Sunday, November 24"खबर जो असर करे"

कहीं कांग्रेस का इंजन भी हांफने न लगे

– धर्मेन्द्र कुमार सिंह

भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने का ख्वाब देखते हुए आलू से सोना बनाने और महंगाई पर 40 रुपये लीटर आटा की टिप्पणी करने वाले कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी देश-विदेश मे हंसी एवं मजाक के पात्र बने हुए हैं। साथ ही न्यायपालिका एवं मीडिया पर अमर्यादित टिप्पणी कर अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता और बौद्धिक दिवालियापन प्रमाण दे चुके हैं। अपनी खीझ निकालकर भाजपा और ईडी को कठघरे मे खड़ा करने वाले राहुल गांधी आज खुद देश की जनता की अदालत में सवालों के घेरे में हैं । खुन्नस में शायद राहुल यह भूल गए कि “ये पब्लिक है सब जानती है”।

राहुल के लिए लोकतंत्र के चारों स्तंभ गलत हैं । तब सवाल है कि फिर संविधान बचाने और देश बचाने की दुहाई क्यों देते हैं । राहुल गांधी विधायिका और कार्यपालिका पर पहले ही उंगली उठा चुके हैं और लगातार टिप्पणियां कर रहे हैं । अब तो सभी सीमायें तोड़कर न्यायपालिका और मीडिया को बिकाऊ करार दे चुके हैं।न्यायालय को इस पर स्वत: संज्ञान लेकर उन्हें सबक और मर्यादा सिखानी चाहिए। जिसकी नजर में संविधान का कोई महत्व और सम्मान न हो, वह प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के योग्य नहीं हो सकता। यह यक्ष प्रश्न है। भाषा शैली तो वैसे भी राहुल की खराब है। हार की हताशा में राहुल भाजपा और संघ सहित प्रधानमंत्री के बारे में अपशब्दों तक का प्रयोग कर चुके है । इसका खामियाजा समूची कांग्रेस भुगत रही है।

विरोध होना और विरोध करना दोनों अलग-अलग बातें हैं । देशहित में सरकार की गलत नीतियों का विरोध करना उनका विपक्षी होने के नाते नैतिक, राजनीतिक और संवैधानिक कर्तव्य है। किन्तु विरोध में बदले की भावना में अंधा बनकर मर्यादाओं को तार-तार कर अमर्यादित करना गलत है । विपक्ष के नाते सरकार की जनकल्याणकारी और राष्ट्र हित व देश के मान सम्मान मर्यादा के लिए बनाई जाने वाली नीतियों का समर्थन करते तो कुछ बात अलग होती पर ऐसी नीतियों का विरोध कर वह कांग्रेस की कब्र खोद रहे हैं। राहुल हरदम अपनी विदेश यात्राओं में राष्ट्र का अपमान करते रहते हैं। भाषा में जहर उगलते हैं।

मजे की बात तो यह है कि राहुल गांधी आलू से सोना बनाने की बात कर जमकर ट्रोल हो चुके हैं। अभी हाल ही में दिल्ली के रामलीला मैदान में महंगाई के मुद्दे पर रैली कर ईडी और जांच एजेंसियों पर दबाव बनाने की कोशिश की। निशाने पर भाजपा की नीतियां नहीं बल्कि एजेंसियां रहीं। वह यह बोले कि पिछले 40 साल में सबसे अधिक बेरोजगारी नरेन्द्र मोदी की देन है। भाजपा के नेता देश को बांटते हैं। जानबूझकर देश में भय पैदा करते हैं। 2014 में एलपीजी का सिलेंडर 410 रुपये का था। आज 1050 रुपये का है। पेट्रोल 70 रुपये लीटर था। आज तकरीबन 100 रुपये लीटर है। सरसों का तेल 90 रुपये लीटर था। आज 200 रुपये लीटर है। दूध 35 रुपये लीटर था। आज 60 रुपये लीटर है। राहुल यह तक बोल गए कि आटा 22 रुपये लीटर था और आज 40 रुपये लीटर है।

…अअअ…केजी (किलोग्राम)। और यह भी राहुल आजकल भारत जोड़ो यात्रा पर हैं। अब वह अपने लिबास से चर्चा में हैं। लगता है कांग्रेस के इस नेता का विवादों से गहरा रिश्ता है। तभी तो अब टीशर्ट को लेकर घिर गए हैं। कहने वाले तो यह तक कह रहे हैं कि यह यात्रा भारत जोड़ने के लिए कांग्रेस जोड़ने के लिए हो रही है। राहुल इस यात्रा से क्या जोड़ेंगे और क्या तोड़ेंगे यह तो यात्रा के समापन पर ही साफ होगा पर फिलहाल इतना तय है कि वह कांग्रेस को अब पटरी पर नहीं ला सकते। कांग्रेस की बोगियां लगातार बेपटरी हो रही हैं। यही सिलसिला रहा तो कांग्रेस की रेल का इंजन भी अगले चुनाव तक हांफने न लगे।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)