियों की देखभाल प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नर्सें देश के विभिन्न अस्पतालों, क्लीनिकों, नर्सिंग होम व अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं में काम करती हैं। दवाइयां देने, मरीजों के महत्वपूर्ण संकेतों की निगरानी करने, मरीजों और उनके परिवारों को भावनात्मक समर्थन प्रदान करने और मरीजों की देखभाल के बारे में अन्य स्वास्थ्य देखभाल और संवाद स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बड़ा अस्पताल हो, या फिर कोई प्रसिद्ध चिकित्सक, बिना नर्सिंग स्टॉफ के कोई भी मरीजों का इलाज नहीं कर सकता।
सामान्य दिनों के मुकाबले कोविड काल में पूरे संसार ने नर्सों के योगदान को करीब से देखा था। वो ऐसा वक्त जब संक्रमितों के नजदीक जाने मात्र से लोग कतराते थे। तब, नर्सें ही मरीजों की देखरेख में लगी थीं। नर्सिंग क्षेत्र के योगदान को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र और उनके समकक्ष स्वास्थ्य संगठनों ने हेल्थ कर्मियों पर अधिक निवेश करने की वकालत की है। वैश्विक स्वास्थ्य कर्मचारियों की कुल में एक तिहाई आबादी नर्सों की होती है। इसलिए तकरीबन पूरा का पूरा हेल्थ सिस्टम उन्हीं के कंधों पर टिका है। भारत में नर्सों की संख्या करीब 28 लाख के करीब है जिसमें प्रति वर्ष इजाफा हो रहा है। आज पूरे भारत में लाखों की संख्या में नर्सिंग कॉलेज-स्कूल संचालित हैं। क्योंकि नर्सों की डिमाडं दिनोंदिन बढ़ जो रही है।
नर्सों के काम की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। आज उनके साहस और निष्ठा प्रयाण कर्तव्य की प्रशंसा करने का दिन है। भारत में नर्सों के साहस की सराहना न सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर चुके हैं, बल्कि हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने भी इसे सराहा है। इंजेक्शन लगाने से लेकर, मरहम-पट्टी आदि की जिम्मेदारी सिस्टरों के सिर होती है। हालांकि नर्सिंग क्षेत्र में पुरुष स्टाफ भी हैं, लेकिन महिलाओं के मुकाबले काफी कम हैं। कमी के दो मूल कारण हैं। अव्वल, महिला नर्स में मरीजों को ममता की करुणा दिखती हैं। दूसरा, वह अपनी ड्यूटी को जिम्मेदारी से निभाती हैं। यही कारण है नर्सों को अच्छे से प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वह मरीजों को मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और चिकित्सकीय तौर पर मदद कर सकें।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)