– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विकास के मामले में पिछली सभी सरकारों को बहुत पीछे छोड़ है। अनेक रिकार्ड कायम कर चुके हैं। अब वह अपने ही रिकार्डों को पिछे छोड़ रहे हैं। इसमें पौधरोपण अभियान भी शामिल है। इस बार 35 करोड़ से अधिक पौधे रोपने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। यह नया रिकार्ड होगा। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक साथ पांच करोड़ पौधे लगाए जाएंगे। छह वर्षों में सवा सौ करोड़ से अधिक पौधे रोपे जा चुके हैं। एक से सात जुलाई तक आयोजित जागरुकता सप्ताह चलाया गया।
‘पेड़ लगाओ-पेड़ बचाओ’ का संदेश गूंजेगा। हाइटेक नर्सरी तैयार होगी। पौधरोपण स्थलों की जियो टैगिंग होगी। ‘मुख्यमंत्री कृषक वृक्ष धन योजना’ लागू होगी। ‘खेत पर मेड़-मेड़ पर पेड़’ के संदेश को चरितार्थ होगा। विगत वर्षों में बनाए गए ‘खाद्य वन, बाल वन, नगर वन, अमृत वन, युवा वन और शक्ति वन’ जैसे नियोजित पौधरोपण का अभियान आगे बढ़ेगा। पर्यावरण के बिगड़ने की समस्या से मानव जीवन प्रभावित हो रहा है। यह पशु पक्षियों, जीव-जंतुओं, पेड़ पौधों, वनस्पतियों, वनों, जंगलों,पहाड़ों, नदियों सभी के अस्तित्व के लिए घातक है। पर्यावरण और जीवन परस्पर आश्रित है। वृक्ष मानव के स्वास्थ्य का सबसे बड़ा रक्षा कवच है। वृक्ष के आसपास रहने से जीवन में मानसिक संतुलन और संतुष्टि मिलती है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अनेक योजनाओं ने कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इनमें से कई विश्वस्तर पर भी प्रतिष्ठित हुई है । वन महोत्सव में पौधरोपण इसी प्रकार का अभियान रहा है। भारत की केंद्र और उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार पर्यावरण व प्रकृति संरक्ष्ण के प्रति सजग है। इसको पर्यटन व तीर्थाटन से भी जोड़ा गया है। यह विकास की समग्र अवधारणा में समाहित विचार है। इसके दृष्टिगत पर्यटन व तीर्थ स्थलों का विकास और इनसे संबंधित राजमार्ग का निर्मांण शामिल है।
विगत वर्षों के दौरान इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। योगी आदित्यनाथ ने राम वनगमन मार्ग को वन महोत्सव अभियान में शामिल किया। इसके अंतर्गत इस मार्ग पर त्रेता युगकालीन वाटिकाओं की स्थापना होगी। भारत में आदिकाल से प्रकृति संरक्षण का विचार रहा है। योगी आदित्यनाथ उससे प्रेरणा लेते हैं। उनका मानना है कि अतीत से जुड़ना वर्तमान समाज के लिए आवश्यक है। त्रेता युग की वाटिका व उपवन भी वर्तमान पीढ़ी में पर्यावरण चेतना का संचार करेंगी।
महर्षि वाल्मीकिकृत रामायण में अयोध्या से चित्रकूट तक राम वन गमन मार्ग में मिलने वाली अट्ठासी वृक्ष प्रजातियों एवं वनों एवं वृक्षों के समूह का उल्लेख है। महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण एवं विभिन्न शास्त्रों में शृंगार वन, तमाल वन, रसाल वन,चम्पक वन, चन्दन वन,अशोक वन, कदम्ब वन,अनंग वन, विचित्र वन,विहार वन का उल्लेख मिलता है। रामायण में उल्लिखित अट्ठासी वृक्ष प्रजातियों में से कई विलुप्त हो चुकी हैं अथवा देश के अन्य भागों तक सीमित हो गई हैं। यथा रामायण में उल्लिखित रक्त चंदन के वृक्ष वर्तमान में दक्षिण भारत तक सीमित हैं। वन विभाग द्वारा राम वन गमन मार्ग में पड़ने वाले जनपदों अयोध्या, प्रयागराज चित्रकूट में रामायण में उल्लिखित अट्ठासी वृक्ष प्रजातियों में से प्रदेश की मृदा, पर्यावरण व जलवायु के अनुकूल तीस वृक्ष प्रजातियों का रोपण कराया जा रहा है।
यह वृक्ष प्रजातियां- साल, आम, अशोक, कल्पवृक्ष पारिजात, बरगद, महुआ, कटहल, असन, कदम्ब,अर्जुन, छितवन, जामुन, अनार, बेल, खैर, पलाश, बहेड़ा, पीपल, आंवला, नीम, शीशम, बांस, बेर, कचनार, चिलबिल, कनेर, सेमल, सिरस, अमलतास, बड़हल हैं। मानव सभ्यता को बचाने के लिए वर्तमान कृषि प्रणाली में कृषि वानिकी, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन सभी को अपनी खेती में बराबर का स्थान देना होगा।
सृष्टि की रचना के समय से मानव जीवन का पर्यावरण से घनिष्ठ संबंध रहा है। पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष तक शान्ति की प्रार्थना की गयी है। प्रकृति के अति दोहन के कारण ही सभी मानव एवं जीव-जंतु प्रभावित हुए हैं। जीवनशैली में परिवर्तन लाकर हम पर्यावरण को बचा सकते हैं। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन नहीं होना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक पौधरोपण की आवश्यकता है। सुखद है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)