– योगेश कुमार गोयल
जीव-जंतु तथा पेड़-पौधे भी मनुष्यों की ही भांति ही धरती के अभिन्न अंग हैं लेकिन मनुष्य ने अपने निहित स्वार्थों तथा विकास के नाम पर न केवल वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों को बेदर्दी से उजाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई है बल्कि वनस्पतियों का भी तेजी से सफाया किया है। धरती पर अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए मनुष्य को प्रकृति प्रदत्त उन सभी चीजों का आपसी संतुलन बनाए रखने की जरूरत होती है, जो उसे प्राकृतिक रूप से मिलती हैं।
इसी को पारिस्थितिकी तंत्र या इको सिस्टम भी कहा जाता है लेकिन चिंतनीय स्थिति यह है कि धरती पर अब वन्य जीवों तथा दुर्लभ वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों का जीवनचक्र संकट में है। वन्यजीवों की असंख्य प्रजातियां या तो लुप्त हो चुकी हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। पर्यावरणीय संकट के चलते जहां दुनियाभर में जीवों की अनेक प्रजातियों के लुप्त होने से वन्य जीवों की विविधता का बड़े स्तर पर सफाया हुआ है, वहीं हजारों प्रजातियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहा है। यही स्थिति वनस्पतियों के मामले में भी है।
वन्य जीव-जंतु और उनकी विविधता धरती पर अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के सतत विकास की प्रक्रिया का आधार रहे हैं। वन्य जीवन में ऐसी वनस्पति और जीव-जंतु सम्मिलित होते हैं, जिनका पालन-पोषण मनुष्यों द्वारा नहीं किया जाता। आज मानवीय क्रियाकलापों तथा अतिक्रमण के अलावा प्रदूषित वातावरण और प्रकृति के बदलते मिजाज के कारण भी दुनियाभर में जीव-जंतुओं तथा वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इस संबंध में ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ किताब में विस्तार से उल्लेख किया गया है कि विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की संख्या में कमी आने से समग्र पर्यावरण किस प्रकार असंतुलित होता है। दरअसल विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की संख्या में कमी आने से समग्र पर्यावरण जिस प्रकार असंतुलित हो रहा है, वह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना है। पर्यावरण के इसी असंतुलन का परिणाम पूरी दुनिया पिछले कुछ दशकों से गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं और प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देख और भुगत भी रही है।
लगभग हर देश में कुछ ऐसे जीव-जंतु और पेड़-पौधे पाए जाते हैं, जो उस देश की जलवायु की विशेष पहचान होते हैं लेकिन जंगलों की अंधाधुंध कटाई तथा अन्य मानवीय गतिविधियों के चलते जीव-जंतुओं के आशियाने लगातार बड़े पैमाने पर उजड़ रहे हैं। वनस्पतियों की कई प्रजातियों का भी अस्तित्व मिट रहा है। हालांकि जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों की विविधता से ही पृथ्वी का प्राकृतिक सौन्दर्य है, इसलिए भी लुप्तप्रायः पौधों और जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों की उनके प्राकृतिक निवास स्थान के साथ रक्षा करना पर्यावरण संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी है।
इसीलिए पृथ्वी पर मौजूद जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए तथा जैव विविधता के मुद्दों के बारे में लोगों में जागरुकता और समझ बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। 20 दिसम्बर, 2000 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्रस्ताव पारित करके इसे मनाने की शुरुआत की गई थी। इस प्रस्ताव पर 193 देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। दरअसल 22 मई, 1992 को नैरोबी एक्ट में जैव विविधता पर अभिसमय के पाठ को स्वीकार किया गया था। इसीलिए यह दिवस मनाने के लिए 22 मई का दिन ही निर्धारित किया गया। इस वर्ष यह दिवस ‘योजना का हिस्सा बनें’ थीम के साथ मनाया जा रहा है। यह थीम इस बात पर जोर देती है कि हम सभी व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से अपने ग्रह की जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
धरती पर पेड़-पौधों की संख्या बड़ी तेजी से घटने के कारण अनेक जानवरों और पक्षियों से उनके आशियाने छिन रहे हैं, जिससे उनका जीवन संकट में पड़ रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि यदि इस ओर जल्दी ही ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में स्थितियां इतनी खतरनाक हो जाएंगी कि धरती से पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां विलुप्त होकर सदा के इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन जाएंगी। माना कि धरती पर मानव की बढ़ती जरूरतों और सुविधाओं की पूर्ति के लिए विकास आवश्यक है लेकिन यह हमें ही तय करना होगा कि विकास के इस दौर में पर्यावरण तथा जीव-जंतुओं के लिए खतरा उत्पन्न न हो। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ में चेताया गया है कि यदि विकास के नाम पर वनों की बड़े पैमाने पर कटाई के साथ-साथ जीव-जंतुओं तथा पक्षियों से उनके आवास छीने जाते रहे और ये प्रजातियां धीरे-धीरे धरती से एक-एक कर लुप्त होती गईं तो भविष्य में उससे उत्पन्न होने वाली भयावह समस्याओं और खतरों का सामना हमें ही करना होगा।
दरअसल बढ़ती आबादी तथा जंगलों के तेजी से होते शहरीकरण ने मनुष्य को इतना स्वार्थी बना दिया है कि वह प्रकृति प्रदत्त उन साधनों के स्रोतों को भूल चुका है, जिनके बिना उसका जीवन ही असंभव है। आज अगर खेतों में कीटों को मारकर खाने वाले चिडि़या, मोर, तीतर, बटेर, कौआ, बाज, गिद्ध जैसे किसानों के हितैषी माने जाने वाले पक्षी भी तेजी से लुप्त होने के कगार हैं तो हमें आसानी से समझ लेना चाहिए कि हम भयावह खतरे की ओर आगे बढ़ रहे हैं और हमें अब समय रहते सचेत हो जाना चाहिए। जैव विविधता की समृद्धि ही धरती को रहने तथा जीवनयापन के योग्य बनाती है, इसलिए लुप्तप्रायः पौधों और जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों की उनके प्राकृतिक निवास स्थान के साथ रक्षा करना पर्यावरण संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)