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कोयला पीएसयू ने सालाना लक्ष्य का 107 फीसदी हासिल किया

नई दिल्ली (New Delhi)। कोयला क्षेत्र (Coal Sector) के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) (Public Sector Undertakings (PSUs)) सालाना लक्ष्य (annual target) का 106.74 फीसदी हासिल कर चालू वित्त वर्ष 2023-24 के पूंजीगत व्यय लक्ष्य (capital expenditure target) को पीछे छोड़ दिया है। कोयला मंत्रालय ने सरकार ई-मार्केट प्लेस (जेम) के माध्यम से खरीद में चालू वित्त वर्ष के लिए तय लक्ष्य का 415 फीसदी हासिल करके पहले स्थान पर रहा है।

कोयला मंत्रालय ने शनिवार को जारी एक बयान में कहा कि मंत्रालय ने खरीद के मामले में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए तय लक्ष्य का 106.74 फीसदी हासिल किया है। कोयला क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों ने वित्त वर्ष 2021-22 में अपने लक्ष्य के मुकाबले 104.86 फीसदी हासिल किया। वित्त वर्ष 2022-23 में भी उनका प्रदर्शन बेहतर रहा, जब कोयला पीएसयू ने तय लक्ष्य का 109.24 फीसदी हासिल किया। कोयला पीएसयू की पूंजीगत व्यय में पिछले 3 साल के दौरान साल दर साल वृद्धि होती रही है। इसके साथ ही मंत्रालय ने सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) खरीद में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है।

कोयला मंत्रालय का वित्त वर्ष 2023-24 के लिए पूंजीगत व्यय लक्ष्य 21,030 करोड़ रुपये है। मंत्रालय के मुताबिक कोयला पीएसयू ने फरवरी 2024 तक ही 22,448.24 करोड़ रुपये का रिकार्ड पूंजीगत व्यय, यानी सालाना लक्ष्य का 106.74 फीसदी हासिल करके चालू वित्त वर्ष 2023-24 के लक्ष्य को पहले ही पार कर लिया है। किसी वित्त वर्ष के अंतिम दो महीने में पूंजीगत व्यय का प्रमुख हिस्सा खर्च होता है। इसलिए ये माना जा रहा है कि सीआईएल और एनएलसीआईएल चालू वित्त वर्ष के दौरान अपनी उपलब्धि में और वृद्धि करेंगे और भारत की आर्थिक वृद्धि को और गति देंगे।

कोयला मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत आने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनियां भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने में सहायता और योगदान के लिए पूंजीगत व्यय करने में सबसे आगे रहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान केंद्र सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के कोयला उपक्रम (सीपीएसई) पूंजीगत व्यय के तय लक्ष्य से अधिक का लक्ष्य प्राप्त करते रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि पूंजीगत व्यय यानी कैपेक्स किसी भी अर्थव्यवस्था की गतिशीलता के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है, जिसका समूची अर्थव्यवस्था पर कई गुना और निचले स्तर तक प्रभाव होता है। इससे खपत, मांग और औद्योगिक वृद्धि बढ़ाने, रोजगार सृजन और दीर्घकालिक अवसंरचना को बढ़ावा मिलता है, जिसका देश को लंबे समय तक सतत् लाभ मिलता रहता है।