Monday, April 21"खबर जो असर करे"

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प्रकृति से जुड़ाव का पर्व है श्रावणी तीज

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- रमेश सर्राफ धमोरा वर्षा ऋतु में श्रावण के महीने में हमारे देश में चारों तरफ पानी बरसता रहता है। इस दौरान चारों तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती है। हरियाली के आगोश में प्रकृति इस तरह झूम उठती है मानो पृथ्वी अपनी हरी-भरी बाहें फैलाकर सबका अभिनंदन कर रही हो। श्रावण के महीने को हिंदू धर्मावलंबी भगवान शिव का महीना मान मानकर पूजा अर्चना करते हैं। कावड़िए देशभर में विभिन्न नदी, तालाबों से जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। गणगौर के बाद त्योहारों का सिलसिला रुक जाता है, वह एकबार फिर श्रावण मास की तीज से प्रारंभ हो जाता है। श्रावण का महीना महिलाओं के लिए विशेष उल्लास का महीना होता है। इस महीने में आने वाले अधिकांश लोक पर्व महिलाओं द्वारा ही मनाए जाते हैं। श्रावण के महीने में चारों ओर हरियाली की चादर-सी बिछ जाती है। जिसे देखकर सबका मन झूम उठता है। सावन का महीना एक अलग मस्ती और उमंग लेकर आता है...

द्रौपदी मुर्मू के हिन्दी में शपथ लेने का संदेश तो समझिए

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- आर.के. सिन्हा भारत के 15 वें राष्ट्रपति पद की शपथ हिन्दी में लेकर द्रौपदी मूर्मू ने सारे देश को एक बेहद महत्वपूर्ण संदेश दिया है। मूल रूप से ओडिशा से संबंध रखने वाली द्रौपदी मूर्मू अगर उड़िया या किसी अन्य भाषा में भी शपथ लेती तो कोई अंतर नहीं पड़ता। देश को अपनी सभी भाषाओं और बोलियों पर गर्व है। वो हिन्दी में शपथ लेकर अचानक से सारे देश में पहुंच गईं। समूचे देश ने उन्हें हिंदी में शपथ लेते हुए देखा-सुना। बेशक, हिन्दी देश की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। इस संबंध में कोई विवाद नहीं हो सकता। हिन्दी की सारे देश में स्वीकार्यता है और यह दिन-प्रतिदिन बढ़ भी रही है। अगर छुद्र राजनीति को छोड़ दिया जाए तो इसे सारे देश में बोली और समझी जाती है। कुछ समय पहले ही देश के आठ पूर्वोतर राज्यों के स्कूलों में दसवीं कक्षा तक हिन्दी को अनिवार्य रूप से पढ़ाने पर वहां की राज्य सरकारें राजी हो चुक...

मुंशी प्रेमचंद: आम आदमी की कलम

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- योगेश कुमार गोयल आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह और उपन्यास सम्राट महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद ने अपने लेखन के माध्यम से न सिर्फ दासता के विरुद्ध आवाज उठाई बल्कि लेखकों के उत्पीड़न के विरुद्ध भी सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने उपन्यासों और कहानियों के अलावा नाटक, समीक्षा, लेख, संस्मरण इत्यादि कई विधाओं में साहित्य सृजन किया। प्रेमचंद ऐसे कहानीकार और साहित्यकार हैं जिन्हें आज भी सबसे ज्यादा पढ़ा जाता है। उन्हें ‘आम आदमी का साहित्यकार’ भी कहा जाता है। चूंकि उनकी लगभग सभी कहानियां आम जीवन और उसके सरोकारों से ही जुड़ी हैं, इसीलिए उनके सबसे ज्यादा पाठक आम लोग रहे हैं। दरअसल उन्होंने अपने सम्पूर्ण लेखन में एक आम गरीब आदमी की पीड़ा को न केवल समझा बल्कि अपनी कहानियों और उपन्यासों के जरिये उसका निदान बताने का प्रयास भी किया। उन्होंने अपनी लगभग सभी रचनाओं में आम आदमी की भावनाओं, उनकी परिस्थितियों, ...

