Friday, November 22"खबर जो असर करे"

संविधान सभा में आज ही शुरू हुई थी हिंदी राजभाषा के प्रश्न पर बहस

– गौरव अवस्थी

आज 13 सितंबर है। हिंदी दिवस के संदर्भ में 12,13 और 14 सितंबर का अहम स्थान है। 12 सितंबर को ही संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा बनाए जाने के तैयार किए गए मसौदे पर आए 300 से अधिक संशोधनों पर दिलचस्प बहस शुरू हुई थी। हिंदी और अहिंदी भाषी राज्यों के प्रतिनिधियों के बीच गरमागरम यह बहस लोकसभा सचिवालय द्वारा 1994 में प्रकाशित की गई ‘भारतीय संविधान सभा के वाद विवाद की सरकारी रिपोर्ट’ का अहम दस्तावेज है।

हिंदी को राज या राष्ट्रभाषा बनाए जाने से जुड़े संशोधनों पर संविधान सभा में हुई बहस में पंडित जवाहरलाल नेहरू, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, मौलाना अबुल कलाम आजाद, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सेठ गोविंद दास, एन गोपालस्वामी आयंगर, अलगू राय शास्त्री, आरबी धुलेकर, मौलाना हसरत मोहानी, वीएन गाडगिल, नजीरउद्दीन अहमद, मौलाना हिफजुररहमान, श्रीमती जी. दुर्गाबाई , डॉ. रघुवीर, मोहम्मद इस्माइल, शंकरराव देव, पंडित रविशंकर शुक्ल, रामसहाय, बीएम गुप्ते, रेवरेंड जिरोम डिसूजा, कुलधार चालिया, टीटी कृष्णमाचारी, आरके सिधवा, डॉ. पी सुब्बरायन, बी. दास, डॉ पीए चक्को, काजी सैयद करीमुद्दीन, पंडित गोविंद मालवीय, पंडित लक्ष्मीकांत मैत्र द्वारा पक्ष-विपक्ष में प्रस्तुत किए गए तर्क-वितर्क और बहस पृष्ठ संख्या 2055 से 2332 (277 पृष्ठ) में दर्ज है। तमाम सहमति-असहमति के बीच सभा के कुछ सदस्यों ने बीच का रास्ता भी अपनाया था। इनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू और संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद प्रमुख थे।

हिंदी को राजभाषा के प्रश्न पर हिंदी और अहिंदी भाषी तो लगभग तमाम वाद-विवाद के बाद सहमत हो गए थे लेकिन विवाद के केंद्र में हिंदी और रोमन अंकों के उपयोग का मसला ही था। अंत में अंग्रेजी अंकों के उपयोग पर सभी की सहमति के साथ राजभाषा का यह मसला 12 सितंबर से शुरू होकर 14 सितंबर 1949 की शाम को समाप्त हुआ था। 3 दिनों में करीब 24 घंटे तक बहस चली। कई संशोधन प्रस्ताव एक से होने की वजह से कुछ लोगों को ही बात रखने का अवसर मिला। कुछ संशोधन प्रस्ताव वापस ले लिए गए और हाथ उठाकर मतों के जरिए हिंदी को राजभाषा, देवनागरी लिपि और रोमन अंकों के उपयोग पर सहमति बनी।

संविधान सभा में भाषा के प्रश्न पर हुई इस बहस का समापन करते हुए अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने कहा-‘मैं आश्चर्य कर रहा था कि हमें छोटे से मामले (रोमन अंकों के उपयोग) पर इतनी बहस करने की, इतना समय बर्बाद करने की क्या आवश्यकता है? आखिर अंक हैं क्या? वैसे दस ही तो हैं। इन दस में मुझे याद पड़ता है कि तीन तो ऐसे हैं जो अंग्रेजी और हिंदी में एक से हैं–२, ३ और ०। मेरे ख्याल से चार और है जो रूप में एक से है किंतु उनमें अलग-अलग अर्थ निकलते हैं। उदाहरण के लिए हिंदी का ४ अंग्रेजी के 8 से बहुत मिलता जुलता है। मैं अपने हिंदी के मित्रों से कहूंगा कि वह इसे (दक्षिण भारतीयों की रोमन अंकों के उपयोग के प्रस्ताव) उस भावना से स्वीकार करें। इसलिए स्वीकार करें कि हम उनसे हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि स्वीकार करवाना चाहते हैं। मुझे प्रसन्नता है कि सदन ने बहुमत से सुझाव को स्वीकार कर लिया है।

अंकों के उपयोग पर चले वाद विवाद का समापन करते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक छोटा सा मनोरंजक दृष्टांत भी अपने वक्तव्य में सुनाया-‘हम चाहते हैं कि कुछ मित्र हमें निमंत्रण दें। वे निमंत्रण दे देते हैं। वह कहते हैं, आप आकर हमारे घर में ठहर सकते हैं। उसके लिए आपका स्वागत है, किंतु जब आप हमारे घर आएं तो कृपया अंग्रेजी चलन के जूते पहनिए। भारतीय चप्पल मत पहनिए, जैसे कि आप अपने घर में पहनते हैं। इस निमंत्रण को केवल इस आधार पर ठुकराना मेरे लिए बुद्धिमत्ता नहीं होगी कि मैं चप्पल को नहीं छोड़ना चाहता। मैं अंग्रेजी जूते पहन लूंगा और निमंत्रण को स्वीकार कर लूंगा और इसी सहिष्णुता की भावना से राष्ट्रीय समस्याएं हल हो सकती हैं’

उन्होंने इस बात के साथ अपने वक्तव्य का समापन किया-‘हमारी परंपराएं एक ही हैं। हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र (अंग्रेजी अंकों के उपयोग) को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि या तो इस देश में बहुत सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते। हमने यथासंभव बुद्धिमानी का कार्य किया है। मुझे हर्ष है। मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी संतति इसके लिए हमारी सराहना करेगी।

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)