-डॉ मयंक चतुर्वेदी
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद छात्र संगठन के देश की राजधानी में राष्ट्रीय अधिवेशन को अभी पूरा हुए 24 घंटे भी नहीं बीते हैं कि एक बार फिर से भारतीय राजनीति में देश के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में एक ऐसे व्यक्ति को राजनेता के रूप में राज्य के मुख्यमंत्री बनाकर स्थापित किया है, जिसने सामाजिक जीवन एवं राजनीति की पाठशाला का पहला पाठ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में रहकर सीखा है। यह राज्य में दूसरे लगातार वाले मुख्यमंत्री बने हैं जिन्होंने कि विद्यार्थी परिषद से छात्र राजनीति करते हुए अपना जीवन आरंभ किया है। इसके पहले हम सभी जानते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनका पूरा व्यक्तित्व और कृतित्व विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ कार्य करते हुए गढ़ा है और उसी के आधार पर वे आगे बढ़ते चले गए।
वे ऐसे आगे बढ़े कि प्रदेश में 18 साल तक मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले शिवराज सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी के इस राज्य में पहले कार्यकर्ता हैं। अब ऐसे में उनके बाद उनकी परंपरा को आगे निर्वाह करने का दायित्व यदि सौंपा गया तो फिर एक बार पुनः अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपने को संघर्ष की आंच में तपाकर राजनीतिक जीवन में आए डॉ मोहन यादव हैं। वस्तुत: छात्र जीवन से लेकर आजीवन संपूर्ण जीवन अपने राष्ट्र के लिए समर्पित रहना चाहिए, यह संदेश विद्यार्थी परिषद का सदा से रहता आया है। ज्ञान हो, शील हो और एकता भी हो, यह तीन गुण निश्चित तौर पर केवल छात्र जीवन में ही नहीं, समाज के हर वर्ग के विकास के लिए आवश्यक हैं। कहना होगा कि पार्टी स्तर पर अपनी सरकार के लिए विधायक दल के नेता चुनते वक्त यही एकता का मंत्र एक बार फिर से मध्यप्रदेश भाजपा में देखने को मिला है। जो बड़े-बड़े नाम पिछले कई दिनों से मीडिया की सुर्खियों में बने हुए थे, भाजपा की संगठन शक्ति और सामूहिक निर्णय ने एक झटके में सबको पीछे छोड़ दिया और एक ऐसे नाम को आगे बढ़ा दिया जिसके बारे में कोई अभी तक कल्पना भी नहीं कर सका था।
जब वे साल 2013 में पहली बार बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन की दक्षिण सीट से विधायक बने थे। तब उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि संगठन उन पर इतना मेहरबान हो जाएगा कि 10 सालों की राजनीति में ही वे प्रदेश के सीएम पद के लिए चुन लिए जाएंगे। किंतु जिन्हें उनके ये दस साल राजनीतिक जीवन के मुख्यमंत्री पद के लिए कम दिखाई देते हों, उन्हें अवश्य ही इससे पूर्व उनकी सामाजिक और राज्य की नीति के लिए की गई तपस्या देखनी चाहिए। वस्तुत: डॉ मोहन यादव साल 1982 में वह माधव विज्ञान महाविद्यालय के छात्रसंघ के सह-सचिव रहे। इसके बाद 1984 में वह इसके अध्यक्ष बने। साल 1984 में वह एबीवीपी उज्जैन के नगर मंत्री और 1986 में विभाग प्रमुख चुने गए। 1988 में वह मध्यप्रदेश अभाविप के प्रदेश सहमंत्री और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बनाए गए थे। 1989-90 में वह एबीवीपी के प्रदेश इकाई के प्रदेश मंत्री और 1991-92 परिषद के राष्ट्रीय मंत्री तक वे रहे।
विद्यार्थी परिषद के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहते हुए राष्ट्रजीवन के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देने का पाठ भी वे सदैव सीखते रहे। यही वह कारण भी रहा जोकि विद्यार्थी परिषद के सीधे काम से मुक्त होते ही इन्हें 1993-95 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उज्जैन नगर के सह खण्ड कार्यवाह, सायं भाग नगर कार्यवाह एवं 1996 में खण्ड कार्यवाह और नगर कार्यवाह बना दिया गया था। इसके बाद 1997 में इनकी इंट्री भाजपा में भारतीय जनता युवा मोर्चा की प्रदेश कार्य समिति के सदस्य के रूप में होती है और साल 2000-2003 तक उज्जैन की विक्रम यूनिवर्सिटी की कार्य परिषद के सदस्य, बीजेपी के नगर जिला महामंत्री, साल 2004 में वह बीजेपी की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य, 2004-2010 तक वह उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष, साल 2011-2013 में मप्र पर्यटन विकास निगमअध्यक्ष, बीजेपी के प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य रहते हुए अपनी राजनीतिक सफर को मोहन जी सतत आगे बढ़ाते हुए दिखाई देते हैं।
एक तरह से देखें तो यह 2013 का यही वर्ष मोहन यादव जी के राजनीतिक जीवन को शीर्ष पर ले जाने वाला सिद्ध हुआ। यहीं से एक नया सफर विधानसभा का उज्जैन दक्षिण से विधायक चुनने के साथ शुरू हुआ। इसके बाद लगातार यहां से मोहन जी जीत रहे हैं। मोहन जी, 2020 में शिवराज सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री बने और उनको उच्च शिक्षा मंत्री का कार्यभार सौंपा गया। उच्चशिक्षा में मध्यप्रदेश के कई विश्वविद्यालयों ने नई शिक्षा नीति 2020 को आपने प्रमुखता से लागू करवाने के साथ अनेक ऐसे नवाचार किए हैं, जिन्होंने मध्यप्रदेश को उच्चशिक्षा क्षेत्र में आज देश की मुख्यधारा में अंग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया है। यही कारण है कि अपने कार्य एवं संगठन शक्ति के सामर्थ्य के बल पर आज वे 2023 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं।
अंत में कहना यही होगा कि डॉ मोहन यादव की चर्चा मुख्यमंत्री के पद के लिए मीडिया में और संगठन के स्तर पर अब तक कहीं से दूर-दूर तक भी नहीं थी और अचानक से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनके नाम का प्रस्ताव करके संगठन की एकता के प्रति अपना विश्वास तो दिखाया ही है। साथ ही यह भी बता दिया कि संगठन स्तर पर भाजपा में ही इस प्रकार के निर्णय होना संभव है, यह अप्रत्याशित है। अभी एक नारा पूरे देश में गूंजता है, ”मोदी है तो मुमकिन है”, लेकिन अब मध्यप्रदेश की धरती से यह एक नया नारा इस निर्णय के साथ सामने आया है, ”भाजपा है तो कुछ भी संभव है।”
भाजपा है तो ही यह करिश्मा है कि एक ऐसे आदमी को राजनीति के माध्यम से राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था के सर्वोच्च शिखर पर बैठाया जा सकता है, जिसके बारे में कोई कल्पना में भी नहीं सोच सका था। एक आम आदमी को मुख्य धारा में लाकर कैसे बड़ा बनाकर खास बनाया जा सकता है निश्चित तौर पर यह राजनीति में स्तर पर आज अन्य पार्टियों के लिए भी सीखने के लिए भाजपा का एक पाठ है।