ममता सरकार की दुर्दशा

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सरकार भयंकर दुर्गति को प्राप्त हो गई है। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि ममता बनर्जी की सरकार इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर सकती है। ममता के राज में मैं जब-जब कोलकाता गया हूं, वहां के कई पुराने उद्योगपतियों और व्यापारियों से बात करते हुए मुझे लगता था कि ममता के डर के मारे अब वे कोई गलत-सलत काम नहीं कर पा रहे होंगे लेकिन उनके उद्योग और व्यापार मंत्री पार्थ चटर्जी को पहले तो जांच निदेशालय ने गिरफ्तार किया और फिर उनके निजी सहायकों, मित्रों और रिश्तेदारों के घरों से जो करोड़ों रुपये की नकदी पकड़ी गई है, उन्हें टीवी चैनलों पर देखकर दंग रह जाना पड़ता है। अभी तो उनके कई फ्लैटों पर छापा पड़ना बाकी है। पिछले एक सप्ताह में जो भी नकदी, सोना, गहने आदि छापे में मिले हैं, उनकी कीमत 100 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का ही अनुमान है। यदि जांच निदेशालय के...

गजराजों की बढ़ती नाराजगी

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- प्रभुनाथ शुक्ल मानव जितना सभ्य हुआ उससे कई गुना स्वार्थी बन गया। वह सहयोगी और सहचर जंगली जानवरों पर जरूरत से अधिक क्रूर हो चला। उसे तनिक भी ख्याल नहीं आया कि जिस प्राकृतिक वातावरण में वह रहता है उसमें साथ रहने वाले पशु-पक्षी और जंगली जानवर भी हमारे मित्र हैं। वह हमारी सभ्यता और संस्कृति से जुड़े हैं। हम विकास की आड़ में जंगलों को काटना शुरू कर दिया। परिणाम जंगल खत्म होते गए। जंगली जानवरों और इंसानों में संघर्ष शुरू हो गया। जिसमें दोनों की बहुत बड़ी क्षति हुई। हमने प्रकृति के साथ साहचर्य बना कर जीने के बजाय प्राकृतिक संपदाओं का विनाश मानव जीवन का उद्देश्य बना लिया। जिसका दुष्परिणाम आज हम भुगत रहे हैं। जिसकी वजह से जंगली जानवर शेर, बाघ, चीता और हाथी मानव बस्तियों तक पहुंच रहे हैं। मीडिया में आए दिन मानव बस्तियों में जंगली जानवरों कि हिंसा सुर्खियों में रहती हैं। जंगलों के आसपास मानव बस्त...

क्या संभव है सरकारी आदेश के बाद पालीथिन पर प्रतिबंध!

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- लिमटी खरे विकास का पहिया लगातार ही घूम रहा है। विकास के साथ ही साथ परिवर्तन भी लोगों ने देखा है। वर्तमान प्रौढ़ हो रही पीढ़ी तो बहुत तेज गति से हुए परिवर्तन की साक्षात गवाह है। वैज्ञानिकों ने मृत्यु के रहस्य पर से पर्दा नहीं उठा पाया है। इस तरह की अन्य बहुत सी बातें हैं जिन्हें वैज्ञानिक सुलझा नहीं पाए हैं। प्लास्टिक का कचरा दुनिया भर में फैला हुआ है और इस कचरे का निष्पादन ही सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है। आज दुनिया में प्लास्टिक ने एक क्रांति अवश्य लाई है पर प्लास्टिक के कारण पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है इस बारे में शायद ही कोई जानता हो। एक समय था जब लोग एक स्थान से दूसरे स्थान जाते समय सुराही, छागल अथवा कांच की बोतलों में पानी ले जाया करते थे। समय बदला आज इन सबका विकल्प बहुत ही सस्ती प्लास्टिक की बाटल्स ले चुकी हैं। प्लास्टिक रूपी कचरा आज महानगरों में सीवर का सबस...

