Friday, September 20"खबर जो असर करे"

छठ पूजा और भारतीय संस्कृति

– श्याम जाजू

“भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं है, यह जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। ये वंदन की धरती है, ये अभिनन्दन की भूमि है । ये अर्पण की भूमि है ये तर्पण की भूमि है। इसकी नदी-नदी हमारे लिए गंगा है, इसका कंकर-कंकर हमारे लिए शंकर है।”- यह पक्तियां परम श्रद्धेय स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की हैं। यह मात्र पंक्ति नहीं अपितु भारत के प्रत्येक नागरिक के हृदय की अभिव्यक्ति है। सनातन संस्कृति का यह देश आदिकाल से राष्ट्र भूमि के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देने वालों की भूमि रहा है। हमारी संस्कृति ने हमें इंसान के साथ जीव-जंतु, पेड़-पौधे, सूर्य-चंद्रमा, पृथ्वी और आकाश सभी की आराधना करना सिखाया है। हम पृथ्वी को मां मानते हैं और प्रकृति को माता पृथ्वी का श्रृंगार। इसी महान प्रकृति के उपासना का पर्व है महापर्व छठ।

सूर्य उपासना एवं लोक आस्था के महापर्व छठ को हम सिर्फ त्योहार नहीं अपितु अपना संस्कार मानते हैं। चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा में हम सूर्य, छठी मैया, उषा, संध्या, रात्रि, वायु, जल एवं प्रकृति के अन्य महत्वपूर्ण चीजों की पूजा करते हैं। प्रकृति ने हमें जीने के लिए वातावरण के साथ-साथ बहुत से खूबसूरत चीजें प्रदान की हैं। इसी वजह से छठ पूजा प्रकृति को धन्यवाद देने का भी पर्व है। छठ पूजा स्वच्छता का भी महापर्व है। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें हम अपने वातावरण, प्रकृति के साथ-साथ अपने तन और मन को भी स्वच्छ करने का संकल्प लेते हैं। छठ पूजा में जहां एक और हम शुद्धता और पवित्रता की तैयारी करते हैं तो वहीं दूसरी ओर एकता और अखंडता का भी पूरा ख्याल रखते हैं। जिस प्रकार सूर्य की किरणें इंसान तक पहुंचने में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करतीं, ठीक उसी प्रकार छठ व्रत भी हमें सभी प्रकार के भेदभाव को त्यागने का संदेश देता है।

छठ पर्व न सिर्फ समाज को एक करता है अपितु आज के इस भागदौड़ भरी जिंदगी में पूरे परिवार को भी एकत्रित करने का काम छठ महापर्व कर रहा है। आज के समय में नौकरी एवं रोजगार की वजह से परिवार के विभिन्न सदस्य भारत एवं विश्व के अलग-अलग शहरों में जीवन यापन कर रहे हैं परंतु छठ आते हैं सभी अपने घर की ओर लौट चलते हैं। यह छठ पूजा की शक्ति है जो हमें इस संस्कार में पिरोए हुए है। राष्ट्रवाद के पुनर्जागरण का पर्व छठ किसी राष्ट्र को मजबूत करने में विचारधारा का अहम योगदान होता है। यूं तो समाज में कई विचारधाराएं पनपती हैं और खत्म हो जाती हैं, परंतु राष्ट्रवाद एक ऐसी विचारधारा है जो युग युगांतर से चली आ रही है। जब-जब राष्ट्रवाद कमजोर पड़ा है तब तब हमारा समाज बिखरा है और समाज को पुनः जागृत करने के लिए राष्ट्रवाद ने अहम भूमिका निभाई है। यूं तो राष्ट्रवाद की कई परिभाषाएं हैं एवं अलग-अलग लोगों के लिए इसके मायने भी विभिन्न हो सकते हैं परंतु जो विचारधारा लोगों की संस्कृति एवं प्रकृति के प्रति जागरूक एवं जिम्मेदार बनाएं उससे बड़ा राष्ट्रवाद शायद कुछ और नहीं हो सकता।

अगर हम छठ पूजा के महत्व को समझें तो हम पाएंगे कि छठ पूजा भी राष्ट्रवाद को मजबूत करने का पर्व है। छठ पूजा लोगों के अंदर संस्कार एवं विचारों का संचार करता है जिससे समाज पुनः जागृत होता है। छठ पूजा हमें पवित्र, सशक्त, प्रतिबंध एवं जिम्मेदार बनाता है। यह सभी पहलू राष्ट्रवाद के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।आज छठ पूजा बिहार के एक छोटे से गांव से लेकर अमेरिका तक में मनाया जा रहा है। धीरे-धीरे पूरे विश्व में लोग छठ पूजा के महत्व को समझ रहे हैं। छठ पर्व के महीनों पहले से ही लोग इसकी तैयारियों में लग जाते हैं एवं पूरा वातावरण छठमय हो जाता है। यहां हम सभी की जिम्मेदारी हैं कि हम छठ पूजा के महत्व को विभिन्न लोगों के साथ साझा करें एवं प्रकृति एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हों।

पूरे विश्व में आज क्लाइमेट चेंज, प्रदूषण नियंत्रण और प्रकृति की चिंता जैसे विषय चर्चा में हैं। इसकी आवश्यकता भी है। हमारी भारतीय संस्कृति में छठ पूजा, कुआं पूजन, गंगा आरती, गोवर्धन पूजा, वट सावित्री पूर्णिमा, तुलसी विवाह, वासु बरस, शरद पूर्णिमा और तीर्थ परिक्रमा आदि का महत्व है। यह माध्यम मनुष्य को जल, जंगल, निसर्ग, पेड़, पौधे, नदियां, पक्षी, प्राणी, पर्वत इत्यादि पर प्रेम करना सिखाते हैं। साथ ही इन माध्यमों में जीवन को देखने का भारतीय दृष्टिकोण परिलक्षित होता है।

(लेखक, भाजपा के निवर्तमान राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।)