Friday, November 22"खबर जो असर करे"

अब बांग्लादेश से कौन करेगा द्विपक्षीय व्यापार

– योगेश कुमार सोनी

बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, उसका बड़ा खामियाजा उसे भुगतना पड़ सकता है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था में सुधार की मांग को लेकर हुए इस आंदोलन की परिणति शेख हसीना की निर्वाचित सरकार के पतन के रूप में हुई है। यही नहीं शेख हसीना को जान बचाकर बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा। इस सारे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि को समझने के लिए कुछ पीछे लौटना होगा। बांग्लादेश को 1971 में स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में चिह्नत किया गया। 1972 में उसे बतौर देश मान्यता मिली। 1972 में तत्कालीन सरकार ने मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और उनके वंशजों को सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया, लेकिन इसका लगातार विरोध हुआ। वर्ष 2018 में सरकार ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया।

इस साल जून में हाई कोर्ट के फैसले ने इस आरक्षण प्रणाली को खत्म करने के फैसले को गैरकानूनी बताते हुए इसे दोबारा लागू कर दिया। हाई कोर्ट के फैसले के बाद बांग्लादेश में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। शेख हसीना सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अगली सुनवाई सात अगस्त को होनी थी। इससे पहले विरोध प्रदर्शन तेज हो गया। नौजवान सरकार के इस्तीफे की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए। मारकाट मचने लगी। आंदोलनकारियों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के बातचीत के न्योते को भी ठुकरा दिया। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस थानों, पुलिस चौकियों, सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यालयों और उनके नेताओं के घरों पर हमले शुरू कर वाहनों को आग लगानी शुरू कर दी। इस तरह छात्रों का यह आंदोलन कट्टर इस्लामिक पंथियों के पंजों में चला गया। लड़ाई वर्चस्व में बदल गई। कट्टरपंथियों ने इस आड़ में बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं पर अत्याचार शुरू कर दिए। मंदिरों को धराशायी किया जाने लगा। साधुओं की हत्या की जाने लगी। हिंदुओं की दुकानें लूट ली गईं। हिंदू लड़कियों और औरतों की इज्जत तार-तार की गई।

दरअसल बांग्लादेश पर चाइना, पाकिस्तान व अमेरिका जैसे देशों की निगाह बहुत लंबे समय से थी। बीते बुधवार खुलासा हुआ कि अमेरिका ने हिंद महासागर में स्थित एक ऑस्ट्रेलियाई द्वीप समूह पर मिलिट्री बेस स्थापित करने की योजना बनाई है। यह द्वीप समूह मलक्का जलडमरूमध्य के पास स्थित है। इस जलडमरूमध्य से होकर चीन के आधे से अधिक तेल का आयात होता है। अमेरिका यहां से चीनी पनडुब्बियों की भी निगरानी कर सकता है। यह खुलासा बांग्लादेश में हिंसा शुरू होते ही हुआ। बताया गया है कि अमेरिका, भारत के पूर्वी इलाके में भी एक ठिकाना चाहता है जिससे थाईलैंड व हिंद प्रशांत में अपनी निगरानी रख सके। इन देशों के साथ बांग्लादेश की अंतरिम सरकार किसके करीब होगी, यह फिलहाल भविष्य के गर्भ में है।

बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच अंतरिम सरकार के कार्यवाहक के तौर पर नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस शपथ भी ले चुके हैं। इस अंतरिम सरकार पर कई संवैधानिक सवाल भी खड़े होने लगे हैं। मोहम्मद यूनुस के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने की होगी। साथ ही आरक्षण के मुद्दे पर उन्हें अग्निपथ से गुजरना पड़ेगा। इसके अलावा सबसे बड़ी व अहम चुनौती यह है कि अब बांग्लादेश के पड़ोसी देशों से द्विपक्षीय रिश्ते कैसे होंगे। शेख हसीना के भारत से रिश्ते हमेशा बेहतर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि वो 57 इस्लामिक राष्ट्रों को छोड़कर भारत पहुंचीं।

ऐसे में सवाल यह है कि क्या भारत अब बांग्लादेश से व्यापारिक संबंध बनाए रखेगा। उल्लेखनीय है कि भारत से बांग्लादेश हर वर्ष दस हजार करोड़ के ऑटो पार्ट्स जाते हैं। ऐसे समझिए की वहां की ऑटो पार्ट्स इंडस्ट्री भारत से ही चलती है व इसके अलावा कई तरह की वस्तुओं का बड़े स्तर आयात-निर्यात होता है। साथ ही श्रीलंका व पाकिस्तान के साथ किस तरह का व्यापार रहेगा वह भी साफ नहीं है। चीन तो पाकिस्तान व श्रीलंका को आर्थिक गुलाम बना ही चुका है, वह अब बांग्लादेश पर डोरे डालना शुरू करेगा। अमेरिका भी उसे अपने चंगुल में लेना चाहेगा। आंदोलनकारियों को अगर लगता है कि उन्होंने शेख हसीना को भगाकर कोई बड़ी जंग जीत ली है, तो वह बड़ी गलतफहमी में हैं, क्योंकि आने वाले समय में उन्हें गुलामी की जिंदगी व्यतीत करनी पड़ सकती है। इतिहास गवाह है कि जब-जब और जिस-जिस देश में चुनी हुई सरकार के बिना देश चला है वहां की जनता कभी खुश नहीं रही।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)