Friday, November 22"खबर जो असर करे"

कांग्रेस-आम आदमी पार्टी…है स्वार्थ का गठबंधन ?

– योगेश कुमार सोनी

आम आदमी पार्टी की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। पहले से ही पार्टी के चोटी के नेता जेल में हैं। कुछ दिन पहले पार्टी के संयोजक व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जेल पहुंच गए । अभी पार्टी इस सदमे से उबरी भी नहीं थी कि बीते बुधवार को पटेल नगर से विधायक राजकुमार आनंद ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और इसके बाद उन्होंने पार्टी भी छोड़ दी। उन्होंने पार्टी पर भ्रष्टाचार को लेकर कई तरह के सवाल भी जड़ दिए। इन सब मामलों को लेकर आम आदमी पार्टी के नेता व कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी पर तमाम तरह के सवालिया निशान उठाते हुए जुलूस निकाल रहे हैं।

बीते कुछ दिनों में आम आदमी पार्टी के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी। जैसा कि दिल्ली के परिवेश में बात करें तो लोकसभा की सात सीटों पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी को चार और कांग्रेस को तीन सीट के आधार पर बंटवारा हुआ है। लेकिन जैसे ही केजरीवाल जेल गए कांग्रेस ने आंतरिक तौर पर आम आदमी पार्टी से किनारा कर लिया। दरअसल मामला यह है कि आम आदमी पार्टी के नेता कांग्रेस से विरोध प्रदर्शन के लिए कांग्रेस का समर्थन मांग रहे हैं जिस पर कांग्रेस ने स्पष्ट तौर पर मना कर दिया। बीते सोमवार को एक कांग्रेस नेता प्रदर्शन में शामिल भी हुए लेकिन जैसे ही इसकी खबर बडे पद पर आसीन नेताओं को मिली तो उन नेता जी को बहुत फटकार पड़ी।

पूरी दिल्ली में हो रहे प्रदर्शन में आम आदमी पार्टी के साथ कहीं भी कांग्रेस खड़ी नजर नहीं आ रही। इस घटना से दोनों में द्वंद्व बढ़ता जा रहा है। यदि परिस्थितियां ऐसी ही रहीं हो तो चुनाव में वो ऊर्जा नहीं दिखेगी जिस आधार पर गठबंधन हुआ। ऐसी परिस्थिति से यह तय हो रहा है कि यदि गठबंधन की कुछ सीटें आ भी गईं तब भी दोनों पार्टियां चुनाव के बाद अलग हो जाएंगी। ज्ञात हो कि 2019 में लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का चुनाव के बाद गठबंधन टूट गया था जिस पर उत्तर प्रदेश की जनता ने कहा था कि यह चुनावी नहीं स्वार्थी गठबंधन था। भारतीय राजनीति में इस तरह के कई उदाहरण हैं।

फिलहाल दिल्ली की स्थिति को समझना होगा। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के संदर्भ में चर्चा करें तो आंतरिक तौर पर कांग्रेस खुश है जो कि उसका बनता भी है चूंकि केजरीवाल ने यदि किसी को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई तो वह कांग्रेस है। दिल्ली में केजरीवाल का जितना वोट बैंक है वह सारा कांग्रेस का है। इस समय आम आदमी पार्टी के सभी चोटी के नेता जेल में हैं और प्रचार करने व अपनी बात रखने के लिए कोई बड़ा नेता जनता के बीच मौजूद नही हैं। इसका कांग्रेस भरपूर फायदा उठा सकती है और दिल्ली के कुछ इलाकों में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। लेकिन कांग्रेस को गठबंधन का नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में सीटों का बंटवारा हुआ है। हालांकि इस फाइट में कांग्रेस के पास कुछ बड़ा करने के लिए नहीं है। यह बात अलग है कि आंतरिक तौर पर कांग्रेस अपने पुराने वोटरों को जोड़ने में जुट गई है। आम आदमी पार्टी की मजबूरी यह हो चुकी है वह खुलकर या ऑफिशली तौर पर कांग्रेस का विरोध भी नहीं कर सकती। विषम परिस्थितियों से गुजर रही आम आदमी पार्टी चारों ओर से घिर चुकी है। खुलकर या आंतरिक तौर पर कोई साथ नहीं दे रहा जिससे पार्टी का मोरल बहुत कमजोर पड़ रहा है।

हालांकि डूबते को तिनके के सहारे वाली तर्ज पर संजय सिंह का जेल से रिहा होना पार्टी को कुछ ऊर्जा तो दे रहा है लेकिन इतने बड़े चुनाव में वह अकेले किला जीत पाएंगे इसमें संशय है। भारतीय राजनीति में गठबंधन का कोई नियम नहीं होता। सब अपनी जीत के लिए किसी से भी गठबंधन कर लेते हैं लेकिन आज सोशल मीडिया का दौर है। लोगों के पास पुरानी वीडियो सुरक्षित रहते हैं और जैसे ही कोई मौका आता है वह सारे वीडियो सोशल मीडिया पर दिखने लगते हैं।

टिकाऊ की नहीं बस जिताऊ की तर्ज पर गठबंधन होने लगे हैं। यदि दशक भर की पुरानी राजनीति को देखा जाए तो गठबंधन का गुणवत्ता से कोई लेना-देना नहीं रह गया है। जनता भी भली-भांति जानती है। बहरहाल, कुछ बेसिक मानक यह कहते हैं कि जिसके साथ आप जब तक जुडे हो तब तक तो साथ दो अन्यथा इससे क्षति एक तरफ नहीं दोनों तरफ होने की संभावना बनी रहती है। लोकसभा चुनाव को लेकर समझें तो दिल्ली में वोट बैंक को लेकर त्रिकोणीय मुकाबला बना रहता है। प्रथम भाजपा, दूसरा आम आदमी पार्टी व तीसरे नंबर पर कांग्रेस रहती है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)