– विक्रम उपाध्याय
पाकिस्तान लगभग तीन महीने पहले ही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के ग्रे लिस्ट से बाहर आया है। मगर उसकी आतंकपरस्त आदत उसके लिए भारी पड़ गई है। 16 जनवरी,20 23 को यूएनओ के कुख्यात अब्दुल रहमान मक्की को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के फैसले से पाकिस्तान के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी हैं। यूएनओ का यह अभूतपूर्व कदम इस बात का सुबूत है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का सबसे बड़ा केंद्र है। आतंकवादी धरती के सबसे बड़े कसाई हैं। …और इन कसाइयों को पनाह देना और इनके जरिये भारत में दहशत फैलाना पाकिस्तान के लिए नासूर बनता जा रहा है। दोस्त मुल्क चीन तक पाकिस्तान की आतंकपरस्त नीति से आजिज आ चुका है।
मक्की को अभी तक चीन ही अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित होने से बचाता आ रहा था। मगर इस बार चीन ने अपना रुख को बदला और इस अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी को बचाने के लिए वीटो नहीं लगाया। चीन इसके पहले ऐसा जैश ए मोहम्मद के सरगना अजहर मसूद और लश्कर ए तैयबा के चीफ हाफिज सईद के मामले भी ऐसा करता रहा है। अजहर मसूद कंधार प्लेन हाईजैक मामले का प्रमुख मुजरिम और हाफिज सईद मुंबई हमले का मास्टर माइंड है। मक्की लश्कर का सरगना और भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों का संचालक है। भारत लगातार पाकिस्तान के इन कसाई आतंकवादियों की करतूतें वैश्विक मंच पर उठाते हुए यूएनओ के जरिए इनपर अंकुश लगाने का प्रयास करता रहा है। भारत के इस अभियान को पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का समर्थन मिलता रहा है।
पाकिस्तान की लगातार विश्व मंच पर किरकिरी होती रही है। ब्रिटेन तो पाकिस्तान को सबसे खतरनाक देश की संज्ञा दे चुका है। बावजूद इसके इस्लामाबाद अपनी आतंकपरस्त नीति से पीछे नहीं हट रहा। तुर्रा यह देता है कि पाकिस्तान खुद आतंकवाद का शिकार है और उसने 80 हजार नागरिक शहीद हो चुके हैं। पाकिस्तान का यह सबसे बड़ा झूठ नया नहीं है। सच्चाई यह है कि पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन खुलेआम अपनी गतिविधियां चलाते हैं। हथियारों के साथ प्रदर्शन करते हैं और चुनाव लड़ते हैं। इन दिनों पाकिस्तान में लोकल चुनाव हो रहे हैं। इस चुनाव में तहरीक ए लब्बैक अपने सिंबल पर उम्मीदवार खड़ा कर रहा है।
यह वही तहरीक-ए-लब्बैक है, जिसने फ्रांस के कथित रूप से मोहम्मद साहब के अपमान के विरोध में पूरे पाकिस्तान में दो साल पहले गदर मचाई थी। इस संगठन ने कुछ पुलिस अधिकारियों समेत दर्जनों लोगों की हत्या कर दी थी। कइयों को बंधक बना लिया था। इसके खौफ की वजह से फ्रांस के राजदूत को पाकिस्तान छोड़कर भागना पड़ा था। इमरान की सरकार ने इस संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित कर इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया था, लेकिन कुछ दिन के बाद ही पाकिस्तान सरकार और तहरीक-ए-लब्बैक के बीच आर्मी की मध्यस्थता में एक गुप्त समझौता हुआ। इसके बाद लब्बैक के सभी आतंकियों को छोड़ दिया गया।सभी मुकदमे वापस ले लिए गए।