असम में संघ कार्य के विस्तार में है विनायक राव कानेतकर का महत्वपूर्ण योगदान

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- प्रशांत बुजरबरुवा डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। इसके लगभग 21 साल बाद संघ कार्य के विस्तार के लिए 1946 में असम में तीन प्रचारक भेजे गए, जिनमें दादा राव परमार्थ, श्रीपद सहस्र भोजनी और कृष्ण परांजपे शामिल हैं। संघ के प्रचारक का अर्थ है कठिन जीवन। शिक्षा-दीक्षा पूरी करके घर के रोजमर्रा के कार्यों से दूर रहकर संघ कार्य के विस्तार में दिन-रात एक कर देना। संघ का मुख्य कार्य शाखा के माध्यम से व्यक्ति निर्माण है। प्रचारकों का कार्य शाखा विस्तार के साथ ही संघ के वैचारिक अधिष्ठान को बढ़ाना। भारतीय परंपरा में 'राज्य' शब्द का अर्थ पश्चिम के स्टेट या नेशन से काफी अलग है। राष्ट्र की कल्पना, राज्य पर आधारित नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक रूप पर आधारित है। कई वर्षों की सोच के बाद भारत वर्ष में एक जीवन दर्शन का विकास हुआ है और उसके आधार पर एक जीवन पद्धति...

मतदाता की विशिष्ट पहचान, रुकेगा फर्जी मतदान

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- ऋतुपर्ण दवे भारत में फर्जी मतदान और दो जगहों पर दर्ज मतदाता, लोकतंत्र के लिए शुरू से बड़ी चुनौती रहे हैं। लेकिन अब बहुत जल्द यह सब बीते दिनों की बातें होकर रह जाएंगी। निश्चित रूप से इसके लिए तकनीक का ही सहारा होगा। यह दौर दुनिया में तकनीक का है। पहचान से लेकर सुरक्षा और आम जीवन के हर क्षेत्र में तकनीक बेहद उपयोगी साबित हो रही है। तकनीक के चलते ही डिजिटल से लेकर कैशलेस और पेपरलेस होने की अवधारणा न केवल सही हुई है बल्कि काफी हद तक करोड़ों-करोड़ पेड़ों को बचाकर पर्यावरण के लिए भी उपयोगी साबित हुई। ऐसे में बहुत जल्द ही वह दौर आएगा जब हरेक इंसान यहाँ तक कि हर किसी की चाहे वस्तु हो या इंसान या जीव-जन्तु सबकी पहचान बस कोडिंग से होगी। इसकी शुरुआत हो चुकी है और तेजी से हर रोज दुनिया भर में विस्तार हो भी रहा है। यदि सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो जो बचा-खुचा है वह तेजी से कोडिंग या नंबरों की दुनिया म...

वायु प्रदूषण पर चिंता, पर कानून का पालन नहीं हो पाता सुनिश्चित!

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- लिमटी खरे विकास तो हो रहा है पर विकास के साथ मानकों की अनदेखी के चलते होने वाले दुष्परिणामों पर कोई भी देश संजीदा नजर नहीं आता है। इस समय सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण का ही मुद्दा सोशल मीडिया पर चल रहा है। इसके बाद भी किसी भी देश की सरकार के द्वारा इस मामले में चिंता न किया जाना सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात ही माना जा सकता है। स्विटजरलैण्ड को दुनिया का सबसे खूबसूरत देश माना जाता है। स्विटजरलैण्ड की आईक्यू एयर नामक संस्था के द्वारा हाल ही में विश्व के देशों की वायु गणवत्ता की रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बंगलादेश को दुनिया का सबसे प्रदूषित देश माना गया है, वहीं भारत का स्थान पांचवी पायदान पर है। भारत की राजनैतिक राजधानी दिल्ली को लगातार चौथे साल दुनिया भर में सबसे प्रदूषित राजधानी का तगमा दिया गया है। 2021 में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा हवा की गुणवत्ता के मानकों में कुछ बदलाव भ...