इसी तरह अफगानिस्तान मामले में अपनी नकली इमेज बनाने के लिए इमरान खान ने प्रधानमंत्री रहते हुए तालिबान ए पाकिस्तान नाम के आतंकवादी संगठन को न सिर्फ अपने यहां पनाह दिया, बल्कि उन्हें तमाम सहूलियतें प्रदान कीं ताकि भारत को तालिबान और अमेरिका के मध्य होने वाली समझौता वार्ता से अलग रखा जाए। खुद को तालिबान खान कहलाना पसंद करने वाले इमरान ने तालिबान ए पाकिस्तान के साथ गुप्त समझौता भी किया। आज वही तालिबान ए पाकिस्तान इस्लामाबाद के लिए काल बना हुआ है। खैबर पक्खथुनवा में रोज ही तालिबान ए पाकिस्तान के आतंकवादी सेना और पुलिस पर कातिलाना हमला कर रहे हैं। इस आतंकवादी संगठन का इतना खौफ है कि शाम ढले अफगानिस्तान की सीमा के पास के पाकिस्तानी थाने में तैनात अधिकारी और पुलिस जवान थाने छोड़कर भाग जाते हैं। अब तो अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार भी पाकिस्तान को मिटा देने की धमकी देती है। काबुल स्थित पाकिस्तानी दूतावास पर हाल ही में हमला भी हुआ था।
पाकिस्तान अब भी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि उसकी आतंकवाद समर्थक नीतियों के कारण ही पूरी दुनिया उससे हाथ मिलाने से गुरेज कर रही है।अरब और चीन भी उसका साथ नहीं दे पा रहे हैं। उल्टे मक्की के मामले में पाकिस्तान ने यह बयान जारी किया है कि चीन ने उसे भरोसे में लेकर ही मक्की के लिए वीटो लगाने से अपने को दूर रखा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने नियम 1267 के तहत इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक ऐंड लेवांट ( दायस) ऐंड अलकायदा से जुड़े प्रतिबंधात्मक सूची में शामिल होने के कारण मक्की को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया है।
उल्लेखनीय है कि भारत और अमेरिका ने संयुक्त रूप से पिछले साल ही मक्की पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ में किया था लेकिन तब चीन ने वीटो लगाकर मक्की को बचा लिया था। इस बार यूएनओ की अलकायदा प्रतिबंध समिति में शामिल चीन समेत सभी 15 देशों ने एकमत से मक्की को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कर दिया। चीन ने हालांकि इस संबंध में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। यह माना जा रहा है कि बिगड़ती अर्थव्यवस्था और पाकिस्तान से मिल रही लगातार निराशा के कारण चीन की भारत के साथ टकराव की नीति में अब लचक आने लगी है। चीन के होने वाले नए विदेशमंत्री का हाल ही में दिया बयान इसका उदाहरण है।
पाकिस्तान ने अभी तक कोई ऐसा उदाहरण पेश नहीं किया है, जिससे लगे कि उसने कोई सबक लिया है। सिवाय विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो के इस बयान के कि पाकिस्तान को आतंकवाद के प्रति राष्ट्रीय संकल्प पर ठीक से विचार करना होगा।
हैरत यह है कि पाकिस्तान की पुलिस, आर्मी और अदालतें आतंकवाद पर समान मानदंड नहीं रखते। ईश निंदा पर तो मौत की सजा का प्रावधान है पर सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार देने वाले हाफिज सईद और मक्की जैसे अतंरराष्ट्रीय आतंकवादियों का बाल बांका नहीं बिगड़ता। दिखावे के लिए को कभी हाउस अरेस्ट तो कभी दो-चार-छह महीने की मामूली सजा देकर रिहा कर दिया जाता है। मक्की को 2019 में गिरफ्तार किया गया तो उसे कुछ महीने के लिए घर में ही सभी सुख सुविधाओं के साथ नजरबंद रखा गया। 2020 में गिरफ्तार किया गया तो केवल छह माह जेल की सजा सुनाई गई। इस वक्त उस पर टेरर फाइनेंस के दो मामले चल रहे थे। मक्की आज भी प्रतिबंध के बावजूद लश्कर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन के रूप में चला रहा है। लाख टके का बड़ा सवाल है कि दाने-दाने के लिए परेशान पाकिस्तान अब भी कोई सबक सीखेगा क्या।
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)